यह ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी मां शारदा की वही सर्वज्ञपीठ है, जहां भगवती ने देशभर से जुटी विद्वत-परिषद् और तत्ववादियों के समक्ष आदि शंकराचार्य के सर्वज्ञ होने का उद्घोष किया था।
आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठ या मठों को जगत जानता है, लेकिन इन पीठों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण रही है- कश्मीर की सर्वज्ञ शारदा पीठ। आस्था के केंद्र से भी बढ़कर यह शिक्षा और ज्ञान की भूमि रही है। ओंकारेश्वर में साकार हो रहे एकात्म धाम की बात इसी से शुरू करते हैं, क्योंकि इस पर ध्यान देने और इसके महात्म्य को समझने में 75 वर्ष लग गए। इस पीठ की प्रतिकृति अपने पूर्ण वैभव के साथ एकात्म धाम में स्थापित हो रही है।
1947 तक अपनी संपूर्ण प्रतिष्ठा के साथ विख्यात रही मां शारदा की यह पीठ पाक अधिक्रांत कश्मीर में है। दु:खद बात यह है कि हमारी सांस्कृतिक चैतन्यता का यह आधार स्तंभ जीर्ण-शीर्ण भग्न और आहत रूप में हमारे समक्ष है, जो मुजफ्फराबाद से 140 किलोमीटर और कुपवाड़ा से महज 30 किलोमीटर दूरी पर नीलम नदी के किनारे स्थित है। यहां की सौंदर्यमयी घाटियों को नीलम घाटी के नाम से जाना जाता है। भारत-पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा भी यहीं से गुजरती है। यह नीलम घाटी की वह पावन भूमि है, जहां से संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए ज्ञान का प्रखर प्रकाश पुंज प्रवाहित होता है। यह ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी मां शारदा की वही सर्वज्ञपीठ है, जहां भगवती ने देशभर से जुटी विद्वत-परिषद् और तत्ववादियों के समक्ष आदि शंकराचार्य के सर्वज्ञ होने का उद्घोष किया था।
आदिगुरु पर सरस्वती की कृपा
आदि शंकराचार्य की सबसे सरल और सहज जीवनी ‘आचार्य शंकर’ प्रस्तुत करते हुए स्वामी अपूर्वानंद लिखते हैं, ‘‘कणाद मतावलंबी वैशेषिक, गौतम मतावलंबी नैयायिक, कपिल मतावलंबी सांख्य, जैमिनी मतावलंबी मीमांसक, बौद्ध सौत्रांतिक, वैभाषिक, योगाचार व माध्यमिक, जैन श्वेतांबर और दिगंबर आचार्यों को शास्त्रार्थ में पराजित करने के उपरांत मां शारदा के मंदिर के आंगन में विद्वतजन और जनता आचार्य शंकर की जय ध्वनि करने लगी। चारों ओर बाजे बज उठे। इस आनंदोल्लास के बीच आचार्य ने मंदिर के समीप स्थित कुंड से पवित्र जल का पान कर एक सुरक्षित छंदोबद्ध स्तोत्र की रचना कर शारदा देवी की अर्चना की। इसी बीच, एक गंभीर देववाणी सुनाई पड़ी- ‘‘वत्स शंकर! मैं प्रसन्न हुई। तुम्हें सर्वज्ञ उपाधि से विभूषित करती हूं। तुम प्रसन्नचित्त से मेरे सर्वज्ञपीठ पर आरोहण करो। केवल तुम्हीं इस पीठ के योग्य पात्र हो।’’
इस प्रकार आचार्य शंकर ज्ञान और सम्मान के उच्चतम शिखर पर विराजमान हुए। शारदा पीठ पर बैठने का अधिकार प्राप्त कर अतिश्रेष्ठ शंकर पंडितश्रेष्ठ हो गए और इस प्रकार उनकी दिग्विजय यात्रा संपूर्ण हुई। यह एक तरह से अद्वैत मत की विजय यात्रा भी थी, जिसने सभी मतों में भारत की महान सांस्कृतिक विरासत का विशद् प्रभाव उत्पन्न किया। फलत: जैन और बौद्ध मत तत्कालीन समय में निष्प्रभ होते गए और सनातन धर्म पुन: बलवान होकर सर्वत्र फैल गया। आचार्य शंकर के अद्वैत वेदांत दर्शन से पुनश्च सांस्कृतिक भारत की पुनर्प्रतिष्ठा का पथ प्रशस्त हुआ।
