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कश्मीर ही नहीं, असम भी!

देश की अखंडता की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में लड़ी जा रही है। कश्मीर को अनुछेद 370 के चुंगुल से बाहर निकलने के लिए इतना लंबा संघर्ष करना पड़ा, तो असम अपने मूल और वास्तविक निवासियों का अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहा है

by पाञ्चजन्य ब्यूरो
Dec 21, 2023, 08:12 am IST
in भारत, असम, जम्‍मू एवं कश्‍मीर
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 पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया है। बहुत कुछ अनुच्छेद 370 की समाप्ति को चुनौती देने वाली याचिकाओं की तरह। सर्वोच्च न्यायालय ने असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से संबंधित याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है, जो नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती हैं।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने असम एनआरसी के मुद्दों से जुड़े मामले की सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया है। बहुत कुछ अनुच्छेद 370 की समाप्ति को चुनौती देने वाली याचिकाओं की तरह। सर्वोच्च न्यायालय ने असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से संबंधित याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है, जो नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती हैं। जब इस पर सुनवाई हो रही थी, तो कपिल सिब्बल का यह बयान निश्चित रूप से आपके ध्यान में आया होगा, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि असम भारत का हिस्सा था ही नहीं, वह तो म्यांमार का हिस्सा था।

कपिल सिब्बल के शब्द थे-

‘(असम में) किसी भी प्रवासन का कभी भी मानचित्रण नहीं किया जा सकता है। और यदि आप असम के इतिहास को देखें, तो आपको अहसास होगा कि यह पता लगाना असंभव है कि कौन कब आया था। असम मूल रूप से म्यांमार का हिस्सा था। और बहुत पहले, 1824 में अंग्रेजों द्वारा क्षेत्र के एक हिस्से पर विजय प्राप्त करने के बाद एक संधि की गई जिसके तहत असम को अंग्रेजों को सौंप दिया गया। कोई कल्पना कर सकता है कि तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य के संदर्भ में लोगों के किस तरह का प्रवास हुआ होगा। और यदि आप 1905 पर जाएं, तो उस समय बंगाल का विभाजन हुआ था।’

कपिल सिब्बल के उच्च विचारों से मात्र एक कदम पीछे थे कांग्रेस के एक अन्य ‘प्रख्यात वकील’ सलमान खुर्शीद के तर्क। सलमान खुर्शीद का दावा था कि भारत ‘सलाद बाउल’ दृष्टिकोण को प्राथमिकता देता है, जो बहुसांस्कृतिक समाज को दर्शाता है, जबकि ‘मेल्टिंग पॉट’ दृष्टिकोण का विरोध करता है जिसका उद्देश्य एकल पहचान बनाना है। उन्होंने कहा कि असम में प्रवासन का सदियों से इतिहास रहा है, जिसके परिणामस्वरूप (उनकी लिखित दलील के अनुसार) ‘विभिन्न प्रकार की संस्कृतियां, नस्लीय उत्पत्ति, पहचान, भाषाएं और बोलियां’ सामने आई हैं। उन्होंने तर्क दिया कि धारा 6ए सांस्कृतिक विविधता को बनाए रखते हुए आगे के प्रवासन पर रोक लगाती है।

असम एकमात्र ऐसा राज्य है जिसे एनआरसी लागू करने के लिए चुना गया है। स्वतंत्र भारत में पहली बार हुई जनगणना के बाद, असम के लिए रजिस्टर पहली बार 1951 में तैयार किया गया था। 2013-2019 तक केन्द्र ने सीमा पार से अवैध अप्रवासियों की पहचान करने के उद्देश्य से असम एनआरसी का ‘अद्यतन’ किया।

आखिर इस तरह के बयानों की आवश्यकता क्या थी? स्पष्ट तौर पर एक वर्ग नहीं चाहता कि असम से घुसपैठियों को चिन्हित भी करने का काम हो। यह सारा विषय नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए से संबंधित है। इसकी पृष्ठभूमि में जाना आवश्यक है। नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए असम समझौते को प्रभावी बनाने के लिए पेश की गई थी। यह असम में प्रवासियों को भारतीय नागरिक के रूप में पहचानने या उनके प्रवास की तारीख के आधार पर उन्हें निष्कासित करने की रूपरेखा है।

20 नवंबर 2019 को गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में घोषणा की थी कि भारत सरकार अपने नागरिकों का एक राष्ट्रव्यापी रजिस्टर बनाएगी। यह राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) होगा जिसमें भारत के वास्तविक नागरिकों के नाम और उनके बारे में प्रासंगिक जानकारी होगी। पहले यह केवल 1951 में असम राज्य के लिए बनाया गया था।1951 के एनआरसी का उद्देश्य तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से प्रवासियों की आमद की मात्रा निर्धारित करना था। लेकिन एनआरसी अपना उद्देश्य पूरा नहीं कर सका, क्योंकि 1946 का विदेशी अधिनियम पाकिस्तानी नागरिकों को ‘विदेशी’ के रूप में नहीं मानता था, जिससे वे भारत में आसानी से प्रवेश कर लेते थे।

12 दिसंबर 2019 को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को मंजूरी दे दी। सीएए ने भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन किया, ताकि 2014 से पहले अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों के लिए भारतीय नागरिकता हासिल करना आसान हो सके। यह लाभ केवल हिंदू, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाई धर्म से संबंधित लोगों को दिया जाना था।

