दिल्ली में एक स्थान है मंडी हाउस, जिसके आसपास ही प्रेस क्लब एवं आईडब्ल्यूपीसी तथा कथित प्रगतिशील कलाओं के अड्डे हुआ करते हैं। कहते हैं कि कथित प्रगतिशील नाटक आदि मंडी हाउस के इर्दगिर्द ही हुआ करते हैं। यहीं पर तमाम कला अकादमियां हैं, जहां से तमाम विमर्श उत्पन्न होते हैं। विचारों की दिशा का निर्धारण होता है। यहीं से स्त्री विमर्श के दायरे का विस्तार हम पाते हैं। स्त्री का पेशा कोई भी हो, उसे लेकर किसी भी प्रकार की “शेमिंग” नहीं होनी चाहिए एवं यहाँ तक कि देह व्यापार करने वाली महिलाओं का भी आदर होना चाहिए।
प्रख्यात अभिनेत्री कंगना रनौत को मंडी (हिमाचल प्रदेश) से लोकसभा चुनाव के लिए टिकट मिला तो कई लोगों को यह नागवार गुजरा। उन्होंने ऐसी भाषा और शब्दों का प्रयोग किया जो सरासर अनुचित हैं। सभ्य समाज इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेगा। उन्होंने न केवल कंगना का अपमान किया बल्कि समस्त महिला समाज और मंडी की जनता का भी अपमान कर दिया। कांग्रेस की नेता सुप्रिया श्रीनेत के सोशल मीडिया से कल एक ट्वीट हुआ। इसमें कंगना की फोटो के साथ लिखा गया कि क्या रेट चल रहा है मंडी में कोई बताएगा ? ये ट्वीट काफी समय तक रहा। जब इस पर आपत्ति जताई जाने लगी तो सुप्रिया श्रीनेत का बयान आया कि उन्होंने यह ट्वीट नहीं किया था।
अब फिर आते हैं दिल्ली में। हिमाचल प्रदेश में मंडी है तो दिल्ली में मंडी हाउस। इसी मंडी हाउस में प्रसार भारती का कार्यालय है और प्रसार भारती में मृणाल पांडे वर्ष 2010 में अध्यक्ष नियुक्त हो चुकी हैं एव इसके साथ ही वह दैनिक हिन्दुस्तान की मुख्य सम्पादक रह चुकी हैं तथा वह द एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड अर्थात नेशनल हेराल्ड समूह के साथ भी जुड़ी हैं। उनके इस परिचय से यह पता चल जाता है कि वह कथित “प्रगतिशील” वर्ग से आती हैं, जिसके लिए हर उस स्त्री का सम्मान है, जो स्त्री की भारतीय अवधारणा पर लगातार प्रश्न उठाती हैं। मृणाल पांडे ने भी कंगना रनौत के विषय में अत्यंत अपमानजनक भाषा का प्रयोग करते हुए एक्स प्लेटफॉर्म पर एक पोस्ट किया कि “शायद यूं कि मंडी में सही रेट मिलता है!”
