झारखंड की राजधानी राँची के पास से होकर गुजरने वाली स्वर्णरेखा नदी पूरी तरह प्रदूषित हो चुकी है । दरअसल इस नदी की एक सहायक नदी है हरमू। हरमू नदी के जरिये रांची और उसके आसपास के क्षेत्रों का मल-मूत्र और गंदगी स्वर्णरेखा नदी में गिरती है।
इस कारण स्वर्णरेखा नदी का अस्तित्व ही यहां समाप्त होता दिखाई दे रहा है। बता दें कि हरमू नदी चुटिया नामक स्थान पर स्वर्णरेखा नदी से मिलती है। दोनों नदियों के इस संगम स्थल पर लगभग 400 वर्ष पुराने इक्कीस शिवलिंग हैं। इनका निर्माण 16वीं शताब्दी में नागवंशी शाशकों ने किया था। कहा जाता है कि उन दिनों यह क्षेत्र नागवंशी शाशकों की राजधानी हुआ करता था। इतिहासकारों के अनुसार राजघराने के लोग प्रतिदिन यहां पूजा-पाठ किया करते थे।
दोनों नदियों के प्रदूषण के कारण इन शिवलिंगों का क्षरण हो रहा है। इस कारण इस धार्मिक स्थान की पहचान भी धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है। इससे कई संगठन और व्यक्ति चिंतित हैं। यही कारण है कि पिछले अनेक वर्षों से यह मांग उठ रही है कि दोनों नदियों को प्रदूषण-मुक्त कर इन शिवलिंगों को बचाया जाए। इसके बावजूद ना तो प्रशासन ने उनकी सुनी और ना ही किसी सक्षम एजेंसी ने। अब इन नदियों को प्रदूषण-मुक्त करने का बीड़ा स्वतंत्र पत्रकार सुधीर शर्मा ने उठाया है। लोकजागरण के लिए उन्होंने सोशल मीडिया का सहारा लिया है। उन्होंने इन शिवलिंगों की दुर्दशा और इन नदियों के प्रदूषण पर एक वीडियो बनाया है, जो इन दिनों काफी वायरल हो रहा है। इस वीडियो में वे अपनी आंखों और मुँह में पट्टी बांध कर एक प्ले कार्ड के माध्यम से लोगों से पूछ रहे हैं कि नदियों के प्रदूषण और शिवलिंगों की दुर्दशा पर आप अपनी आंखें कब खोलेंगे। इसके साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से दोनों नदियों और शिवलिंगों को बचाने की अपील की है। उनकी इस अपील का असर भी होता दिख रहा है। रांची के भजपा सांसद संजय सेठ ने रांची के उपायुक्त से कहा है कि स्वर्णरेखा नदी और हरमू नदी के संगम स्थल की सफाई सुनिश्चित की जाए। उन्होंने यह भी कहा है कि सावन महीने में इस स्थल पर प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं। इसीलिए इस धार्मिक स्थल की पवित्रता को बनाये रखने के लिए साफ-सफाई जरूरी है।
लोगों को इस मुद्दे से जोड़ने के लिए ही कल यानी 13 अगस्त को स्वर्णरेखा के उद्गम स्थल रानीचुआं से संगम स्थल तक कांवर यात्रा निकाली जा रही है। उम्मीद है कि इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेंगे और 21 किलोमीटर पैदल चलकर शिवलिंगों पर जल अर्पित करेंगे।
आपको बता दें कि राँची के रानीचुआं से निकलकर सीधे बंगाल की खाड़ी में मिलने वाली 474 किलोमीटर लंबी स्वर्णरेखा नदी अपने रेतकणों में सोना लेकर बहने के लिए विख्यात है। राँची और इसके आसपास के क्षेत्रों में आज भी ग्रामीण इस नदी के रेतकणों को छानकर सोने के कण निकालते हैं। राँची से सटे मूरी के आसपास कई लोग बालू से सोना निकालकर ही अपनी अजीविका चलाते हैं।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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