दुनिया में जहां भी गुजराती हैं, वे अपने कारोबार और परिश्रम के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कहा कि गुजराती कारोबार के लिए जोखिम उठाने से पीछे नहीं रहते हैं। यही कारण है कि आज अमेरिका में जितने भी भारतीय हैं, उनमें सबसे अधिक संपन्न गुजराती हैं।
गत 11 अक्तूबर को अमदाबाद स्थित उद्यमिता विकास संस्थान (ईडीआईआई) में ‘पाञ्चजन्य’ का ‘साबरमती संवाद’ कार्यक्रम आयोजित हुआ। इसे कुछ ऐसे विद्वानों, समाजसेवियों, नेताओं, सोशल मीडिया के प्रभावशाली लोगों ने संबोधित किया, जिनके विचारों की गूंज दुनियाभर में सुनाई देती है। कार्यक्रम का उद्घाटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर, गुजरात के गृह, खेल तथा युवा मामलों के राज्यमंत्री हर्ष संघवी, पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर, आर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर, मालिनी अवस्थी, अतुल जैन एवं सुविख्यात लेखक रतन शारदा आदि ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
पूरा कार्यक्रम 12 सत्रों में बंटा था। पहले सत्र का विषय था-गुजरात आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा। इस सत्र में हर्ष संघवी से गुजरात की कानून-व्यवस्था, सुरक्षा और वहां के तीर्थ स्थानों पर हुए अतिक्रमण आदि पर हितेश शंकर और प्रफुल्ल केतकर ने बातचीत की। श्री संघवी ने बताया कि बेट द्वारका और सोमनाथ में हुए अतिक्रमण के विरुद्ध गुजरात सरकार ने लगातार अभियान चलाए हैं। आगे भी ऐसे अभियान चलते रहेंगे। (बातचीत का विस्तृत रूप पढ़ें पृष्ठ 10 पर)
दूसरे सत्र में ‘वाइब्रेंट गुजरात’ विषय पर प्रख्यात लोकगायिका मालिनी अवस्थी और सामाजिक कार्यकर्ता द्रुमि भट्ट ने विचार रखे। इस सत्र का संचालन वरिष्ठ पत्रकार अनुराग पुनेठा ने किया। मालिनी अवस्थी ने भारतीय संस्कृति, संस्कार और भारतीयता की बात की। इसके अलावा उन्होंने कहा कि गुजरात ‘मॉडल’ का दबदबा पूरे विश्व में दिखता है। द्रुमि भट्ट ने कहा कि गुजरातियों के रक्त में उद्यमिता है।
दुनिया में जहां भी गुजराती हैं, वे अपने कारोबार और परिश्रम के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने कहा कि गुजराती कारोबार के लिए जोखिम उठाने से पीछे नहीं रहते हैं। यही कारण है कि आज अमेरिका में जितने भी भारतीय हैं, उनमें सबसे अधिक संपन्न गुजराती हैं। उन्होंने कहा कि कोई भी सफल कारोबारी बन सकता है, बशर्ते कि वह अच्छी तरह शोध करके सही योजना और बाजार की जानकारी रखे। (वक्तव्यों का विस्तृत रूप पढ़ें पृष्ठ 29 और 38 पर)
तीसरे सत्र का विषय रहा-डर के आगे जीत। इस सत्र में भावुकता की पराकाष्ठा देखी गई। इसमें गोवा में कार्यरत आईपीएस अधिकारी निधिन वाल्सन और गुजरात के प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता दिलीप देशमुख ने अपनी आपबीती सुनाई। निधिन वाल्सन 2021 में कैंसर से पीड़ित हुए थे। स्थिति ऐसी हो गई थी कि उनके जीवन का कोई भरोसा नहीं रह गया था, लेकिन उन्होंने दृढ़ इच्छाशक्ति से कैंसर को पराजित कर दिया। दिलीप देशमुख की भी ऐसी ही कहानी है। इन्हें लिवर की दिक्कत हुई थी। यहां तक कि एक घूंट पानी तक नहीं पी सकते थे।
चिकित्सकों ने भी इनके जीने की उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन उन्होंने भी इस बीमारी को परास्त कर दिया। जब ये दोनों आपबीती सुना रहे थे, तब पूरा सभागार शांत था। सत्र के समापन पर जोरदार तालियां बजीं। (दोनों की आपबीती पढ़ें पृष्ठ 22-24 पर)
