मुंबई में एक पुस्तक लोकार्पण समारोह में जेएनयू की कुलपति शांतिश्री धूतिपुड़ी पंडित ने यह भी कहा है कि क्या तीस्ता की तरह और लोगों के लिए भी रात में न्यायालय का दरवाजा खुलेगा!!
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की कुलपति शांतिश्री धूतिपुड़ी पंडित ने भारतीय न्याय व्यवस्था पर एक गंभीर टिप्पणी की है। उन्होंने कहा है कि क्या तीस्ता सीतलवाड की तरह और लोगों के लिए भी रात में न्यायालय का दरवाजा खुलेगा! शांतिश्री ने सर्वोच्च न्यायालय के उस निर्णय की ओर इशारा किया है, जिसमें कथित सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड को राहत देने के लिए रात में ही न्यायालय के न्यायाधीश सक्रिय हो गए थे।
बता दें कि गत एक जुलाई को तीस्ता सीतलवाड को गिरफ्तारी से बचाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने रात में ही सुनवाई की और उसे गिरफ्तार होने से बचा लिया। यही नहीं, बाद में तीस्ता को लंबे समय तक राहत भी दे दी। तीस्ता पर आरोप है कि उसने गोधरा कांड के बाद गुजरात में भड़के दंगों में निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए फर्जी प्रमाण गढ़े थे। इस पर न्यायालय ने तीस्ता को समन जारी किया था। यही नहीं, उसकी गिरफ्तारी की भी पूरी संभावना थी। इसके बाद तीस्ता ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और उसे मनचाहा निर्णय मिल गया था। इसी निर्णय पर शांतिश्री का कहना था कि जिस तरह रात में ही तीस्ता के बारे में निर्णय लिया गया, उसी तरह और लोगों के लिए भी न्यायालय सक्रिय होगा क्या!
शांतिश्री धूतिपुड़ी पंडित मुंबई में मराठी पुस्तक ‘जगला पोखरनारी डेवी वालवी’ यानी ‘विश्व में कमजोर करने वाले वामंपथी दीमक’ का लोकार्पण करने के बाद बोल रही थीं। उहोंने यह भी कहा, ”मैं बचपन में बाल सेविका थी। मुझे मेरे संस्कार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से ही मिले हैं। ”मुझे गर्व है कि मैं आरएसएस से हूं और यह कहने में मैं बिल्कुल भी नहीं हिचकती हूं।” उन्होंने आगे कहा, ”वामपंथ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अलग—अगल विचारधाराएं हैं। 2014 के बाद इन दोनों विचारधाराओं के बीच संघर्ष में एक बड़ा बदलाव आया है।”
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