पहली बार इसरो की किसी परियोजना में इतनी बड़ी संख्या में महिला वैज्ञानिकों को शामिल किया गया था। इसके बाद इसरो के दूसरे महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 में महिला वैज्ञानिकों की भागीदारी बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई। इस मिशन की जिम्मेदारी दो महिला वैज्ञानिकों ऋतु करिधर और एम. वनिता के कंधों पर थी।
हाल के वर्षों में विज्ञान के क्षेत्र में भारत की कई महिला वैज्ञानिकों ने अपनी उपस्थिति दर्ज की है। महिला वैज्ञानिकों ने ही इसरो की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘मिशन मंगल’ को सफल बनाया था। इस मिशन में इसरो के दस केंद्रों से 500 वैज्ञानिकों को शामिल किया गया था। इनमें कम से कम 27 प्रतिशत प्रमुख कार्यकारी पदों पर महिलाएं थीं।
इस मिशन का नेतृत्व करने वाले दल में 8 महिला वैज्ञानिक थीं। पहली बार इसरो की किसी परियोजना में इतनी बड़ी संख्या में महिला वैज्ञानिकों को शामिल किया गया था। इसके बाद इसरो के दूसरे महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 में महिला वैज्ञानिकों की भागीदारी बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई। इस मिशन की जिम्मेदारी दो महिला वैज्ञानिकों ऋतु करिधर और एम. वनिता के कंधों पर थी।
ऋतु चंद्रयान-2 की मिशन निदेशक थीं, जिन्होंने चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण का नेतृत्व किया। ‘रॉकेट वुमन’ नाम से विख्यात अंतरिक्ष विज्ञानी ऋतु चंद्रयान-1 में उप-अभियान निदेशक रह चुकी हैं। वहीं, वनिता चंद्रयान-2 की परियोजना निदेशक थीं। इसके पहले इसरो ने वीआर ललितांबिका को मानव मिशन गगनयान का निदेशक बनाया।
नंदिनी ने इसरो से ही करियर की शुरुआत की है। वहीं, कम्प्यूटर वैज्ञानिक कीर्ति फौजदार का काम उपग्रह को उनकी कक्षा में स्थापित करना तथा उपग्रहों वह अन्य मिशन पर निगाह रखती हैं। इसी तरह, एन. वलारमती ने देश के पहले देशी रडार इमेजिंग उपग्रह री-सैट-1 के प्रक्षेपण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। टीके अनुराधा के बाद वलारमती इसरो के उपग्रह मिशन की प्रमुख बनने वाली दूसरी महिला अधिकारी हैं। वहीं, मिसाइल महिला टेसी थॉमस इसरो और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ), दोनों के लिए काम करती हैं। उन्होंने अग्नि-4 और अग्नि-5 के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
ऋतु को 2007 में ‘युवा वैज्ञानिक पुरस्कार’, जबकि एम. वनिता को 2006 में श्रेष्ठ महिला वैज्ञानिक पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इन दोनों के अलावा, अनुराधा टीके इसरो में संचार उपग्रह और नाविक इंस्टॉलेशन विशेषज्ञ हैं। इसके अलावा, मंगल मिशन में मौमिता दत्ता परियोजना प्रबंधक थीं, जो मेक इन इंडिया का हिस्सा हैं और प्रकाश विज्ञान के क्षेत्र में इसरो की टीम का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। मिशन मंगल में मीनल संपत, मौमिता दत्ता, अनुराधा टीके, नंदिनी हरिनाथ ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
नंदिनी ने इसरो से ही करियर की शुरुआत की है। वहीं, कम्प्यूटर वैज्ञानिक कीर्ति फौजदार का काम उपग्रह को उनकी कक्षा में स्थापित करना तथा उपग्रहों वह अन्य मिशन पर निगाह रखती हैं। इसी तरह, एन. वलारमती ने देश के पहले देशी रडार इमेजिंग उपग्रह री-सैट-1 के प्रक्षेपण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। टीके अनुराधा के बाद वलारमती इसरो के उपग्रह मिशन की प्रमुख बनने वाली दूसरी महिला अधिकारी हैं। वहीं, मिसाइल महिला टेसी थॉमस इसरो और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ), दोनों के लिए काम करती हैं। उन्होंने अग्नि-4 और अग्नि-5 के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
इसी तरह, फरवरी 2019 में नल्लाथंबी कलाइसेल्वी वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) का महानिदेशक बनाया गया। वह सीएसआईआर में इस पर नियुक्त होने वाली पहली महिला हैं। इससे पहले नल्लाथंबी देश के 38 प्रमुख अनुसंधान संस्थानों में सर्वोच्च पद रह चुकी हैं। इनके नाम 125 से भी अधिक शोध पत्र और 6 पेटेंट दर्ज हैं। फिलहाल नल्लाथंबी लिथियम आयन बैटरी पर शोध कर रही हैं।
मौतें होती रहीं, किसी ने सुध नहीं ली