कार्यक्रम के चौथे सत्र का विषय था-भारतीय ज्ञान परंपरा। इसे संबोधित करते हुए सुनील आंबेकर ने कहा कि देश में ऐसे अनेक लोग हैं, जिन्हें जीवन की दिशा का बोध नहीं है। इसलिए आज हमें प्राचीन भारत के ज्ञान को जानना चाहिए। (श्री आंबेकर के उद्बोधन का विस्तृत रूप पढ़ें पृष्ठ 14 पर)
कार्यक्रम के पांचवें सत्र का विषय था-पर्यावरण, पाञ्चजन्य की पहल और पंचमहाभूत। इसे दीनदयाल शोध संस्थान के महासचिव अतुल जैन ने संबोधित करते हुए कहा कि पंच ‘ज’ (जन, जल, जंगल, जमीन और जानवर) हमारे मूल्यों से जुड़े हैं। इनके बीच संतुलन बनाकर चलने से ही मानव का जीवन आसान होगा। (उनके भाषण को विस्तृत रूप में पढ़ें पृष्ठ 19 पर)
कार्यक्रम के छठे सत्र का विषय था- जी-20 और डब्ल्यू. ई (वी) 20। इससे भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला और दिल्ली भाजपा के उपाध्यक्ष कपिल मिश्रा ने संबोधित किया। सत्र का संचालन अनुराग पुनेठा और तृप्ति श्रीवास्तव ने किया। शहजाद पूनावाला ने कहा कि पाञ्चजन्य वह शंख है, जिसकी ध्वनि से आज के कौरवों में भी भय उत्पन्न होता है। कपिल मिश्रा ने कहा कि जो लोग हमास के समर्थन में मार्च निकाल रहे हैं, उन्होेंने भारत पर हुए हमलों के बाद रैली क्यों नहीं निकाली थी? (परिचर्चा का विस्तार पढ़ें पृष्ठ 30-32 पर)
सातवें सत्र का विषय था-महिला विमर्श : प्रतिभा और प्रतिरोध। इसमें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की प्राध्यापक डॉ. अंशु जोशी, आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय छात्र संघ की पूर्व अध्यक्ष रश्मि सामंत और सामाजिक कार्यकर्ता काजल हिंदुस्थानी ने अपने विचार रखे। डॉ. अंशु जोशी ने जेएनयू में प्रतिभा का किस तरह प्रतिरोध किया जाता है, उसे विस्तार से बताया। उन्होंने कहा ‘मैं भी जेएनयू की छात्रा रही हूं। अभाविप से छात्र संघ का चुनाव लड़ने पर एक वामपंथी प्राध्यापक ने मुझे करिअर खराब करने तक की धमकी दी।’ उन्होंने सवाल उठाया कि जेएनयू में वामपंथी और जिहादी तत्व एक कैसे हो जाते हैं? उन्होंने वामपंथियों के दोहरेपन के संबंध में कहा कि वामपंथ से जुड़ा कोई छात्र जेएनयू में किसी पार्क में नमाज पढ़ता है, तो भी वह सेकुलर है, लेकिन कोई छात्र अपने कमरे में दीपक जला लेता है, तो उसे सांप्रदायिक कहा जाता है।
‘पहचान और प्रश्न’ तथा ‘नमो नर्मदे, नमो यमुने’ विषयों पर चर्चा हुई। इसमें लैंगिक अल्पसंख्यक समाज की कार्यकर्ता रेशमा प्रसाद और सामाजिक कार्यकर्ता ध्वनि शर्मा से बातचीत की वरिष्ठ पत्रकार क्षिप्रा माथुर ने। रेशमा प्रसाद ने तृतीय लिंग समुदाय को अल्पसंख्यक बताया। साथ ही उन्होंने कहा कि परिवारों को समझना होगा कि किसी के शरीर से उसकी पहचान निर्धारित न की जाए। वहीं ध्वनि शर्मा ने परिवारों के विघटन पर चिंता व्यक्त की।
ऐसे ही जेएनयू में दुर्गा पूजा करना सांप्रदायिकता के दायरे में आ जाता है, लेकिन रोजा रखना सेकुलर कार्य है। उन्होंने यह भी कहा कि जेएनयू में नए छात्रों को वामपंथ से जुड़ने के लिए नाना प्रकार के प्रलोभन दिए जाते हैं, लेकिन एक अच्छी बात यह हो रही है कि अब वहां का माहौल बदल रहा है। रश्मि सामंत ने कहा कि अक्सर कहा जाता है कि छोटे शहर का मतलब है छोटे सपने लेकिन हर बड़ी कहानी छोटे शहरों से ही शुरू होती है। वहां से आसमान साफ दिखाई देता है। उन्होंने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में रखी गई गणेश की मूर्ति के बारे में बताया कि वहां वह मूर्ति एक सजावटी वस्तु की तरह रखी गई थी। मैंने इसका विरोध किया और आज उस मूर्ति को उचित स्थान मिला है। काजल हिंदुस्थानी ने अपने भाषण के प्रारंभ में एक नारा लगाया- ‘हो गया है शंखनाद अब तांडव मचाएंगे, हरेक भारतीय को एकजुट करके भारत को विश्वगुरु बनाएंगे।’
