प्रधानमंत्री मोदी ने इस्राएल के प्रति संवेदना और प्रतिबद्धता जतायी है, लेकिन विपक्ष हमास पर मुंह को सिला रख, गाजा पर आंसू बहा रहा है। चीनी पैसे को लेकर बहुचर्चित न्यूजक्लिक ने मोदी के रुख को ‘गैर टिकाऊ’ बतलाया है, पर उसकी चर्चा बाद में। फिलहाल मुद्दा दशकों में तराशे गये वैश्विक विमर्श का है।
हार्वर्ड के 30 छात्र संगठनों ने इस्राएल को हमास की ‘हिंसा’ का जिम्मेदार बताया है। बड़े-बड़े अखबारों और न्यूज पोर्टलों में लेख लिखे जा रहे हैं कि असली आतंकी हमास नहीं, बल्कि इस्राएल है। अरब जनता प्राय: हमास के कारनामे पर गर्वित और प्रफुल्लित है। वहीं पश्चिम का अवाम ठिठका हुआ है। भारत का चित्र बिलकुल अलग है, जहां अधिकांश सुधी नागरिक, इस्राएल से सहानुभूति व्यक्त कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने इस्राएल के प्रति संवेदना और प्रतिबद्धता जतायी है, लेकिन विपक्ष हमास पर मुंह को सिला रख, गाजा पर आंसू बहा रहा है। चीनी पैसे को लेकर बहुचर्चित न्यूजक्लिक ने मोदी के रुख को ‘गैर टिकाऊ’ बतलाया है, पर उसकी चर्चा बाद में। फिलहाल मुद्दा दशकों में तराशे गये वैश्विक विमर्श का है।
धीमा जहर
वामपंथी लिबरल सोशलिस्ट प्रोपेगेंडा की मारक क्षमता क्या है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण इस्राएल-हमास संघर्ष में देखने को मिल रहा है। पहले बात करें पश्चिमी समाज के उन लोगों की, जो उदार सोच रखने वाले सामान्य नागरिक हैं। हमास ने निर्दोष इस्राएलियों और विदेशी नागरिकों का बर्बर कत्लेआम किया, चुन-चुन कर महिलाओं और बच्चों को निशाना बनाया, नाचते -गाते लोगों पर भेड़ियों की तरह टूट पड़े, गाड़ियों से निकाल-निकालकर लोगों को गोली मारी गयी, लड़कियों का अपहरण हुआ, दुराचार और नृशंस अत्याचार हुआ। इस ‘माल-ए-गनीमत’ को लूटकर, गाड़ियों में ले जाते निर्लज्ज मुजाहिदीनों की झलकियों ने इस्लामिक स्टेट की यादें ताजा कर दीं।
बावजूद इसके लोग इस्राएल के समर्थन में खुलकर बोलने में हिचकते दिखते हैं। अमेरिका और पश्चिमी देशों ने इस्राएल के प्रति अपना समर्थन व्यक्त कर दिया है, लेकिन आम नागरिक के मन में भय व्याप्त है कि इस्राएल के समर्थन में बोलने पर उसे ‘रेसिस्ट’ (नस्लवादी) या ‘इस्लामोफोबिक’ करार दे दिया जाएगा। यह भय अकारण नहीं है। मीडिया, कला और अकादमिक जगत के प्रभावी लोगों द्वारा माहौल को ऐसा गढ़ा गया है कि यदि आप सभ्य समाज के नागरिक हैं तो आपको हर हाल में इस्राएल का विरोध करना ही चाहिए।
पश्चिमी समाज में शताब्दियों तक चले एंटी सेमिटिज्म (यहूदी विरोध/नफरत) को अधिकांश आधुनिक समाज ने छोड़ दिया। इस अन्याय पर पश्चाताप भी किया लेकिन वामपंथी / लिबरल गिरोह ने इस्राएल-फिलिस्तीन विवाद की आड़ में इस एंटीसेमिटिज्म को लगातार पाला-पोसा है। वामपंथी लेखक, विचारक इस्राएल के मूलत: यहूदी स्थान होने के तथ्य को छिपाते और यहूदी नरसंहारों के इतिहास को झुठलाते आये हैं। इसे ‘जायनिस्ट लॉबी’ का ‘ज्यू प्रोपेगंडा’ बताकर पल्ला झाड़ लिया जाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध में हुए यहूदी नरसंहार को नकारने वाले ऐसे इतिहासकारों की पूरी एक शृंखला है, जिसे लेकर अदालत में मुकदमे चले हैं, जिन्हें यहूदियों ने जीता है। लेकिन अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी, ब्रिटेन की लेबर पार्टी और फ्रांस के कम्युनिस्ट दल हमास से सहानुभूति रखने वालों से भरे पड़े हैं। ला फ्रांस आन्सुमीज ने हमास के आतंकी हमले की निंदा करने से मना कर दिया है। आक्सफोर्ड, हार्वर्ड, कोलंबिया और जेएनयू में आपको ऐसे सैकड़ों ख्यात ‘लेखक/बुद्धिजीवी’ मिलेंगे, जो खुलकर या घुमा-फिराकर हमास की पीठ ठोंक रहे हैं।
दो हजार साल से अत्याचार
इस बीच फिलिस्तीन के राष्ट्रपति मोहम्मद अब्बास ने संयुक्त राष्ट्र में इस्राएली आक्रामकता पर रोक लगाने की मांग की परंतु इस्राएल के दिल में दो हजार साल का इतिहास बसा है। विश्व के सभी नेता जानते हैं कि 2000 साल तक सारी दुनिया में मारे, काटे, लूटे और सताए गये यहूदी, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में 60 लाख जानें गंवाने के बाद इस्राएल प्राप्त किया, इस्राएल की स्थापना के बाद लगातार चौतरफा हमले झेले, वे अपनी सुरक्षा के लिए कोई भी समझौता करने के लिए तैयार नहीं होंगे और किसी भी हद तक जाएंगे। यहूदी बखूबी जानते हैं कि इस्लामी जगत में उनके खिलाफ नफरत किस हद तक, कूट-कूटकर भरी हुई है। इस मामले में क्या शिया राष्ट्र, क्या वहाबी, क्या हनफी, क्या कतर, क्या ईरान। पीढ़ी दर पीढ़ी दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में दर्द लिये भटकते यहूदी, जब आपस में मिलते, तो विदा लेते समय कहते कि ‘अगली बार मिलेंगे यरुशलम में’।
छिपाई गयी सचाई
नामी अमेरिकी समाजवादी नोम चॉम्सकी और अमेरिकी सांसद रशीदा तलीब इस्राएल को, फिलिस्तीनियों/ मुस्लिमों को बाड़े में बंद करने वाले (अपार्थीड) राज्य के रूप में चित्रित करते हैं। सच यह है कि इस हमले के हफ्ते भर पहले ही इस्राएल ने गाजा की अपनी सीमा को खोलकर हजारों लोगों को इस्राएल में आकर काम करने और मोटी तनख्वाह कमाने का अवसर दिया था जिसका बदला हमास ने हजारों लोगों की हत्या करके चुकाया है। इस्राएल द्वारा दिखायी गयी इस दरियादिली का फायदा उठाते हुए हमास ने अपने देहाती इस्राएल के अंदर दाखिल करवा दिये। यही जिहादी अब इस्राएल के अंदर निर्दोष नागरिकों का खून बहाते घूम रहे हैं। किबुट्ज में घरों के दरवाजे टूटे हुए हैं। अंदर प्रवेश करने पर पूरे परिवार लाशों में तब्दील मिलते हैं। छोटे-छोटे बच्चों के सिर काट दिए गए हैं। इन घरों को राहत बचाव करने आने वालों के लिए मौत के फंदे में बदल दिया गया है। दरवाजा खोलने पर रस्सी खिंचती है और ग्रेनेड फटता है।