यद्यपि यह बात स्पष्ट हो गयी कि उन्होंने किस इरादे और भाव से लिखा था! हालांकि यह नहीं कहा जा सकता है कि उन्हें भारतीय विरासत एवं धरोहरों का ज्ञान न हो क्योंकि उनकी पहचान ही उनकी माँ महान लेखिका शिवानी के नाम पर थी। भारतीय जनमानस उनकी माँ का आदर करता है, आज भी शिवानी के उपन्यास बहुत चाव एवं आदर के साथ पढ़े जाते हैं, परन्तु मृणाल पांडे के एक भी उपन्यास का नाम आम जनमानस को पता हो, ऐसा पूर्ण विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता है। फिर भी यदि मंडी उनके अनुसार रेट सही मिलने वाला स्थान है तो प्रसार भारती नामक संस्था भी मंडी हाउस के इर्दगिर्द ही है, और तमाम कथित प्रगतिशील कलाओं के संस्थान मंडी हाउस के ही इर्दगिर्द हैं, तो क्या वह तमाम महिलाओं को रेट निर्धारण करके सफलता हासिल करने वाली प्रमाणित करना चाहती हैं? क्या उनके कहने का अर्थ यह है कि जो भी महिला सफल होती है, या सफलता अर्जित करती है वह रेट निर्धारण करने वाली होती है? यह पोस्ट तमाम सफल महिलाओं के चेहरे पर कालिख पोतने की हरकत है, जिसका विरोध तमाम महिलाओं को करना चाहिए था, परन्तु यहाँ पर चूंकि विरोध बहुत सिलेक्टिव होता है, और विरोध भी चेहरा देखकर होता है, इसलिए नारी विमर्श का ठेकेदार बनने वाली महिलाएं कंगना पर किए गए इस पोस्ट पर मौन रहीं।
हालांकि जब मृणाल पांडे का विरोध हुआ तो उन्होंने वह पोस्ट डिलीट कर दी, परन्तु डिलीट करने से उनका पाप कम नहीं होता है, क्योंकि उनका पाप मात्र सफल महिलाओं को मंडी का रेट निर्धारण करने वाली तक सीमित नहीं था, उनका पाप दरअसल इससे भी अधिक है। उनका पाप है एक ऐतिहासिक नगर की तमाम महिलाओं एवं पुरुषों को लांछित करना तथा एक ऐसे नगर को देह व्यापार के रूप में वर्णित करना, जिसकी पहचान छोटी काशी के रूप में है।
इतिहास के अनुसार मंडी को “मांडव्य नगरी” के नाम से जाना जाता था। यह कहा जाता है कि इस नगर में ऋषि मांडव ने व्यास नदी की चट्टान पर ध्यान किया था, जिसे कोलसरा के नाम से जाना जाता है। छोटा काशी इसलिए इस सुन्दर नगर को कहा जाता है क्योंकि काशी की तरह यहाँ पर भी कई घाट है और उन घाटों पर महादेव के मंदिर हैं। कई ऐसे भी मंदिर हैं, जहां पर पूरे वर्ष धार्मिक गतिविधियों को देखा जा सकता है। यहाँ की शिवरात्रि भी इसी कारण विख्यात है। यहाँ शिवरात्रि पूरे आठ दिनों तक मनाई जाती है। मंडी में एकादश रूद्र, अर्धनारिश्वर, त्रिलोकीनाथ, पंचवक्त्र, नीलकंठ महादेव, बाबा भूतनाथ, महामृत्युंज्य आदि प्रमुख शिव मंदिर हैं। इसलिए कथित प्रगतिशील एवं स्त्रीवादी मृणाल पांडे का पोस्ट मात्र महिलाओं को लेकर ही आपत्तिजनक नहीं था, बल्कि वह एक ऐतिहासिक शहर के साथ किया गया अपमान भी है।
यदि बीते दिनों में मृणाल पांडे के लिखे गए लेखों को पढ़ा जाए तो यह पता चलता है कि वह भाषाई तमीज के अकाल से बहुत दुखी हैं। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि इन दिनों मीडिया से लेकर फिल्मों तक भाषाई तमीज का अकाल पड़ गया है। वह अपने लेख में इस बात से बहुत दुखी हैं कि हिन्दी पट्टी में भाषाई तमीज नहीं रही है और “गोदी” मीडिया ने उसी भाषा को उठा लिया है, जो उसके राजनीतिक आका बोलते हैं। वह लिखती हैं कि साइबर मीडिया के कई भाड़े के सिपाही तो गालीयुक्त हिंदी का जितने बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने लगे हैं, उससे भ्रम होता है कि हिंदी पट्टी में गालियां साहित्य से संसद तक मनोरंजन और सार्वजनिक भाषणों का अकाट्य हिस्सा हैं। पार्टी प्रवक्ता बिना अभद्र शब्दों के इस्तेमाल किए न तो अपने दल का प्रबल समर्थन कर पाते हैं, ना ही विपक्ष का मानमर्दन।
सबसे विरोधाभासी बात यह है कि भाषाई तमीज की बात वह महिला कर रही है, जिनकी भाषा का नमूना अपनी प्रतिभा के दम पर फिल्मों में सफल हुई कंगना रनौत के विरुद्ध देखने को मिला है। कांग्रेस के राजनीतिक इतिहास की छाँव तले स्थापित अखबार में “गोदी मीडिया” लिखना और भाषाई तमीज पर “दुःख व्यक्त” करती हुई मृणाल पांडे का कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी द्वारा ऐश्वर्या राय के खिलाफ आपत्तिजनक शब्द इस्तेमाल करने पर कोई लेख या पोस्ट आया हो, ऐसा संज्ञान में नहीं आता है!
