शेर आया, शेर आया कहने वाले उस गड़रिए लड़के की कहानी जिन लोगों ने सुनी होगी, उन्हें पता होगा कि बार-बार शेर आया, शेर आया के झूठ से उसके गांव वाले तंग आ जाते हैं। उसकी बात पर लोगों को यकीन नहीं होता और एक दिन शेर आ जाता है, लेकिन उस लड़के के शोर मचाने के बावजूद कोई उसकी मदद को बाहर नहीं आता। समाज का विश्वास उस लड़के से उठ चुका था। दिल्ली वालों का विश्वास भी अरविंद केजरीवाल से उठ गया है। इसीलिए दिल्ली में ‘9 समन, अठारह बहाने’ की सच्चाई लोकोक्ति बन गई। दसवें समन पर उनकी गिरफ्तारी लिखी है, यह किसने सोचा था? बार-बार उनकी पार्टी द्वारा फैलाए जा रहे केजरीवाल की गिरफ्तारी की अफवाहों से दिल्ली की जनता वैसे ही तंग आ चुकी थी। इसी का परिणाम है कि अरविंद केजरीवाल ईडी की गिरफ्त में 21 मार्च की रात्रि 09:05 पर जब थे, दिल्ली की जनता को कोई हैरानी नहीं हुई। इतने लंबे समय से उनकी गिरफ्तारी पर मीडिया और सोशल मीडिया पर उनकी ही पार्टी के लोग चर्चा करते हुए दिखाई पड़ रहे थे कि उनकी गिरफ्तारी में कोई चौंकाने वाला, ब्रेकिंग या एक्सक्लूसिव जैसा तत्व बचा नहीं रह गया था।
सिलसिलेवार तरीके से समझते हैं, गुरुवार देर शाम ईडी की टीम भारी फोर्स के साथ अरविंद केजरीवाल के घर पहुंचती है। उनके घर की तलाशी होती है, तलाशी और पूछताछ के बाद जांच एजेंसी केजरीवाल को गिरफ्तार कर लेती है। इस तरह केजरीवाल देश के पहले ऐसे नेता बनते हैं, जो मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए गिरफ्तार हुए हैं। हेमंत सोरेन ने गिरफ्तारी से पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद आम आदमी पार्टी की सरकार का क्या होगाा? दिल्ली की सरकार को कौन चलाएगा? राजनीति में आने से पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ जो आवाज सबसे अधिक मुखर दिखाई देती थी।
भ्रष्टाचार के खिलाफ चली मुहिम से निकली पार्टी के नेता होने का दावा करने वाले सत्ता मिलने के बाद इतने पद लोलुप हो जाएंगे, यह किसने सोचा था? उनकी सत्ता लोलुपता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल जेल जाने के बाद भी गद्दी छोड़ने को तैयार नहीं हैं। वे जेल से सरकार चलाना चाहते हैं और अपने पद से वे इस्तीफा देने को तैयार नहीं हैं। राजनीति में इस स्तर पर लालू प्रसाद यादव, हेमंत सोरेन भी नहीं उतरे। उन्होंने भी गिरफ्तारी से पहले अपने पद से इस्तीफा दिया था। अब जेल से यदि केजरीवाल अपनी सरकार चलाते हैं तो इस तरह वे एक और रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज करेंगे।
दसवें समन पर गिरफ्तार हुए अरविंद केजरीवाल को दरअसल, 2 नवंबर से 21 मार्च के बीच ईडी ने पूछताछ के लिए 9 समन भेजे थे। लेकिन केजरीवाल हर बार एक नया बहाना बनाकर ईडी के सामने पेश होने से बच रहे थे। नौंवे समन के खिलाफ वे दिल्ली हाईकोर्ट गए। उन्होंने एक याचिका दायर कर मांग की। वे चाहते थे कि अगर वह पूछताछ के लिए ईडी के सामने पेश होते हैं तो उन्हें गिरफ्तार ना किया जाए। चोर की दाढ़ी में तिनका जैसे मुहावरे ऐसी ही घटनाओं से प्रेरित होकर लिखे गए होंगे। हालांकि हाईकोर्ट से केजरीवाल को राहत नहीं मिली। केजरीवाल भी कहां हार मानने वाले थे, वे गिरफ्तारी के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गए।
अब उनकी गिरफ्तारी के बाद, यह सच है कि देश का कोई कानून उन्हें जेल से सरकार चलाने से रोकता नहीं है। जब तक केजरीवाल का दोष साबित नहीं हो जाता, भारतीय कानून के हिसाब से कोई भी जेल में रहते हुए मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद और विधायक बने रह सकता है। जेल से ही सरकार भी चला भी सकता है। लेकिन जेल से सरकार चलाना इतना आसान नहीं होगा। एक मुख्यमंत्री को कई सारी जिम्मेवारियों का निर्वहन करना होता है, जिसमें जेल एक बाधा होगी। नैतिकता की सबसे अधिक दुहाई देने वाली पार्टी के नेता से कम से कम यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह राजनीति में ‘अनैतिक आचरण’ की मिसाल बने। इतने बड़े दल में ऐसा खालीपन कैसे संभव है कि कोई अरविंद की जगह लेने वाला ना बचा हो? राजनीति में आने से पहले केजरीवाल भी कौन थे? एक आम आदमी। अपनी पार्टी के नए चेहरों पर वे एक बार विश्वास क्यों नहीं करते? शायद अपने आस पास के लोगों पर अविश्वास ही उन्हें अरविंद केजरीवाल बनाता है। इसलिए उनके आंदोलन के प्रारंभिक सभी साथी एक-एक करके उन्हें छोड़ गए। वे चाहे शाजिया इल्मी हों, कपिल मिश्रा, कुमार विश्वास, आशुतोष गुप्ता, प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, या फिर आशीष खेतान हों। कोई भी इस वक्त उनके साथ नहीं है।
केजरीवाल भी कहां हार मानने वाले थे, उन्हें तो बार बार अपमानित होना था। उन्होंने स्थानीय कोर्ट के निर्णय पर पुनर्विचार की याचिका डाल दी, लेकिन कोर्ट ने ईडी की कार्रवाई पर रोक नहीं लगाई। आईपीसी की धारा 174 की कार्रवाई में गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्हें जमानत मिली थी। वे 15 हजार की जमानत पर बाहर थे। लेकिन केजरीवाल के लोग इसे लेकर झूठ फैलाते रहे। किसी भी आरोपी को जमानत मिलने का मतलब यह किसी भी कानून में नहीं होता कि उसके ऊपर लगे भ्रष्टचार के सभी आरोप समाप्त हो गए हैं।
कुछ तो केजरीवाल से गलत हुआ होगा, जिसकी वजह से उन्हें जमानत लेनी पड़ी। दिल्ली जल बोर्ड में घोर भ्रष्टचार से लेकर दिल्ली शराब घोटाला तक कई मामलों में उन पर एफआईआर है। उनके शीश महल की भी जांच चल रही है। ईडी के समन का लगातार विरोध करने वाले अरविंद केजरीवाल अपनी गिरफ्तारी से पहले ही यह बात समझ लेनी चाहिए थी कि उन्होंने भ्रष्टचार किया है तो उन पर कार्रवाई भी होगी।
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