उधर, अरब जगत फिलिस्तीन के जुबानी समर्थन में खड़ा रहता है, वहां की सियासत भी इस मुद्दे पर खूब उबलती है। इस्राएल और यहूदियों पर शब्दों के कोड़े बरसाये जाते हैं। फिलिस्तीनियों के लिए आंसू बहाये जाते हैं, इस्लामी भाईचारे की नज्में गायी जाती हैं, लेकिन इन ‘अरब बिरादरान’ में से कोई भी फिलिस्तीनियों को पासपोर्ट नहीं देता। जबकि इस्राएल में रहने वाले सभी अरब लोग इजराइली पासपोर्ट धारण करते हैं, अच्छी नौकरियों में हैं, इस्राएल के नागरिक होने के नाते सम्मानपूर्ण जीवन जीते हैं। ये इजराइली अरब, शेष अरब जगत से खुद को दूर रखते हैं। इस्राएल के 50 प्रतिशत चिकित्सक इस्राएली अरब नागरिकों में से आते हैं।
कपट युद्ध
इस्राएल ने गाजा को तब स्वतंत्रता-स्वायत्तता दी थी, जब यासर अराफात का फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) सत्ता में था। गाजा में किसी तरह की रोक-टोक नहीं थीं। जिन सेटलमेंट या यहूदी बस्तियों की बात आज होती है, वे तब नहीं थी। इस्राएल ने उन्हें हटा लिया था। फिर जून 2007 में हमास ने पीएलओ की सत्ता को उलट दिया, सरकारी लोगों को मार डाला और ऐलान कर दिया कि वे सिर्फ गाजा से संतुष्ट नहीं है। वे तब तक नहीं रुकेंगे, जब तक इस्राएल का पूर्ण विनाश नहीं हो जाता और एक-एक यहूदी को कत्ल नहीं कर दिया जाता। इस्राएल की हमास से मांग केवल इतनी रही है कि वे इस्राएल के अस्तित्व को स्वीकार करें और खून-खराबा रोकें। इसके उलट छवि ऐसी बनायी जाती है कि फिलीस्तीन के लोग गाजा में शांति से रहना चाहते हैं,और इस्राएल उनका दमन कर रहा है। इस प्रोपेगेंडा को फैलाने में वामपंथी -लिबरल मीडिया और बुद्धिजीवियों की बहुत बड़ी भूमिका रही है।
गाजा मिस्र के साथ सबसे लंबी सीमा साझा करता है। हमास एक ऐसा आतंकी संगठन है जिसके कारण मिस्र ने भी गाजा के साथ अपनी सीमाओं की तारबंदी कर दी है क्योंकि उन्होंने पाया कि हमास मिस्र के अंदर आतंकी कार्रवाई करने की साजिश रच रहा था। हमास के इस बर्बर चेहरे को फोटोशॉप की गयी तस्वीरों, सोशल मीडिया पोस्टों और सेलिब्रिटी ट्विटर हैंडल्स से निकले भावपूर्ण शब्दों से ढक दिया जाता है। पत्थर, गुलेल, पेट्रोल बम और रॉकेट दागे जाते हैं। इन हिंसक प्रदर्शनों का चेहरा बनाकर बच्चों और महिलाओं को कैमरों के आगे किया जाता है। फिर विक्टिम कार्ड खेला जाता है। यही विक्टिम कार्ड हमने बरसों कश्मीर घाटी में देखा कि बच्चों-महिलाओं को सामने रखकर पत्थर बरसाओ, आग लगाओ, और जब सुरक्षा बल आत्मरक्षा या कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए आंसू गैस या पैलेट गन (छर्रे वाली बंदूक) का इस्तेमाल करें तो दुनिया में तमाशा मचाओ कि ‘देखो! हिंदुस्तानी सुरक्षाबल कितना जुल्म करते हैं।’
भारत का दृश्य
