इस बार का विधानसभा चुनाव हर दृष्टि से असाधारण है। भाजपा और कांग्रेस एक-एक सीट के लिए नहीं, अपितु एक-एक वोट के लिए संघर्ष कर रही हैं। इसका कारण 2018 के चुनाव परिणाम का अनुभव है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा की यात्राओं से मध्यप्रदेश का चुनावी वातावरण गरमा गया है। अमित शाह ने जहां कार्यकर्ताओं की सक्रियता और मतदान प्रतिशत बढ़ाने पर जोर दिया तो प्रियंका वाड्रा ने सभा में अपनी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी की याद दिलाकर मतदाताओं को भावनात्मक तौर पर आकर्षित करने का प्रयास किया।
इस बार का विधानसभा चुनाव हर दृष्टि से असाधारण है। भाजपा और कांग्रेस एक-एक सीट के लिए नहीं, अपितु एक-एक वोट के लिए संघर्ष कर रही हैं। इसका कारण 2018 के चुनाव परिणाम का अनुभव है। किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। भाजपा ने कांग्रेस से 0.13 प्रतिशत अधिक मत प्राप्त किए थे, पर वह 5 सीट पीछे रह गई थी।
भाजपा को उन क्षेत्रों में नुकसान अधिक हुआ था, जहां मतदान का प्रतिशत कम रहा था। भाजपा को लगता है यदि उसके कार्यकर्ता आत्मविश्वास के अतिरेक में न रह कर सक्रिय होकर मतदाताओं को मतदान के लिए प्रेरित करते तो ऐसी स्थिति न बनती। यद्यपि अंतर्कलह के चलते कांग्रेस की सरकार 15 माह ही चली। 2020 में 28 सीटों पर उपचुनाव के बाद भाजपा ने स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाई। 2018 के परिणाम से सबक लेकर भाजपा सरकार के जन कल्याणकारी निर्णयों का तो प्रचार कर ही रही है, कार्यकर्ताओं को सक्रिय करके मतदान प्रतिशत बढ़ाने की रणनीति पर भी काम कर रही है।
अमित शाह की मध्यप्रदेश यात्रा इन्हीं दो बिंदुओं पर केंद्रित रही। उन्होंने भोपाल, इंदौर, उज्जैन और ग्वालियर संभागों की सघन यात्रा कर आमसभाओं को संबोधित किया। सरकार के कार्यों का ब्योरा देने के साथ उन्होंने भारत की बढ़ती वैश्विक प्रतिष्ठा एवं सांस्कृतिक गौरव का उल्लेख किया। कार्यकर्ताओं की बैठकें भी लीं। उन्होंने मतदान प्रतिशत बढ़ाने पर जोर देते हुए उन कार्यकर्ताओं को सक्रिय होने के लिए प्रेरित किया जो आत्मविश्वास के अतिरेक या टिकट वितरण के निर्णय से असहज थे।
इस चुनाव की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस बार कुछ राष्ट्रीय मुद्दे चर्चा में हैं। विश्व में भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा, नागरिकों में सांस्कृतिक गौरव का जागरण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दृढ़ व्यक्तित्व भी चर्चा में है। एक महत्वपूर्ण बात और है- महिला मतदाताओं की भूमिका। आरंभिक आकलनों से लगता है कि इस बार मतदान में महिलाओं की भूमिका अपेक्षाकृत अधिक महत्वपूर्ण रहने वाली है। यह संकेत जन चर्चाओं में महिलाओं की सक्रियता और पुरुष मतदाताओं की तुलना में महिला मतदाताओं के अनुपात में सुधार के आंकड़ों से मिलता है। प्रदेश में पिछले तीन विधानसभा चुनावों के मतदान में महिला मतदाताओं का प्रतिशत लगातार बढ़ा है।