जब हम राष्ट्र के आध्यात्मिक उत्कर्ष के साक्षी अतीत पर दृष्टि डालते हैं, तो वैदिक वाङ्मय और उसके बाद के साहित्य व इतिहास में किसी भी ऐसी मानव विभूति का उल्लेख नहीं है जिसे सर्वज्ञ कहा गया है। ईश्वर के बाद यदि किसी को सर्वज्ञ कहा और माना गया है, तो वह हैं आदि शंकराचार्य। वे 8 वर्ष की वय में अपने गांव कालडी से मंडित मस्तक और कौपीन में संन्यास का शाश्वत बोध लिए भारत यात्रा के लिए निकले और मां शारदा की कृपा व आशीर्वाद से बाल शंकर अल्पजीवन के उत्तरार्ध में ही सर्वज्ञ, भगवत्पाद-शंकराचार्य बने।
अद्वितीय ज्ञान भूमि शारदा पीठ
पुराणों में इस पीठ को 18 शक्ति महापीठों में से एक माना गया है। श्रुति है कि सती का दाहिना हाथ यहीं गिरा था। शारदा पीठ केवल धर्म या अध्यात्म का ही केंद्र नहीं थी, बल्कि विश्व की अद्वितीय ज्ञान भूमि भी थी। कदाचित् यह पावन तीर्थ स्थली नालंदा और तक्षशिला से भी महत्वपूर्ण तथा विख्यात थी। कल्हण ने भी अपनी कृति ‘राजतरंगिणी’ में शारदा पीठ का विशद् वर्णन किया है। कनिष्क के राज्यकाल में शारदा पीठ सबसे महत्वपूर्ण ज्ञान और शिक्षा के केंद्र के रूप में अधिष्ठित रही, जहां समूचे विश्व से विद्यार्थी अध्ययन के लिए आया करते थे। उस समय कश्मीर की भाषा संस्कृत थी।
यहां ऋषि-मुनियों और यतियों-तपस्वियों के आश्रम थे। शारदा पीठ एक विश्वविद्यालय ही थी, जहां 14 विषयों की शिक्षा दी जाती थी। यहीं देवनागरी के समानांतर शारदा लिपि विकसित हुई और प्रचलन में आई।
आर्थर लेवलिन बैशम अपनी पुस्तक ‘वंडर दैट वाज इंडिया’ में लिखते हैं, ‘‘आचार्य शंकर के कालखंड में शारदा पीठ ज्ञान के केंद्र में स्थापित हो चुकी थी। उस समय कश्मीर भारत भर में ज्ञानतीर्थ बन चुका था। उपनयन संस्कार के समय बटुक उच्चारित करते थे- ‘कश्मीर गच्छामि’ यानी मैं कश्मीर जा रहा हूं। कश्मीर को अन्य रूप में देखने पर स्पष्ट होता है कि कश्मीर भारत के हृदय में धड़कता है, जिसने साहित्य और सिनेमा के रचना संस्कार को समृद्ध किया। मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर में साकार हो रहे एकात्म धाम में कश्मीरी स्थापत्य शैली में सर्वज्ञपीठ की प्रतिकृति तैयार हो रही है। मां वागीश्वरी शारदा की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ सर्वज्ञपीठ के बारे में जो कुछ भी उपलब्ध है, जिज्ञासुजन उन विषयों के बारे में सब कुछ जान सकेंगे। एकात्म धाम आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक आदिगुरु शंकराचार्य के विराट व्यक्तित्व-कृतित्व पर केंद्रित सांस्कृतिक लोक-वैभव को एक ही परिसर में देख सकेंगे एवं आचार्य शंकर के आत्मबोध-तत्वबोध से साक्षात्कार कर अध्यात्म की गंगा में डुबकी लगा सकेंगे।