उन्होंने कहा कि मैं पहले एक कारोबारी महिला थी। व्यापार करती थी और अच्छा जीवन जीती थी। लेकिन 2016 में उस समय मन बहुत खराब हुआ, जब टीवी पर देखा कि नई दिल्ली में कुछ लोग आतंकवादी अफजल की बरसी मनाते हुए ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे…’ जैसे नारे लगा रहे हैं। ऐसे लोगों को वैचारिक रूप से परास्त करने के लिए मैंने अपना नाम काजल हिंदुस्थानी रख लिया। इसके बाद मैंने लव जिहाद, जमीन जिहाद और कन्वर्जन करने वालों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है। मेरा आठ साल का संघर्ष अब रंग ला रहा है। लव जिहाद और जमीन जिहाद पर अंकुश लग रहा है। उन्होंने आगे कहा कि हालांकि यह लड़ाई थोड़ी कठिन है। इसके लिए मुझे जेल तक जाना पड़ा है।
आठवें सत्र के अतिथि थे अमूल के प्रबंध निदेशक जयेन मेहता। इस सत्र में संपादक हितेश शंकर ने ‘उद्यमिता की उड़ान’ विषय पर उनसे बात की। श्री जयेन ने अमूल की विकास यात्रा के बारे में विस्तार से बताया। (विस्तृत रूप से पढ़ें पृष्ठ 18 पर)
कार्यक्रम स्थल पर आतंकवाद के विरुद्ध लोगों को जागरूक करने के लिए एक पोस्टर लगाया गया था। इसका शीर्षक था-युद्ध आतंकवाद के विरुद्ध। इस पर अतिथियों और प्रतिभागियों ने हस्ताक्षर करके संदेश दिया कि वे हमास द्वारा इस्राएल पर किए गए हमले का विरोध करने के साथ ही आतंकवाद के हर रूप की निंदा भी करते हैं। कार्यक्रम में आए हर व्यक्ति ने इस पहल की प्रशंसा की।
नौवें सत्र में केंद्रीय संचार राज्यमंत्री देबू सिंह चौहान से ‘तकनीक पोस्टल केंद्रित’ विषय पर बात की प्रफुल्ल केतकर ने। श्री चौहान ने कहा कि आज देश के हर जिले में 5जी सेवा है और आने वाले समय में 6जी सेवा शुरू हो जाएगी। (विस्तृत रूप से पढ़ें पृष्ठ 17 पर)
दसवें सत्र का विषय था-महिला विमर्श,भारतीय संस्कृति और खेल। इसमें भाजपा विधायक रिवाबा जडेजा ने अपनी बात रखी। श्रीमती जडेजा ने कहा कि हमारी सनातन संस्कृति हमें बचपन से ही सिखाती है कि जो व्यक्ति आपको प्रभावित करता है, तो उसकी चरण-धूलि को माथे पर लगाएं। इससे सकारात्मकता मिलती है। (इनके वक्तव्य का विस्तृत रूप पढ़ें पृष्ठ 33 पर)
ग्यारहवें सत्र का विषय था-गुजरात मॉडल की अनूठी कहानी। इस सत्र में अमदाबाद के प्रसिद्ध अस्पताल इंस्टीट्यूट आफ किडनी डिसीजिस एंड रिसर्च सेंटर (आईकेडीआरसी) के निदेशक डॉ. विनीत मिश्र ने अस्पताल के कार्यों को विस्तार से बताया। (इनके उद्बोधन का विस्तृत रूप पढ़ें पृष्ठ 34 पर)
अंतिम और बारहवें सत्र में ‘पहचान और प्रश्न’ तथा ‘नमो नर्मदे, नमो यमुने’ विषयों पर चर्चा हुई। इसमें लैंगिक अल्पसंख्यक समाज की कार्यकर्ता रेशमा प्रसाद और सामाजिक कार्यकर्ता ध्वनि शर्मा से बातचीत की वरिष्ठ पत्रकार क्षिप्रा माथुर ने। रेशमा प्रसाद ने तृतीय लिंग समुदाय को अल्पसंख्यक बताया। साथ ही उन्होंने कहा कि परिवारों को समझना होगा कि किसी के शरीर से उसकी पहचान निर्धारित न की जाए। वहीं ध्वनि शर्मा ने परिवारों के विघटन पर चिंता व्यक्त की। (इस सत्र की विस्तृत रिपोर्ट पढ़ें पृष्ठ 36 पर) कार्यक्रम को सफल बनाने में अमदाबाद और गांधीनगर के अनेक संगठनों की बड़ी भूमिका रही। गांधीनगर स्थित स्वामिनारायण गुरुकुल के संचालकों और छात्रों का भी सहयोग मिला। राष्ट्रवाद के साथ संवाद का समापन हुआ।
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