मुजफ्फरनगर/ देहरादून । मुज़फ्फरनगर जनपद के चर्चित रामपुर कांड के 30 साल बाद सोमवार को कोर्ट ने एक मामले में अपना फैसला सुनाया। अदालत ने पीएसी के दो सिपाहियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है साथ ही उन पर 50-50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। वहीं फैसले पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि लंबे समय से न्याय का इंतजार कर रहे पीड़ितों और उनके परिवारजनों को अदालत के निर्णय से बड़ी राहत मिली है।
चर्चित रामपुर तिराहा कांड में सामूहिक दुष्कर्म, लूट, छेड़छाड़ और साजिश रचने के मामले में अदालत ने छेड़छाड़ के आरोपित पीएसी के दो सिपाहियों मिलाप सिंह और वीरेंद्र प्रताप सिंह पर दोष सिद्ध हुआ था। दोनों पर 15 मार्च को दोष सिद्ध हो चुका था। अपर जिला एवं सत्र न्यायालय संख्या-7 के पीठासीन अधिकारी शक्ति सिंह ने दोनों को आजीवन कारावास की सजा का फैसला सुनाया।
मामले में सीबीआई की तरफ से विवेचना पूरी कर न्यायालय में चार्जशीट दाखिल की गई थी। कुल छह मुकदमें चले जिनमें से दो समाप्त हो चुके हैं और चार मुकदमे विचाराधीन थे। पीएसी के सेवानिवृत सिपाही मिलाप सिंह और वीरेंद्र प्रताप पर महिलाओं से छेड़छाड़ की धाराओं में केस दर्ज था।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने फैसले पर कहा कि मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर 2 अक्टूबर 1994 को आंदोलन के दौरान हमारे नौजवानों, माताओं-बहनों के साथ क्रूरतापूर्ण बर्ताव किया गया, जिसमें कई आंदोलनकारियों का बलिदान हुआ । मुख्यमंत्री ने कहा कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। उन्होंने कहा कि आंदोलनकारियों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करना सरकार की प्राथमिकता और कर्तव्य है।
भाजपा ने किया कोर्ट के फैसले का स्वागत
भाजपा ने भी राज्य आंदोलन के दौरान हुए मुज्जफरनगर कांड में मिली पहली सजा पर संतोष व्यक्त करते हुए अन्य मामलों में भी शीघ्र न्याय की उम्मीद जताई है। प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने इस फैसले को आंदोलनकारियों की आत्मा को श्रद्धांजलि की शुरुआत बताया। साथ ही कहा कि प्रत्येक देवभूमिवासी इन तमाम मामलों से जुड़े गवाहों और पैरोकारों के प्रति हमेशा कृतज्ञ रहेगा ।
लगभग 30 वर्षों के अंतहीन इंतजार के बाद, मातृशक्ति को मिले इस न्याय पर प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने कहा, बेशक दोषियों को मिली यह पहली सजा देवभूमि की आत्मा पर हुए घाव की पीड़ा को कम तो नहीं कर सकते हैं लेकिन न्याय का अहसास अवश्य कराता है।
उन्होंने न्यायालय से आए इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा, अहिंसा और मानवता की हत्या वाले इस घृणित अपराध से जुड़े अन्य मुकद्दमों में भी शीघ्र न्याय होना चाहिए । साथ ही इस लंबी कानूनी लड़ाई में चट्टान की तरह खड़े होने वाले गवाहों की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा, समस्त देवभूमिवासी इन गवाहों और अन्य केसों से जुड़े तमाम पैरीकारों का हमेशा नम आंखों से कृतज्ञ रहेगा।
क्या है रामपुर तिराहा कांड की घटना
एक अक्तूबर 1994 को अलग उत्तराखंड राज्य की मांग के लिए देहरादून से बसों में सवार होकर आंदोलनकारी दिल्ली के लिए निकले थे। देर रात मुजफ्फरनगर जनपद में रामपुर तिराहा पर पुलिस ने आंदोलनकारियों को रोकने का प्रयास किया। आंदोलनकारियों के नहीं मानने पर पुलिसकर्मियों ने फायरिंग कर दी, जिसमें सात आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी। इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई। सीबीआई ने 25 जनवरी 1995 को सीबीआई ने पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमें दर्ज किए गए। 30 साल से इन मुकदमों की सुनवाई अपर जिला एवं सत्र न्यायालय संख्या-7 के पीठासीन अधिकारी शक्ति सिंह की अदालत में चल रही थी। शासकीय अधिवक्ता फौजदारी राजीव शर्मा, सहायक शासकीय अधिवक्ता फौजदारी परवेंद्र सिंह, सीबीआई के विशेष लोक अभियोजक धारा सिंह और उत्तराखंड संघर्ष समिति के अधिवक्ता अनुराग वर्मा के अनुसार, पीएसी के सिपाही मिलाप सिंह और वीरेंद्र प्रताप पर दोष सिद्ध हो गया था। सोमवार को इस मामले में सजा पर सुनवाई हुई। अदालत ने दोनों सिपाहियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई और दोषियों पर 40 हजार रुपए अर्थदंड भी लगाया। इस मामले में सीबीआई की ओर से कुल 15 गवाह पेश किए गए। दोनों अभियुक्तों पर धारा 376जी, 323, 354, 392, 509 व 120 बी में दोष सिद्ध हुआ था।
अब इस प्रकरण से संबंधित दो मुकदमे सरकार बनाम एसपी मिश्रा और सरकार बनाम बृजकिशोर अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम के न्यायालय में और तीसरा मुकदमा सरकार बनाम राधा मोहन द्विवेदी एडीजे- 7 के न्यायालय में विचाराधीन है। कुल छह मुकदमे मुजफ्फरनगर के न्यायालय में चले थे, जिनमें से दो मुकदमों की फाइल बंद हो चुकी हैं। अब कुल तीन मुकदमे विचाराधीन हैं।
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