2008 में 65%, 2013 में 70% और 2013 में 74% महिलाओं ने मतदान किया। इस बार 7 जिलों में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं से अधिक है। इनमें से 6 जिले वनवासी बहुल हैं, जहां अधिकांश जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही है। इनमें झाबुआ, अलीराजपुर और बड़वानी में साक्षरता दर 40 प्रतिशत से कम है। शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार न केवल इन जिलों में, अपितु पूरे प्रदेश के ग्रामीण और वनवासी अंचलों में काम कर रही है।
सरकार की महिला कल्याण योजनाएं अपेक्षाकृत अधिक प्रभावशाली दिखाई दी हैं। विशेषकर मुख्यमंत्री कन्यादान योजना, जननी सुरक्षा योजना, लाड़ली लक्ष्मी जैसी योजनाएं तो प्रभावशाली थीं ही। इसके साथ ही लाड़ली बहना योजना के अंतर्गत महिलाओं के खाते में प्रतिमाह 1250 रुपये जमा कराए जा रहे हैं। इसी प्रकार, उज्ज्वला योजना के अंतर्गत महिलाओं को 450 रुपये में मिलने वाला गैस सिलेंडर भी महिलाओं में भाजपा के प्रति विशिष्ट आकर्षण का कारण बन गया है, जो मतदान के दिन भाजपा को सशक्त बना सकता है।
राहुल गांधी या प्रियंका अपने भाषणों से कोई खास प्रभाव श्रोताओं पर नहीं छोड़ पाते थे। लेकिन इस बार जनजातीय क्षेत्रों की महिलाओं का ध्यान खींचने के लिए प्रियंका अपनी दादी का नाम भुनाने की कोशिश में हैं। हालांकि पीढ़ियों के बदलाव के कारण श्रोताओं में से अधिकांश लोग इंदिरा गांधी या राजीव गांधी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखते। कुल मिलाकर अभी तक दोनों दल अपनी-अपनी रणनीति पर बहुत योजनाबद्ध ढंग से चल रहे हैं।
कांग्रेस की रणनीति इसके धुर विपरीत है। कांग्रेस इस प्रयास में है कि भाजपा को सशक्त करने वाले मुद्दों से जनता का ध्यान हटाया जा सके। जैसे- महिलाओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए कांग्रेस ने उन्हें प्रतिमाह 1500 रुपये नारी सम्मान निधि तथा 500 रुपये में गैस सिलेंडर देने की घोषणा की है। साथ ही, गेंहू का समर्थन मूल्य 2500 रुपये करने तथा छत्तीसगढ़ की भांति गोबर खरीदने का वादा किया है। लोक लुभावन घोषणाओं के साथ कांग्रेस ने दो दांव खेले हैं-भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में सेंध लगाने के लिए जातिगत जनगणना और महिलाओं का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए भावनात्मक प्रसंग।
माना जाता है कि मध्य भारत, विंध्य और बुंदेलखंड के सामाजिक क्षेत्रों में जातिगत समीकरण भी प्रभावी होता है। प्रियंका वाड्रा ने इन क्षेत्रों में अपनी सभाओं में समाज के पिछड़ेपन के लिए जातिगत जनगणना न होने को जिम्मेदार बताया है। उन्होंने कहा कि भाजपा पिछड़ी जातियों का विकास नहीं चाहती, इसीलिए जाति आधारित जनगणना का विरोध कर रही है। प्रियंका वाड्रा सहित सभी कांग्रेस नेताओं का पूरा जोर जातिगत जनगणना कराने के वादे पर है।
अतीत में राहुल गांधी या प्रियंका अपने भाषणों से कोई खास प्रभाव श्रोताओं पर नहीं छोड़ पाते थे। लेकिन इस बार जनजातीय क्षेत्रों की महिलाओं का ध्यान खींचने के लिए प्रियंका अपनी दादी का नाम भुनाने की कोशिश में हैं। हालांकि पीढ़ियों के बदलाव के कारण श्रोताओं में से अधिकांश लोग इंदिरा गांधी या राजीव गांधी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखते। कुल मिलाकर अभी तक दोनों दल अपनी-अपनी रणनीति पर बहुत योजनाबद्ध ढंग से चल रहे हैं।
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