हॉलीवुड की इस फिल्म के माध्यम से पुन: हिंदू धर्म का अपमान किया गया है। ओपेनहाइमर के जीवन पर बनी इस फिल्म में यौन सम्बन्ध बनाते समय गीता के श्लोक पढ़ते हुए दिखाया गया है। फिल्म देखने वाले दर्शकों के अनुसार यह लगभग 3 से 4 मिनट का दृश्य है।
परमाणु बम के जनक जे. जॉर्ज ओपेनहाइमर की कहानी पर आधारित हालिया रिलीज फिल्म ओपेनहाइमर विवादों में है। हॉलीवुड की इस फिल्म के माध्यम से पुन: हिंदू धर्म का अपमान किया गया है। ओपेनहाइमर के जीवन पर बनी इस फिल्म में यौन सम्बन्ध बनाते समय गीता के श्लोक पढ़ते हुए दिखाया गया है। फिल्म देखने वाले दर्शकों के अनुसार यह लगभग 3 से 4 मिनट का दृश्य है। तीन से चार मिनट तक के इस अंतरंग दृश्य में गीता के श्लोकों का उच्चारण किसलिए आवश्यक हो सकता है? इसी विषय को लेकर दर्शकों में बहुत गुस्सा है।
हिंदुओं के मंदिर,
हिंदुओं के ग्रन्थ एवं हिंदुओं की परम्पराएं वे विशिष्ट अवधारणाएं हैं,
जो उनके ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’’
के सिद्धांत को परिलक्षित करती हैं। जब विभिन्न माध्यमों से उन पर प्रहार किया जाता है तो आम जनमानस में उनकी छवि पर प्रभाव पड़ता है।
इस फिल्म को लेकर ‘सेव कल्चर एंड सेव इंडिया फाउंडेशन’ के अध्यक्ष तथा केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय माहूरकर ने क्रिस्टोफर नोलन को खुला पत्र लिखा है। उन्होंने इस पत्र में लिखा है कि भारतीयों के हृदय में श्रीमद्भगवतगीता का विशेष स्थान है। यह हिंदुओं के सबसे पवित्र ग्रन्थों में से एक है। गीता निस्वार्थ कार्य करने वालों एवं आत्मनियंत्रण का जीवन जीने वाले असंख्य संन्यासियों, ब्रह्मचारियों एवं कई महान लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है। उन्होंने आगे लिखा,
‘‘यह नहीं पता कि आखिर एक वैज्ञानिक के जीवन पर बनी फिल्म में इस अनावश्यक दृश्य के पीछे क्या प्रेरणा एवं तर्क हो सकता है। मगर यह करोड़ों हिंदुओं की आस्था पर सीधा प्रहार है और प्रकारांतर से हिंदू विरोधी शक्तियों द्वारा किया गया कोई षड्यंत्र ही प्रतीत होता है।’’
जब इस फिल्म की चर्चा आरम्भ हुई थी, तो बार-बार कहा जा रहा था कि सिलियन मर्फी ने इस फिल्म में गीता के श्लोक पढ़े हैं और यह भी कहा गया था कि उन्होंने इस फिल्म की तैयारी के लिए श्रीमद्भगवत गीता का अध्ययन किया था। इन समाचारों से कई लोगों में एक गर्व का भाव आ रहा था। लोगों ने कहा था कि यही सनातन की शक्ति है। तो क्या पश्चिम से प्रमाणपत्र मिलने पर ही हम सनातन पर गर्व कर सकेंगे?
यह सत्य है कि सनातन की शक्ति वास्तव में सभी को साथ लेकर चलने एवं सहिष्णुता में है। वरना क्या हॉलीवुड कोई ऐसी फिल्म बना सकता है जिसमें इस्लाम या ईसाइयत के विरुद्ध कुछ भी अपमानजनक हो? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को वहां भी मात्र हिंदू धर्म तक सीमित कर दिया गया है। क्या यह संयोग है कि भारत से लेकर अमेरिका तक, जिसे भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर कोई भी पांथिक प्रयोग अपनी फिल्मों में करना होता है तो वह केवल और केवल हिंदू धर्म को ही लेकर ऐसा करता है?
अब भारत का लोक अपने साथ होने वाले इस षड्यंत्र को समझने लगा है और इसका प्रतिकार करता है। यही कारण है कि ओपेनहाइमर को लेकर जनता ने विरोध करना आरम्भ किया।
किसी विदेशी फिल्म में हिंदू धर्म का अपमान पहली बार नहीं हुआ है, और न ही संभवतया यह अंतिम बार होगा। भारत से लेकर अमेरिका तक कथित प्रगतिशील फिल्म निर्माताओं का हिंदू धर्म के प्रति एक अजीब सी घृणा से भरा हुआ दृष्टिकोण है। अभी बहुत दिन नहीं हुए जब भारत की ही प्रियंका चोपड़ा अभिनीत एक वेबसीरीज क्वांटिको आयी थी।
प्रियंका के कारण इस वेबसीरीज को लेकर भी भारतीयों के दिल में उत्साह था। परन्तु वह वेबसीरीज दरअसल हिंदुओं का विमर्श के स्तर पर किया गया सबसे बड़ा अपमान और आघात था। प्रियंका चोपड़ा अभिनीत इस वेबसीरीज में उस षड्यंत्र को ही विमर्श के स्तर पर आगे बढ़ाया गया था, जिसके दायरे में कभी उर्दूवर्ल्ड तो कभी सेक्युलर नेताओं ने हिंदुओं को लाना चाहा था। अर्थात ‘हिंदू आतंकवाद’!