भारत ने इस इलाके में इस्राएल और फिलिस्तीन के सहअस्तित्व को स्वीकारने की नीति अपनायी है। यही नीति इस्राएल और पश्चिमी देशों की भी रही है परंतु जब इस्राएल पर गाजा पट्टी की ओर से हमास का आतंकी हमला हुआ, ऐसे में इस्राएल के साथ खड़े होने के भारत के प्रधानमंत्री के फैसले को भारत की तथाकथित सेकुलर राजनीति द्वारा गाली-गलौज से नवाजा जा रहा है। उलेमा और मौलानाओं के हमास के जिहादियों पर गर्व करते बयान और वीडियो सामने आ रहे हैं, जिनमें भारत के संविधान को उलटने और वास्तविक इस्लामी हुकूमत कायम करने की प्रत्यक्ष धमकी दी जा रही है। पीछे खड़ी भीड़ हर्षनाद करती है। ये भारत के बहुचर्चित तथा कथित सेकुलरिज्म का वह रूप है जो इस्लामी आतंकवाद की घटनाओं में उभर कर सामने आ जाता है, फिर चाहे वह वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुआ हमला हो, ओसामा बिन लादेन की मौत हो, अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा या याकूब मेनन को दी गयी फांसी। ‘सेकुलरिज्म’ के नाम पर यह सब स्वीकार कर लिया जाता है।
कांग्रेस वर्किंगकमेटी की बैठक में फिलिस्तीन के समर्थन में प्रस्ताव पास किया गया है। उसके नेता इस्राएल को समर्थन देने के लिए प्रधानमंत्री पर उबल रहे हैं। बावजूद इसके कि निर्दोषों पर बर्बर आतंकी हमला किया गया है। उसे नजरअंदाज करते हुए कि हमास मिस्र के इस्लामी ब्रदरहुड की एक शाखा के रूप में जन्मा था, उपेक्षा करते हुए कि इस्राएल ने हर संकट की घड़ी में भारत का साथ दिया है, शशि थरूर ने सरकार से गाजा में इजराइली कार्रवाई को लेकर निंदा प्रस्ताव पारित करने की मांग की है। गट्ठा वोटों के इस गणित में देश में मजहबी उन्माद भड़काने में सारे ‘सेकुलर’ कूद पड़े हैं, या मौके के इंतजार में हैं। समाजवादी पार्टी के एक नेता ने ट्वीट किया- ‘भक्त अगर फिलिस्तीन के खिलाफ सिर्फ़ इसलिए खड़े हैं, क्योंकि वहां मुसलमान हैं। तो हम भी फिलिस्तीन के साथ सिर्फ़ इसलिए खड़े हैं क्योंकि वहां मुसलमान हैं।’
भारतीय मीडिया का वामपंथी/ लिबरल तबका यह दिखाने में लगा है कि हमास के हमले के कारण इस्राएल को गाजा पर हमला करने का मौका मिल गया है। कभी स्क्रीन काला करने वाले आज के यूट्यूबर इस्राएलियों की अमानवीय हत्याओं पर चुप हैं और सवाल पूछ रहे हैं कि ‘आप किसके साथ हैं।’ कुछ अन्य जो इतनी अक्खड़ लीपापोती करने की हिम्मत नहीं दिखा पाये, वे कहते हैं कि ‘हमास ने जो किया, उसे सही नहीं कहा जा सकता लेकिन….’
मौके की तलाश
गाजा की धरती पर आसमान से आग बरस रही है। आरक्षित सैन्य बलों को बुला लिया गया है। भविष्य लगभग स्पष्ट है कि जब लाखों की संख्या में इस्राएली सैनिक गाजा पट्टी में घुसेंगे और हमास का पूरी तरह सफाया करेंगे। यह लड़ाई गली-गली, सड़क दर सड़क लड़ी जाएगी। दोनों ओर से हजारों लोग मारे जाएंगे। इस्राएल के प्रधानमंत्री ने दो टूक कहा है कि हम उन लोग का ऐसा जवाब देंगे कि पश्चिम एशिया सदा के लिए बदल जाएगा। नेतन्याहू ने गाजा में रहने वाले नागरिकों से कहा है कि वे हमास के जिहादियों के इलाकों को छोड़ दें, क्योंकि ‘हम उन इलाकों को मलबे में बदल देंगे।’ गाजा में सब ओर मलबा दिखने लगा है। इधर, लाल सलाम दस्ते और ‘सेकुलर’ सियासत, मलबे में मौके तलाश रही है।
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