एकात्म धाम में प्राचीन नगर कांचीपुरम संरचना से प्रेरित आचार्य गौड़पाद अद्वैत विस्तार केंद्र के निर्माण में हिमालयी क्षेत्र की स्थापत्य शैली दृष्टिगोचर होगी। कुल मिलाकर एकात्म धाम में प्राचीन परंपरिक संस्कृति और आधुनिकता का अनूठा संगम देखने को मिलेगा। इसके अतिरिक्त, डिजिटल पुस्तकालय में पांडुलिपियां-पुस्तकें, एम्फीथियेटर से लेकर बड़े सभागार भी पारंपरिक शैली में होंगे, लेकिन ये अत्याधुनिक तकनीक से भी सुसज्जित होंगे।
आचार्य शंकर की दीक्षा भूमि
एकात्म धाम में आचार्य शंकर के चारों शिष्यों के नाम से चार शोध केंद्र स्थापित किए जाएंगे। अंतरराष्ट्रीय अद्वैत वेदांत संस्थान द्वारा स्थापित किए जाने वाले शोध केंद्रों की विशिष्टता उनका वास्तुशिल्प और स्थापत्य शैलियां होंगी। एकात्म धाम में बनने वाले मंदिर नागर शैली के होंगे, जिसमें पारंपरिक वास्तुशिल्प जैसे- स्तंभ, छतरियां होंगी। वहीं, वैशिष्ट्य रूप में आचार्य शंकर के जीवन प्रसंगों को भित्तिचित्रों, मूर्तियों को माध्यम से दर्शाया जाएगा। शोध केंद्रों की स्थापत्य शिल्प कला में नागर, द्रविड़, ओडिया, मारू गुर्जर, होयसल, उत्तर भारतीय-हिमालयी और केरल मंदिर स्थापत्य सहित अनेक पारंपरिक वास्तुकला शैलियों को शामिल किया गया है। आचार्य पद्मपाद अद्वैत वेदांत दर्शन केंद्र की वास्तुकला भारत के पूर्वी क्षेत्र की संरचनात्मक शैली से प्रेरित होगी।
आचार्य सुरेश्वर अद्वैत सामाजिक विज्ञान केंद्र की वास्तुकला द्रविड़ शैली और पुरी के जगन्नाथ मंदिर की संरचना से प्रेरित होगी। वहीं, शृंगेरी शारदा पीठ और आसपास के मंदिरों से वास्तुकला सामीप्य रखने वाला गुजरात के द्वारिका मंदिर की झलक आचार्य हस्तामलक अद्वैत विज्ञान केंद्र की संरचना में दिखेगी, जबकि आचार्य तोटक साहित्य अद्वैत केंद्र की संरचना में उत्तर भारत की स्थापत्य शैली मूर्तरूप ले रही है। इसके अतिरिक्त आचार्य गोविंद भगवत्पाद गुरुकुल और आचार्य गौड़पाद अद्वैत विस्तार केंद्र का भी निर्माण होगा।
एकात्म धाम में प्राचीन नगर कांचीपुरम संरचना से प्रेरित आचार्य गौड़पाद अद्वैत विस्तार केंद्र के निर्माण में हिमालयी क्षेत्र की स्थापत्य शैली दृष्टिगोचर होगी। कुल मिलाकर एकात्म धाम में प्राचीन परंपरिक संस्कृति और आधुनिकता का अनूठा संगम देखने को मिलेगा। इसके अतिरिक्त, डिजिटल पुस्तकालय में पांडुलिपियां-पुस्तकें, एम्फीथियेटर से लेकर बड़े सभागार भी पारंपरिक शैली में होंगे, लेकिन ये अत्याधुनिक तकनीक से भी सुसज्जित होंगे।
भगवत्पाद आचार्य शंकर ने जिस पंचदेव पूजा का विधान देकर सांस्कृतिक एकता के सूत्रों को जन-जन तक पहुंचाया, उसी को निरूपित करने के लिए एकात्म धाम में ‘पंचायतन मंदिर’ का निर्माण हो रहा है। वहीं, अन्नपूर्णा में देशभर के विविध प्रदेशों और क्षेत्रों के पारंपरिक व्यंजन भी परोसे जाएंगे। शिल्प बाजार में सिद्धहस्त कारीगरों के उत्पाद व कृतियां भी होंगी। अभी तक हम नालंदा और तक्षशिला के बारे में सुनते और पढ़ते आए हैं। एकात्म धाम के साकार रूप में आने के बाद इस परिसर में भारत की संपूर्णता का ऐक्य हमारी दृष्टि के समक्ष जीवंत हो जाएगा।
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