उदयनिधि स्टालिन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पुत्र, तमिलनाडु के विधान सभा के सदस्य एवं मंत्री ने कल एक आह्वान किया है कि सनातन धर्म का विनाश कर देना चाहिए। उन्होंने सनातन धर्म को कई महामारियों से तुलना की है। उनका यह आह्वान क्योंकि केवल हास्यस्पद ही नहीं है अपितु अति दुर्भाग्यपूर्ण एवं दुखद है और उनके अज्ञान का परिचायक है। इस वक्तव्य से अपनी ही तमिलनाडु की महान संस्कृति का अपमान किया है। मुरुगन, कार्तिकेय, संगम साहित्य, भक्ति काव्यश्री अण्डाल, महाकाव्य सिलप्पदिकरम्, मणिमेखलाई, तिरुवल्लुवर, तिरुक्कुरल इन सबका अपमान है।
उनके ये शब्द केवल तमिलनाडु ही नहीं सम्पूर्ण भारतवर्ष एवं उसके महान बौद्धिक इतिहास का अपमान है। हो सकता है उन्होंने वेद, उपनिषद, उपवेद, पुराण, रामायण, महाभारत, ब्राह्मण ग्रन्थ, प्रतिसाख्य, धर्मशास्त्र इत्यादि का नाम न सुना हो। इन सबको जानने के लिए एक अच्छी शिक्षा – और अच्छे गुरु के पास रहना आवश्यक है।
भारतीय सनातन संस्कृति की जो नाम माला है उसमें कुछ मोती ये ऋषि हैं- वाल्मीकि, वेद व्यास, कश्यप, चरक, जैमिनी, कणाद, पाणिनि, नागार्जुन, पतंजलि, भास्कराचार्य, चाणक्य, शंकराचार्य, रामानुजचार्य, माधवाचार्य, चैतन्य महाप्रभु, स्वामी हरिदास, ज्ञानेश्वर, नामदेव, कबीरदास, गुरू नानक, गुरू अर्जन देव, सूरदास, मीराबाई, एकनाथ, तुकाराम, जयदेव, सरलादास, शंकरदेव, दयानंद सरस्वती कुछ प्रकाश स्रोत हैं।
इन सबको नकारना अपने होने को ही नकारना है। उदय नहीं जानते कि तमिलनाडु भारतीय संस्कृति का रक्षक और गढ़ रहा है। चोल से चालुक्य तक जितने दक्षिण के राजवंश हुए हैं सबके सब सनातन धर्म के रक्षक थे। केवल रक्षक ही नहीं उनके द्वारा निर्मित सनातन मन्दिर वृहदेश्वर, श्रीरंगम, कपलिश्वर, विश्व की प्रत्यक्ष धरोहर का अभिन्न अंग और भारतीय संस्कृति की अमूल्य विभूतियाँ हैं । सनातन धर्म अब्राह्मिक नहीं है। ये विश्व की सबसे प्राचीनतम और अब तक की जीवित जीवन शैली है। विदेशियों की नकल पर उनके द्वारा फैलाई गयी भ्रान्तियों के आधार पर वर्ण व्यवस्था को कास्ट सिस्टम कहना एवं एक अन्यायपूर्ण, अक्षुण्ण, जन्म आधारित परम्परा मानना उच्च कोटि का अज्ञान है। विश्व का कोई भी समाज नहीं जिसमें चार भाग न हों- सोचने वाले, रक्षा करने वाले, धन उपार्जन वाले एवं पूरे समाज की व्यवस्थाओं की देखरेख करने वाले हो और यही वर्ण व्यवस्था है और यह जन्मजात नहीं है। ये वर्ण व्यवस्था सनातन धर्म में कभी भी अन्यायपूर्ण नहीं थी परन्तु 11वीं-12वीं शताब्दी के बाद मध्य युग में और आधुनिक ब्रिटिश काल में राजनीति कारणों से इसको तोड़-मरोड़कर जाति व्यवस्था का रूप दे दिया गया और जन्मना बना दिया गया। इसमें दोष धर्म का नहीं, राज्य करने वालों का है।
इन देशों में हैं सनातन के पदचिन्ह
उदयनिधि को ही पता ही होगा कि सनातन धर्म के पदचिन्ह पूरे विश्व में मिलते हैं- ब्रिटेन, अमेरिका, आयरलैण्ड, मिस्र, वियतनाम, थाइलैण्ड, मलेशिया, कम्बोडिया, जापान, जर्मनी, रूस, मंगोलिया, ईरान, इराक, अफगानिस्तान, आस्ट्रेलिया, मैक्सिको, अर्जेन्टीना, अब आदि जैसे देशों में भी पदचिन्ह उपलब्ध है।
शत्रु मिट गए परन्तु सनातन नहीं
तदनुसार सनातन धर्म की हत्या भारत में करने से कुछ न होगा। भारत में भी सनातन धर्म के शत्रु हजारों सालों से रहे हैं। शत्रु मिट गये परन्तु सनातन धर्म नहीं। यूनाइटेड नेशन्स के अनुसार मानवता के इतिहास में जो 46 संस्कृतियां हुई हैं सब नष्ट हो गईं, केवल सनातन धर्म ही जीवित है और जीवित रहेगा। एवरेस्ट की चोटी से माथा टकराने से माथा ही फूटेगा।
उसी दिन वेदविरोधी भी पैदा हुए
भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म के विषय में वैश्विक स्तर पर इसी प्रकार का दुष्प्रचार विभिन्न औपनिवेशिक मानसिक विचारधारा के व्यक्तियों / संस्थाओं द्वारा पिछले कई वर्षों से किया गया है लेकिन माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बनाए गये परितंत्र (इकोसिस्टम) के कारण ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण और समकालीन रूप से प्रासंगिक भारतीय संस्कृति की बौद्धिक एवं जीवन मूल्य को पूरा विश्व पहचान रहा है। इस प्रकार का दुराग्रह भारत के इतिहास में नया नहीं है। जिस दिन वेदों का निर्माण हुआ उसी दिन वेद विरोधी भी पैदा हुए क्योंकि उन विरोधियों के विरोध में प्रकाण्ड विद्वानों ने भारत के ज्ञान और संस्कृति की रक्षा की, इसी कारण से भारत की संस्कृति आज भी जीवित है और इसके तीन मूल सिद्धांतों “सर्वे भवन्तु सुखिन: ” ( सभी प्रसन्न हों), “वसुधैव कुटुम्बकम्” (पृथ्वी ही परिवार है), “सत-चित-आनन्द” (सत्य की खोज करने वाले सभी लोगों के लिए शाश्वत आनन्द) का विनाश कभी हो ही नहीं सकता है।
(लेखक आई.ए.एस. (से.नि.) और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव हैं।)
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