इस अधिनियम को लेकर मुख्य रूप से नई दिल्ली में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। विरोध प्रदर्शन की चपेट में जेएनयू और जामिया मिलिया समेत कई विश्वविद्यालय आ गए। दिल्ली के शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने एक प्रमुख सड़क को अवरुद्ध कर दिया, जिससे प्रतिदिन एक लाख से अधिक वाहनों का यातायात बाधित हो गया। विरोध प्रदर्शन देश के कुछ अन्य हिस्सों में भी फैल गया। 23 फरवरी 2020 की दोपहर से 25 फरवरी 2020 की रात तक उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सबसे हिंसक सांप्रदायिक दंगे थे। ढाई दिनों की सांप्रदायिक हिंसा में 50 से अधिक लोग मारे गए, कई लोग घायल हुए और असंख्य लोग घायल हुए।

नवंबर 2020 में, असम राज्य सरकार ने ‘दोषपूर्ण’ एनआरसी सूची में संशोधन की मांग की, जिसमें उसने दावा किया कि कई स्वदेशी नागरिकों को बाहर रखा गया है। दो साल बाद, दिसंबर 2022 में, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ने एनआरसी पर प्रमुख चिंताओं को उजागर किया, जैसे कि फंड के उपयोग में अनियमितताएं और कार्य के लिए चुने गए सॉफ़्टवेयर। सबसे विशेष रूप से, सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘आडिट ट्रेल एनआरसी डेटा की सत्यता के लिए जवाबदेही सुनिश्चित कर सकता था। इस प्रकार, 1,579 करोड़ रुपये के प्रत्यक्ष व्यय के साथ-साथ 40,000 से 71,000 तक की बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों की तैनाती की जनशक्ति लागत के बावजूद एक वैध, त्रुटि मुक्त एनआरसी तैयार करने का इच्छित उद्देश्य अभी तक पूरा नहीं हुआ है।’

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने फिर कहा है कि एनआरसी नए सिरे से किया जाना चाहिए। सरमा ने कहा कि केवल आंशिक रूप से सत्यापन करने के बजाय नागरिकता डेटा को एकत्रित करने के लिए सूची की समीक्षा की जानी चाहिए। असम सरकार उन ‘संदिग्ध राष्ट्रीयता’ वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई की योजना बना रही है, जिन्होंने अगस्त 2019 में अद्यतन किए गए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) में शामिल होने के लिए जाली दस्तावेज बनाए थे।

स्वतंत्र भारत में पहली बार हुई जनगणना के बाद, असम के लिए रजिस्टर पहली बार 1951 में तैयार किया गया था। अभी हाल ही में, 2013-2019 तक, भारत सरकार ने मुख्य रूप से बांग्लादेश में सीमा पार से अवैध अप्रवासियों की पहचान करने के उद्देश्य से असम एनआरसी का ‘अद्यतन’ किया।

3.3 करोड़ आवेदकों में से लगभग 19.06 लाख को असम के एनआरसी से बाहर रखा गया था, जिसे 1951 की सूची के आधार पर अद्यतन किया गया था। नागरिकता स्थापित करने के लिए जमा किए गए दस्तावेजों की जांच के दौरान पता चला कि करीब 2 लाख आवेदकों के दस्तावेज फर्जी थे।

इससे पहले असम के कृषि मंत्री अतुल बोरा ने कहा था कि राज्य प्रशासन अगस्त 2019 में प्रकाशित एनआरसी की सूची को स्वीकार नहीं करेगा। कई अवैध बांग्लादेशी लोगों के नाम पिछली एनआरसी सूची में शामिल थे, और वे अवैध बांग्लादेशी-मुक्त एनआरसी चाहते हैं। एनआरसी एक रजिस्टर है जिसमें भारतीय नागरिकों के नाम शामिल हैं, जिसे पहली बार 1951 में तैयार किया गया था। अवैध अप्रवासियों को बाहर निकालने के लिए इसे अब तक असम के लिए अद्यतन किया जा रहा है।

एनआरसी की पहली सूची पहली बार 1951 में असम में प्रकाशित हुई थी। जब 30 जुलाई, 2018 को एनआरसी का मसौदा प्रकाशित किया गया था, तो 40.7 लाख लोगों को इससे बाहर करने पर भारी विवाद हुआ था। एनआरसी के मसौदे में कुल 3.29 करोड़ आवेदनों में से 2.9 करोड़ लोगों के नाम शामिल थे। नागरिकों की अद्यतन सूची अगस्त 2019 में प्रकाशित की गई थी जिसमें 3.3 करोड़ आवेदकों में से 19.06 लाख लोगों को बाहर कर दिया गया था।

असम अब तक का एकमात्र ऐसा राज्य है जिसे एनआरसी लागू करने के लिए चुना गया है। स्वतंत्र भारत में पहली बार हुई जनगणना के बाद, असम के लिए रजिस्टर पहली बार 1951 में तैयार किया गया था। अभी हाल ही में, 2013-2019 तक, भारत सरकार ने मुख्य रूप से बांग्लादेश में सीमा पार से अवैध अप्रवासियों की पहचान करने के उद्देश्य से असम एनआरसी का ‘अद्यतन’ किया।

Topics: असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी)कपिल सिब्बलमेल्टिंग पॉटभारत के सर्वोच्च न्यायालय
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