‘ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों के लिए जांच समिति’ (क्रिश्चियन मिशनरीज एक्टीविटिज इन्क्वायरी कमेटी) कहा गया। इस समिति को मध्य प्रदेश सरकार ने 14 अप्रैल, 1954 को एक प्रस्ताव पारित कर स्थापित किया।
मध्य प्रदेश से ईसाई मिशनरियों द्वारा वनवासी बंधुओं के बड़े पैमाने पर कन्वर्जन की जानकारी सामने आने के बाद वस्तुस्थिति का आकलन करने के लिए मध्य प्रदेश की राज्य सरकार द्वारा न्यायमूर्ति भवानी शंकर नियोगी (मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय से मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता में ‘ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों के लिए जांच समिति’ (क्रिश्चियन मिशनरीज एक्टीविटिज इन्क्वायरी कमेटी) कहा गया। इस समिति को मध्य प्रदेश सरकार ने 14 अप्रैल, 1954 को एक प्रस्ताव पारित कर स्थापित किया।एक समिति गठित की गई थी। इसे
इस समिति ने वस्तुस्थिति जानने के लिए 14 जिलों का दौरा किया था। समिति ने 77 केंद्रों पर प्रवास किया व 11,360 लोगों से संपर्क किया। 1956 में दो खंडों में अपनी रिपोर्ट दी। रिपोर्ट का सार यह था कि साम, दाम, दंड, भेद द्वारा ईसाई मिशनरी वनवासियों का बड़े पैमाने पर कन्वर्जन कर रही हैं। समिति ने पाया कि चर्च एक अन्तरराट्रीय षड््यंत्र का हिस्सा है। चर्च के कार्यक्रम का मूल उद्देश्य कन्वर्जन के माध्यम से राष्ट्रांतरण है।समिति ने अपनी रिपोर्ट में कुछ अनुशंसाएं भी की थीं। इनमें मुख्य थीं जिन मिशनरियों का मुख्य उद्देश्य केवल कन्वर्जन है, उन्हें वापस जाने के लिए कहा जाए।
मत प्रचार के लिए जो भी साहित्य हो, वह बिना सरकार की अनुमति लिए वितरित नहीं किया जाना चाहिए। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में चर्च के सुनियोजित भारत विरोधी कार्यों के प्रति ना केवल आगाह किया था बल्कि ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों की काली करतूतों का कच्चा चिट्ठा प्रस्तुत किया था।
देश के भीतर विदेशी मिशनरियों का बड़ी संख्या में आना अवांछनीय है और इसकी रोकथाम होनी चाहिए। समिति ने अपनी दूसरी सिफारिश में कहा कि भारतीय चर्च एक संयुक्त ईसाई चर्च की स्थापना करे, जो विदेश से आने वाली सहायता पर निर्भर न रहे। इसके अलावा दबाव, छल-कपट, भय, आर्थिक या दूसरे प्रकार की किसी भी सहायता का आश्वासन देकर, मानसिक दुर्बलता तथा भोलेपन का लाभ उठाकर कन्वर्जन के प्रयास पर पूर्ण प्रतिबंध हो।
साथ ही ऐसी चिकित्सा संबंधी सेवाओं तथा अन्य सेवाएं, जो कन्वर्जन के काम में लाई जाती हों, उसे कानून द्वारा प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि सरकार का यह पहला कर्तव्य है कि वह अनाथालयों का स्वयं संचालन करे, क्योंकि जिन नाबालिगों के माता-पिता या संरक्षक नहीं हैं, उनकी वैधानिक संरक्षक सरकार ही है।
मत प्रचार के लिए जो भी साहित्य हो, वह बिना सरकार की अनुमति लिए वितरित नहीं किया जाना चाहिए। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में चर्च के सुनियोजित भारत विरोधी कार्यों के प्रति ना केवल आगाह किया था बल्कि ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों की काली करतूतों का कच्चा चिट्ठा प्रस्तुत किया था।
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