भारत में इसे विमर्श के रूप में स्थापित करने के लिए कई कदम उठाये गये। सुनियोजित तरीके से प्रमाण एवं कथित प्रत्यक्षदर्शियों का निर्माण किया गया। फिर भी यह षड्यंत्र विफल रहा। और जो झूठ भारत में विमर्श से स्वत: ही गायब हो गया, उसे एक अमेरिकी वेबसीरीज क्वांटिको के जरिये जीवित करने का प्रयास किया गया। परन्तु यह भी सत्य है कि जैसे आज ओपेनहाइमर का विरोध आम जनता कर रही है, और हर मंच पर कर रही है, वैसे ही उस समय हुआ था और इसी का परिणाम है कि प्रियंका चोपड़ा को क्षमा मांगनी पड़ी थी।
बार-बार अपमान क्यों?
यद्यपि ऊपर दो ही उदाहरण दिये हैं, परन्तु इन घटनाओं का दायरा विस्तृत है। पश्चिम कभी हैलोवीन के नाम पर मां काली का अपमान करता है तो कभी फिल्म के जरिये पवित्र गीता का। आखिर इसका कारण क्या है? क्या कारण है कि अब्राह्मिक मजहब इस कथित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे से बाहर रह जाते हैं और हिंदू धर्म को प्रयोगशाला बना लिया जाता है?
क्या इसका एक कारण यह है कि हिन्दी फिल्मों की एक लम्बी शृंखला ऐसी है, जिसमें हिंदू धर्म का अपमान एक आवश्यक तत्व रहा है, फिर चाहे वह श्वेत-श्याम फिल्में हों या फिर अभी हालिया रिलीज ब्रह्मास्त्र जैसी फिल्में, या फिर हैदर जैसी फिल्म जिसमें कश्मीर के सूर्य मंदिर को ‘शैतान का घर’ बताया गया था। यह अवधारणात्मक रूप से किया गया आक्रमण था, जो प्रतीक पर था। या फिर भारतीय-कनाडाई फिल्म ‘फायर’, जो हालांकि आधारित तो थी इस्मत चुगतई की कहानी लिहाफ पर, परन्तु उसमें दो मुख्य महिला कलाकारों का नाम, जिनमें समलैंगिक सम्बन्ध बनते हैं, राधा और सीता रखा गया था!
सरकार के स्तर पर भी केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने सेंसर बोर्ड से स्पष्टीकरण मांगा है कि आखिर कैसे इस दृश्य को अनुमति प्रदान कर दी गयी! परन्तु यहां अधिक महत्वपूर्ण है कि एक समाज के रूप में हिंदू कैसे अपने ग्रंथों के इस अपमान का प्रतिकार करते हैं। आवश्यकता विमर्श के स्तर पर इस विष से पार पाने की है। फिर चाहे ओपेनहाइमर हो, फायर हो, स्लमडॉग मिलियनेयर हो या क्वांटिको जैसी वेबसीरीज, विरोध तो करना ही होगा।
अर्थात हिंदुओं के दो आराध्य नामों को समलैंगिकता से जोड़ दिया गया था। हिंदुओं के मंदिर, हिंदुओं के ग्रन्थ एवं हिंदुओं की परम्पराएं वे विशिष्ट अवधारणाएं हैं, जो उनके ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’’ के सिद्धांत को परिलक्षित करती हैं। जब विभिन्न माध्यमों से उन पर प्रहार किया जाता है तो आम जनमानस में उनकी छवि पर प्रभाव पड़ता है।
वैसे बॉलीवुड ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हिंदू धर्म के साथ इतने खेल किये हैं, कि कहीं न कहीं उनसे प्रेरणा लेकर ही हॉलीवुड भी हिंदू धर्म के प्रतीकों का खुलकर अपमान करने लगा है। इतना ही नहीं, भारत के फिल्म निर्माताओं ने कहीं न कहीं भारत की गरीबी को ही बेचकर आत्महीनता की जिस छवि का निर्माण किया था, उसी का विस्तार डेनी बॉयल की फिल्म स्लम डॉग मिलियनेयर में होता है, जिसमें धारावी के इर्दगिर्द का गरीबी का जीवन दिखाया गया था।
पश्चिम की और पश्चिम के इशारे पर चलने वाले भारत के कथित प्रगतिशील वर्ग की सोच अभी तक भारत के प्रति औपनिवेशिक ही रही है, जिसमें वह हिंदू धर्म को कथित सहिष्णुता के दायरे में लाकर अपमानित करते हैं, क्योंकि उनकी दृष्टि में भारत अभी तक सांप-संपेरों का देश है। और चूंकि भारत की सबसे बड़ी शक्ति उसका हिंदू आस्था वाला लोक है, जो सर्व कल्याण की भावना का विस्तार करता है, तो उस पर आक्रमण करके भारत की चेतना पर आघात करने का विफल प्रयास किया जाता है।
यह हर्ष का विषय है कि अब भारत का लोक अपने साथ होने वाले इस षड्यंत्र को समझने लगा है और इसका प्रतिकार करता है। यही कारण है कि ओपेनहाइमर को लेकर जनता ने विरोध करना आरम्भ किया।
सोशल मीडिया पर विरोध किया गया, सरकार के स्तर पर भी केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने सेंसर बोर्ड से स्पष्टीकरण मांगा है कि आखिर कैसे इस दृश्य को अनुमति प्रदान कर दी गयी! परन्तु यहां अधिक महत्वपूर्ण है कि एक समाज के रूप में हिंदू कैसे अपने ग्रंथों के इस अपमान का प्रतिकार करते हैं। आवश्यकता विमर्श के स्तर पर इस विष से पार पाने की है। फिर चाहे ओपेनहाइमर हो, फायर हो, स्लमडॉग मिलियनेयर हो या क्वांटिको जैसी वेबसीरीज, विरोध तो करना ही होगा।
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