लंबे समय से परमाणु कार्यक्रमों से जुड़े भारत के वैज्ञानिक षड़यंत्र के शिकार हो रहे हैं या संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मौत हो रही है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारत के परमाणु केंद्रों में तैनात 70 प्रतिशत वैज्ञानिकों-शोधार्थियों की मौत कैंसर से हुई। मुंबई के आरटीआईकार्यकर्ता चेतन कोठारी ने 1995 से 2014 तक 19 परमाणु केंद्रों में कार्यरत 3,887 वैज्ञानिकों-शोधार्थियों की मौत का दावा किया था। इनमें 2600 मौतें कैंसर से हुई थीं। कोठारी के अनुसार, 1995 से मार्च 2010 तक सर्वाधिक 74 कथित आत्महत्या झारखंड स्थित यूरेनियम कॉरपोरेशन आफ इंडिया लि. में दर्ज की गई, जबकि बीमारियों से 203 मौतें हुई।
कोठारी की मानें तो 1995 से 2014 के बीच बार्क में ही 255 वैज्ञानिकों-शोधार्थियों-कर्मचारियों ने कथित तौर पर आत्महत्या की। हालांकि बाद में परमाणु ऊर्जा विभाग ने जुलाई-अगस्त 2010 और अप्रैल-जून 2014 के दौरान अपनी इकाइयों, विशेष रूप से प्रमुख इकाइयों द्वारा कोठारी को दी गई जानकारियों की दोबारा जांच की। इसके बाद विभाग ने 1995-2014 के दौरान 2,564 वैज्ञानिकों, शोधार्थियों व कर्मचारियों की मौत की बात कही। इसमें आत्महत्या के 69 मामले और कैंसर से 152 मौतें भी शामिल थीं।
2014 के पहले तक, 20 वर्ष में 2,564 वैज्ञानिकों और कर्मचारियों की मौतें हुईं।
इनमें आत्महत्या के 69 मामले और कैंसर से 152 मौतें भी शामिल हैं।
हरियाणा के आरटीआई कार्यकर्ता राहुल सेहरावत के आरटीआई के जवाब में परमाणु ऊर्जा विभाग ने बताया था कि 2009 से 2013 तक 11 वैज्ञानिकों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हुई। विभाग की प्रयोगशालाओं और अनुसंधान केंद्रों में कार्यरत आठ वैज्ञानिकों की मौत को पुलिस आत्महत्या या दुर्घटना बताया था। लेकिन वैज्ञानिकों की संदिग्ध मौत पर उच्च स्तरीय जांच की जरूरत नहीं समझी गई। चेतन कोठारी ने बॉम्बे उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल कर वैज्ञानिकों की रहस्यमय मौतों की उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की थी। इस पर बॉम्बे उच्च न्यायालय ने 2017 में केंद्र सरकार से वैज्ञानिकों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने को कहा था।
वैज्ञानिकों की संदिग्ध मौत
कर्नाटक के कैगा परमाणु संयंत्र में कार्यरत रविकुमार मुले की 7 अप्रैल, 2009 को मल्लापुर के कैगा टाउनशिप स्थित आवास में संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। पुलिस ने इसे आत्महत्या बताया। परिजनों ने सीबीआई जांच की मांग की, लेकिन इसे अनसुना कर दिया गया। इसी परमाणु पावर स्टेशन में कार्यरत लोकनाथ महालिंगम का उनका क्षत-विक्षत शव 14 जून, 2009 को मिला। पुलिस ने इसे भी आत्महत्या बताया।
बार्क के युवा वैज्ञानिक उमंग सिंह और पार्थ प्रतिम बाग परमाणु रिएक्टरों से जुड़े संवेदनशील विषय पर शोध कर रहे थे। 29 दिसंबर, 2009 को प्रयोगशाला में रहस्यमय तरीके से आग लगी, जिसमें दोनों की मौत हो गई। कोलकाता के साहा इंस्टीट्यूट आफ न्यूक्लियर फिजिक्स में शोधार्थी डलिया नायक की अगस्त 2009 में संदिग्ध मौत को पुलिस ने आत्महत्या बताया। बार्क के इंजीनियर महादेवन पद्मनाभन अय्यर का शव 22 फरवरी, 2010 को घर से मिला। इंदौर के राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी में वैज्ञानिक तिरुमला प्रसाद टेंका एक महत्वपूर्ण परमाणु परियोजना पर काम कर रहे थे। 10 अप्रैल, 2010 को उनका शव फंदे से लटकता मिला। पुलिस ने आत्महत्या बताया।
बार्क में काम करने वाली तीतस पाल का शव 3 मार्च, 2010 को फ्लैट के वेटिलेटर से लटकता मिला था। पुलिस ने इसे भी आत्महत्या बताया। 28 वर्ष तक बार्क में काम करने वाली उमा राव ने 30 अप्रैल, 2011 को कथित तौर पर आत्महत्या की थी। पुलिस के अनुसार, बीमारी के कारण वह अवसाद में थीं। लेकिन परिवार, पड़ोसी और सहयोगी वैज्ञानिकों ने इसे खारिज कर दिया। कलपक्कम के इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटमिक रिसर्च के साइंटिफिक असिस्टेंट मोहम्मद मुस्तफा का शव 23 अप्रैल, 2012 में सरकारी आवास से मिला। उनकी कलाइयों की नसें कटी हुई थीं। पुलिस ने आत्महत्या बताया।
इसरो के वैज्ञानिक तपन मिश्रा ने 23 मई, 2017 को फेसबुक पोस्ट लिखा कि उन्हें जहर देकर मारने की कोशिश की जा रही है। यह जहर उन्हें पदोन्नति साक्षात्कार के दौरान इसरो मुख्यालय में नास्ते में मिला कर दिया गया था। उन्होंने यह भी लिखा था, ‘‘इसरो में कभी-कभी बड़े वैज्ञानिकों के संदिग्ध मौत की खबर मिलती रही है। 1971 में प्रोफेसर विक्रम साराभाई की मौत संदिग्ध हालात में हुई थी। उसके बाद 1999 में वीएसएससी के निदेशक डॉ. एस. श्रीनिवासन की मौत पर भी सवाल उठे थे। 1994 में नंबी नारायण का मामला भी सबके सामने आया था, लेकिन मुझे नहीं पता था कि एक दिन मैं इस रहस्य का हिस्सा बनूंगा।’’ -पाञ्चजन्य ब्यूरो
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