राजनीतिक भाषाई क्षरण तो उनका प्रधानमंत्री मोदी के प्रति किए गए कई पोस्ट्स में पहले भी देखा जा सकता था। हालांकि भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति किए गए उनके पोस्ट्स की भाषा को राजनीतिक या वैचारिक विरोध के दायरे में समेटकर एक बारगी अनदेखा किया जा सकता है, परन्तु कंगना रनौत के प्रति जो उन्होंने भाषा प्रयोग की है, वह कहीं से भी क्षम्य नहीं है। यहाँ पर मृणाल पांडे से कहीं अधिक दोषी वे तमाम कथित प्रगतिशील लोग हैं, जो उनका अभी तक वरिष्ठ पत्रकार कहते हुए बचाव कर रहे हैं, परन्तु यह कोई नहीं देख रहा कि आज जब इस उम्र पर वह अपनी वैचारिक विरोधी महिला के प्रति इस सीमा तक घिनौनी टिप्पणी कर सकती हैं, तो उन्होंने तब क्या किया होगा जब उनका वर्चस्व हुआ करता होगा? और महिलाओं के प्रति इस सीमा तक अपमानजनक टिप्पणी पर अभी तक महिला पत्रकारों के संगठन आईडब्ल्यूपीसी द्वारा भी कोई निन्दात्मक प्रस्ताव नहीं आया है। मृणाल पांडे इसकी संस्थापक सदस्य हैं और जब वर्ष 2021 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर किसान आन्दोलन के दौरान जब ट्रैक्टर रैली निकाली गयी थी तो मृणाल पांडे ने आपत्तिजनक एवं भ्रामक ट्वीट किया था और जब उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज हुई थी तो आईडब्ल्यूपीसी ने उस एफआईआर का विरोध किया था। परन्तु अपने क्लब की संस्थापक सदस्य जो मंडी के रेट के बहाने तमाम कामकाजी महिलाओं की प्रतिभा एवं श्रम पर प्रश्नचिह्न लगा रही हैं, महिला पत्रकारों की ओर से विरोध न किया जाना खलता है।
यह पोस्ट महिलाओं का अपमान इसलिए भी है क्योंकि यह एक पेशे को भी कठघरे में खड़ा करता है, जो कई लड़कियों के सपनों को पूरा करने वाला पेशा है, जहां पर भी अंतत: प्रतिभा ही निर्धारक तत्व होती है, राजनीति की तरह परिवारवाद वहां पर भी विफल होता है। तो क्या यह माना जाए कि चूंकि मृणाल पांडे स्वयं एक स्टार किड रही हैं, वे न ही फिल्म में और न ही राजनीति में एक आउटसाइडर की सफलता से जल रही हैं? प्रश्न कई हैं। और जो अगर-मगर कहकर बचाव कर रहे हैं, वे भी महिलाओं के अपमान के उतने ही दोषी हैं, जितनी मृणाल पांडे स्वयं!
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