भगवान् शंकराचार्य जी की दिव्य प्रतिमा हमें प्रेरणा देगी। यह गुरु की धरती भी है, जहां आद्य शंकर को भगवद् गोविंदपाद मिले और भगवद्पाद हमें यहां प्राप्त हुए।
मध्य प्रदेश में नर्मदा के तीरे एकात्म धाम में भगवान् ओंकारेश्वर पर्वत पर भगवद्पाद जगद्गुरु की भव्य और दिव्य प्रतिमा स्थापित करने का प्रकल्प अद्भुत है। आदि शंकराचार्य जी आज भारत के सांस्कृतिक स्वरूप का मेरुदंड बने हैं। यदि शंकराचार्य जी नहीं आते, तो हमारी संस्कृति इस तरह विकसित नहीं होती। आज जो हम संन्यास का स्वरूप देख रहे हैं, वह आद्यगुरु शंकराचार्य जी की ही देन है। यहां पर शंकर दूत बनाए जा रहे हैं, जो भगवान् शंकराचार्य के उपदेशों को लेकर लोगों के बीच जाएंगे। उन्हें श्रीमद्भगवद्गीता, ब्रह्मसूत्र इत्यादि का अभ्यास कराया जा रहा है, ताकि वे बहुत प्रभावी ढंग से लोगों को प्रभावित कर सकें। यहां बनने वाला विद्या प्रसार केंद्र लोगों को एकता और सत्य से परिचय कराएगा। यह एक अलौकिक दिव्य संस्थान सिद्ध होगा। इसके लिए नि:संदेह भगवान् शंकराचार्य जी की दिव्य प्रतिमा हमें प्रेरणा देगी। यह गुरु की धरती भी है, जहां आद्य शंकर को भगवद् गोविंदपाद मिले और भगवद्पाद हमें यहां प्राप्त हुए।
– स्वामी अवधेशानंद गिरि
जूना पीठाधीश्वर एवं आचार्य महामंडलेश्वर
मानवीय पहल नहीं, दैवीय संकल्प
आज का दिन सिर्फ भारतीयों के लिए नहीं, संपूर्ण विश्व के लिए बहुत ही प्रसन्नता का दिन है। ओंकारेश्वर में आद्यगुरु शंकराचार्य जी की विशाल प्रतिमा स्थापित हुई है। हम रोज नारा लगाते हैं कि धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो और विश्व का कल्याण हो। मुझे लग रहा है कि विश्व का कल्याण इन विचारों से होगा और उसका विचार केंद्र आज यहां पर स्थापित हुआ है। यह केवल भारतीयों के समझने के लिए नहीं है। यह सारे विश्व के मानवों के समझने के लिए है।
यहां जो केंद्र बना है, उसके लिए मुख्यमंत्री जी को बहुत-बहुत बधाई देते हैं। उनको एक और दायित्व सौंपता हूं कि हम लोग तो हैं ही वेदांत के प्रचार करने वाले, लेकिन और भी योजना बने, जिससे युवा इसके प्रचार के लिए निकलें। शिक्षक बनने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है। जो स्वयं पढ़कर नहीं समझते, यदि वे प्रचार के लिए निकलेंगे, तो उन्हें अधिक एकाग्रता, साधना और समाज के सामने उदाहरण प्रस्तुत करना पड़ेगा। इस दृष्टि से यह विश्व कल्याण के अभियान की शुरुआत है। ओंकारेश्वर में शंकराचार्य की प्रतिमा की स्थापना और अद्वैत धाम की पहल मानवीय नहीं, बल्कि ईश्वरीय या दैवीय संकल्प है।
ब्रह्म, मन-इंद्रियों का विषय नहीं है। यह सब आत्मा से हुआ है, इसलिए और कुछ नहीं है। आश्चर्य है कि नास्तिक जगत को सब कुछ मानते हैं। जगत मिथ्या है, जगत स्वप्न है, इसे समझाना आचार्य का मत है। इसलिए भगवान् शंकराचार्य के वेदांत दर्शन को आगे बढ़ाने वालों को अधिक ईमानदार होना पड़ेगा। केवल वाणी से नहीं, बल्कि इसे जी कर। देश में अभी बहुत समस्याएं हैं। अभी भी हम ऊंच-नीच जैसी छोटी-छोटी बातों में फंसे हुए हैं। साधु-महात्माओं में भी यह बीमारी आ जाती है। इस बीमारी को जड़ से उखाड़ो अर्थात् समस्याओं का जड़ उखाड़ो। पत्तियां और टहनी मत तोड़ो। ऐसी सब समस्या का समाधान आचार्य शंकर के सिद्धांत से हो सकता है।
– स्वामी परमानंद, अखंड परमधाम, हरिद्वार
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