Article 370 Verdict: कश्मीर से धारा 370 हट गयी थी और अब सर्वोच्च न्यायालय के दिनांक 11/12/2023 के निर्णय के उपरान्त वह बीते कल की बात हो गयी है। इसे लेकर सेक्युलर जगत में एवं महिलाओं के कथित अधिकारों के अगुआ लोगों में हलचल है। एक बेचैनी है और वह दबे शब्दों में ही सही यह कह रहे हैं कि वह सहमत नहीं हैं। हालांकि हाल ही में कांग्रेस में 50 प्रतिशत महिला मुख्यमंत्री देखने की चाह रखने वाली कांग्रेस भी इस धारा 370 और 35A के इतिहास बनने पर खुश हीं है, जो महिलाओं के प्रति घोर अन्याय से भरी हुई थी।
जैसे ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय का यह ऐतिहासिक निर्णय आया, वैसे ही महबूबा मुफ्ती, फारुख अब्दुल्ला समेत कई नेता अपनी निराशा व्यक्त करते हुए सामने आए और यह कहा कि वह इस लड़ाई को जारी रखेंगे। उन्होंने कई बातें की यहां तक कि दोनों नेताओं ने दावा किया कि उन्हें नजरबन्द कर रखा हुआ है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस विषय में लम्बी सुनवाई की थी, उन्होंने हर पहलू पर बात की थी। उस दौरान कई बार बहसें हुई थीं मगर एक जो सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा था, जिस पर और विस्तार से बात होनी चाहिए थी, क्योंकि उस विषय पर ठेकेदार बनने का दावा लगभग सभी राजनीतिक दल करते हैं, लगभग सभी कथित प्रगतिशील लोग करते हैं और वह महिला अधिकार।
जम्मू और कश्मीर में धारा 370 और 35A को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने निरस्त कर दिया था। जैसे ही इसे रद्द किया था, वैसे ही कथित सेक्युलर खेमे में खलबली मच गयी थी। सरकार पर कश्मीर विरोधी, संविधान विरोधी आदि आदि आरोप लगाते हुए इस निर्णय की वैधता के विरुद्ध माननीय सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर की गयी थीं। इन याचिकाओं पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हुई थी एवं हमने देखा था कि कैसे इन सुनवाइयों में वे तमाम तथ्य सामने आए थे, जिन पर कथित लिबरल समाज कुछ कहता ही नहीं है।
इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करते समय माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कांग्रेस सहित तमाम कथित सेक्युलर दलों के महिला प्रेम के दोहरे चेहरे को उधेड़कर रख दिया था। इस सुनवाई के दौरान 28 अगस्त को सीजेआई ने टिप्पणी करते
हुए कहा था कि “धारा 35A ने तीन मूलभूत अधिकार छीन लिए हैं।”
कैसे यह धारा महिलाओं के मूलभूत अधिकारों को प्रभावित करती थी, इसके लिए यह धारा हटने के बाद वर्ष 2019 में ही मीडिया में आई रिपोर्ट्स को देखते हैं। जैसे ही केंद्र सरकार द्वारा यह धाराएं हटाई गयी थीं, वैसे ही वहां की महिलाओं के बीच एक जश्न का माहौल बन गया था। यह कहा गया था कि अब वहां की महिलाएं वहां पर संपत्ति खरीद सकेंगी। ऐसा क्या था कि वहां की महिलाएं वहां पर संपत्ति नहीं खरीद सकती थीं?
दरअसल कश्मीर में धारा 370 एवं 35A के अंतर्गत यह नियम था कि यदि वहां की महिला ने किसी अन्य प्रदेश के व्यक्ति से शादी की तो उसे वहां का नागरिकता प्रमाणपत्र नहीं मिलेगा और इतना ही नहीं उसके अन्य अधिकार भी उसके पास नहीं रहते थे।
हालांकि इस नियम के खिलाफ कई महिलाओं ने कानूनी लड़ाई लड़ी थी और डॉ सुशीला साहनी के मामले में जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय की फुल बेंच ने यह निर्णय दिया था कि ऐसी महिलाओं की स्थायी नागरिकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, यदि वह किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी करती हैं तो, मगर इस निर्णय में भी उनके बच्चों एवं जीवनसाथी के अधिकारों पर कोई बात नहीं की गयी थी। वर्ष 2002 में आए इस निर्णय को उलटने के लिए वर्ष 2004 में जम्मू कश्मीर में तत्कालीन पीडीपी सरकार एक अधिनियम लेकर आई थी, The Jammu and Kashmir Permanent Resident (Disqualification) Bill 2004, जो निचले सदन से पारित भी हो गया था, मगर इसका विरोध जम्मू क्षेत्र में बहुत अधिक हुआ और उसके बाद विधानसभा को भंग कर दिया गया और उसके बाद वह दोबारा प्रस्तुत नहीं किया गया।
वर्ष 2019 में जब धारा 35A निरस्त की गयी तो ऐसी तमाम महिलाओं के चेहरे पर खुशी आई क्योंकि तब वह उन पुरुषों के समकक्ष जाकर खड़ी हो गयी थीं, जिनके अधिकारों पर किसी भी प्रकार की कैंची नहीं चलती थी। धारा 35A हटने के बाद ही नागरिकता नियमों में परिवर्तन हुए एवं जम्मू कश्मीर की उन महिलाओं के जीवनसाथी के लिए भी प्रदेश की नागरिकता लेना सक्षम हुआ।
उस समय महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली मनु खजुरिया ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा था कि “आज मैं जम्मू और कश्मीर के पुरुषों के समकक्ष खड़ी हो गयी हूं, अब मेरे बच्चों को भी संपत्ति अधिकार मिलेंगे!”
जब धारा 35aA एवं धारा 370 को केंद्र सरकार द्वारा निष्प्रभावी बनाया गया था, उस समय भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता एवं वर्तमान में वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने भी प्रेस रिलीज करके इस विषय को उठाया था कि कैसे धारा 370 की आड़ में महिला विरोधी बिल जम्मू कश्मीर की विधानसभा में पारित किया गया था।
अब जबकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी इन दोनों धाराओं को हटाए जाने के निर्णय पर मोहर लग गयी है तो अब सरकार महिलाओं के अधिकारों के लिए बनाए गए प्रावधानों को प्रस्तुत कर सकती है। जैसे अभी यह सूचना प्राप्त हो रही है कि सरकार जम्मू एवं कश्मीर विधानसभा में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का बिल प्रस्तुत करेगी। प्रश्न यही उठता है कि महिलाओं के प्रति इस सीमा तक पक्षपाती इन दोनों धाराओं पर आखिर वह वर्ग मौन क्यों था, जो हर बात में स्त्री अधिकारों की बात करता है?
क्या वह जम्मू-कश्मीर की महिलाओं को मात्र उसी प्रांत तक सीमित रखना चाहता था? क्या उसके लिए उन लाखों महिलाओं के अधिकार कुछ नहीं थे? जैसे-जैसे समय बीतेगा और तथ्य सामने आएँगे वैसे-वैसे एक बड़े वर्ग के सामने कई असहज करने वाले प्रश्न आएंगे और जिनके उत्तर उन्हें देने ही होंगे! मौन से कार्य नहीं चलेगा, विशेषकर महिलाओं के मामले में।
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