चारों ओर मुस्कराती हरियाली और दूर से दिखाई देतीं पर्वत चोटियां… बहुत ही मनोहारी दृश्य। लगभग आधे घण्टे बाद हम पातालपानी पहुंच गये। वहां पर दो झरने बह रहे थे, एक बायीं ओर से दूसरा दायीं ओर से। दोनों झरने एक जगह लगभग 300 फुट की गहराई पर नीचे गिर रहे थे जहां एक कुण्ड बन गया था।
मैं तब इन्दौर में था। मेरी इच्छा हुई कि कसी नई जगह घूमूं। कई लोगों से पूछा तो उन्होंने कहा कि यहां से लगभग बीस किलोमीटर दूर महू कस्बा है। उससे थोड़ा आगे पातालपानी नामक जगह है, आप वहां घूमने जा सकते हैं। अगले दिन सुबह तैयार होकर मैं होटल से बाहर निकला। वहां पहुंचने का एकमात्र साधन आटोरिक्शा ही था। मैंने एक आटोरिक्शे वाले से बात की और चल पड़ा। कुछ देर बाद हम महू कस्बे के भीतर से गुजर रहे थे। फिर हम बाहर निकल आए और लगभग सुनसान-सी पतली सड़क पर आगे बढ़े।
कुछ दूर बाद पहाड़ी रास्ता शुरू हो गया। चारों ओर मुस्कराती हरियाली और दूर से दिखाई देतीं पर्वत चोटियां… बहुत ही मनोहारी दृश्य। लगभग आधे घण्टे बाद हम पातालपानी पहुंच गये। वहां पर दो झरने बह रहे थे, एक बायीं ओर से दूसरा दायीं ओर से। दोनों झरने एक जगह लगभग 300 फुट की गहराई पर नीचे गिर रहे थे जहां एक कुण्ड बन गया था। पीछे से आ रही घाटी वहां के कुण्ड से आगे एकदम से फैल गई थी और सिवाय पेड़ों के कुछ नजर नहीं आ रहा था। घाटी के सामने ही रेलवे लाइन थी। वहां पातालपानी नाम से एक स्टेशन भी था।
आज पातालपानी को एक खूबसूरत पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है। इन्दौर, उज्जैन आने वाले पर्यटक पातालपानी के साथ-साथ मांडू एवं महेश्वर पहुंच नर्मदा की लहरों के साथ अठखेलियां कर सकते हैं और यहां के मनोरम दृश्यों का आनन्द ले सकते हैं।
मैं एक झरने को पार करने की ताक में था कि अनायास एक बोर्ड पर मेरी नजर पड़ी। लिखा था, ‘सावधान, यहां अचानक पानी का रेला आ सकता है। इस झरने को पार करते समय सावधानी बरतें। अब तक यहां 100 लोगों की झरने के पानी में बहने से मौत हो चुकी है। अगला नंबर आपका हो सकता है।’ मुझे सिहरन-सी होने लगी। मैंने एक स्थानीय आदमी से पूछा तो उसने बताया कि गर्मियों में तो यहां पानी बहुत कम होता है पर बरसात के दिनों में कभी-कभी अचानक इन झरनों में पीछे से पानी का रेला आ जाता है और उस समय जो भी झरने के बीच में होता है, उसका बचना असम्भव हो जाता है। पानी पहले उसे सौ फुट नीचे गिराता है और फिर आगे बहा ले जाता है।
वहां के एक दुकानदार ने बताया कि इस जगह का नाम पातालपानी इसलिए है कि ये दोनों झरने जहां गिरते हैं, वहां एक कुण्ड बना हुआ है और वह इतना गहरा है कि इसकी पहुंच पाताल तक मानी जाती है। इसीलिए इस जगह का नाम पातालपानी है।
जुलाई 2011 में मैंने अखबारों में पातालपानी के बारे में एक भयावह समाचार पढ़ा था। उस दिन वहां एक परिवार के सदस्य झरने के बीच में और आसपास की चट्टानों पर बैठकर पिकनिक मना रहे थे। उसी समय पीछे से पानी का रेला आया। चेतावनी न मानने की सजा उस परिवार को बहुत भयानक मिली। पानी में पूरा परिवार बह गया। वहां मौजूद लोगों के बचाव प्रयासों से दो लोग तो बचा लिये गये परन्तु तीन लोगों के शवों को कई दिन बाद कुछ दूर आगे से बरामद किया गया।
इन मौतों के बाद सरकार ने कुछ जरूरी कदम उठाये। उस झरने पर एक सुन्दर सा पुल बना दिया गया था और जो दायीं ओर का झरना था, वहां कंटीले तार लगा दिये गये थे। पिछली बार उस खूबसूरत जगह पर जहां भयानक खतरे की झलक दिखाई दी थी, अब वहां प्रकृति भी मन्द-मन्द मुस्करा रही थी। वैसे प्रकृति जहां भी अपने सुन्दरतम रूप में होती है, वहीं आसपास खतरे भी मंड़राते रहते हैं।
आज पातालपानी को एक खूबसूरत पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है। इन्दौर, उज्जैन आने वाले पर्यटक पातालपानी के साथ-साथ मांडू एवं महेश्वर पहुंच नर्मदा की लहरों के साथ अठखेलियां कर सकते हैं और यहां के मनोरम दृश्यों का आनन्द ले सकते हैं।
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