आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी की 200 वीं जयंती के अवसर पर दिल्ली में 21 मार्च को एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री अरुण कुमार कहा कि महापुरुषों की जयंती का अर्थ केवल उनके जीवन का स्मरण नहीं होता।
जब हम उस महापुरुष का स्मरण करते हैं तो उस कालखंड का भी स्मरण करते हैं। उस कालखंड की चुनौतियों का भी स्मरण करते हैं और उन चुनौतियों के सामने उस महापुरुष के योगदान का भी स्मरण करते हैं। हम उनको अपना आदर्श मानते हैं तो यह हम सबके लिए आत्मावलोकन का भी अवसर होता है। इसका एक उद्देश्य महर्षि दयानंद सरस्वती के जीवन, योगदान एवं उनके दिखाए गए मार्ग से आज की चुनौतियों का उत्तर प्राप्त करना भी है।
उन्होंने कहा कि महर्षि जी के जीवन के सभी पक्षों का अध्ययन करने की जरूरत है। जिस पृष्ठभूमि में दयानंद जी ने कार्य किया उसे समझना भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि इस देश के महापुरुषों ने दूसरे देशों में जाकर कहा कि हमको देखो और हममें कुछ खास लगे तो हमारी तरह बन जाओ। लेकिन इस्लाम का आक्रमण देश का ऐसा कालखंड था जिसमें हमारी सभी संस्थाएं नष्ट हो गई । विश्व गुरु एवं ज्ञान के केंद्र भारत में समाज का अवमूल्यन हुआ।
अंग्रेजों के आने के बाद समाज की आत्म स्मृति नष्ट हो गई और वह हीन भावना का शिकार हो गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुरेंद्र कुमार आर्य ने कहा कि वेदों की ओर लौटने का जो मार्ग महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने दिखाया वह उनका सबसे बड़ा योगदान है। आर्य समाज के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. विनय कुमार विद्यालंकार ने कहा कि प्रश्न सभी के मन में आते हैं लेकिन उनका कारण खोजने के लिए जब कोई व्यक्ति खड़ा हो जाता है तो वह विचारक हो जाता है। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिल्ली प्रांत संघचालक डॉ. अनिल अग्रवाल एवं आर्य समाज के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. विनय कुमार विद्यालंकार विशिष्ट अतिथि के नाते उपस्थित थे।
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