हिंदू राजाओं ने प्राचीन काल से सर्वधर्म समभाव अपनाया था, लेकिन उनका यही दृष्टिकोण कन्वर्जन के लिए सहायक साबित हुआ। 14वीं सदी में पुर्तगालियों के आगमन के बाद ईसाई कन्वर्जन को गति मिली।
केरल में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन और यहूदी भी हैं। लेकिन आंकड़ों की समीक्षा में हिंदू आबादी में गिरावट स्पष्ट दिखाई देती है। इसका मुख्य कारण राज्य में मुस्लिमों और ईसाइयों द्वारा किया जा रहा कन्वर्जन है। हिंदू राजाओं ने प्राचीन काल से सर्वधर्म समभाव अपनाया था, लेकिन उनका यही दृष्टिकोण कन्वर्जन के लिए सहायक साबित हुआ। 14वीं सदी में पुर्तगालियों के आगमन के बाद ईसाई कन्वर्जन को गति मिली। 1788 में मालाबार क्षेत्र पर टीपू के आक्रमण के बाद इस्लाम में कन्वर्जन में तेजी आई। 1921 के मालाबार मोपला दंगों के दौरान इसमें और वृद्धि हुई। लेकिन अब ईसाइयत और इस्लाम में कन्वर्जन अलग-अलग कारणों से हो रहा है।
चर्च ने जहां पैसों के बूते हिंदुओं को कन्वर्ट कराया, वहीं इस्लाम में कन्वर्जन को बढ़ावा देने में ‘लव जिहाद’ की महत्वपूर्ण भूमिका है। कुल मिलाकर हिंदू राज्य में बहुसंख्यक नहीं रह जाएंगे। 2011 के आंकड़े दर्शाते हैं कि राज्य में हिंदू 54.73 प्रतिशत, मुस्लिम 26.56, ईसाई 18.38 व अन्य 0.33 प्रतिशत हैं। हालांकि, नवीनतम आंकड़े उपलब्ध नहीं है, लेकिन जन्मदर में भारी अंतर आदि के आधार पर विश्लेषकों का अनुमान है कि राज्य में हिंदू 50 प्रतिशत से कम और मुस्लिम 30 प्रतिशत से अधिक हो गए हैं। इसका कारण मुसलमानों में बहुविवाह की अनुमति, जन्म नियंत्रण के प्रति लापरवाही व ‘लव जिहाद’ है। वहीं, ईसाई आबादी में खास वृद्धि नहीं हुई है। इसका अर्थ यह नहीं है कि ईसाइयत में कन्वर्जन अब नहीं होता है।
कन्वर्टेड ईसाई न तो अपना नाम बदलते हैं और न ही कन्वर्ट होने का कार्यक्रम धूमधाम से किया जाता है, जैसा दशकों पहले होता था। वे अपना ‘पूर्वाश्रम’ का नाम और पहनावा भी जस का तस रखते हैं।
हिंदुओं के ईसाई में कन्वर्जन के वास्तविक आंकड़े का पता लगाना बहुत मुश्किल या संभवत: असंभव हो चुका है। इसमें संदेह नहीं है कि तटीय क्षेत्रों व पहाड़ी क्षेत्रों में वनवासियों का, विशेष रूप से वायनाड, इडुक्की और पलक्कड़ जिलों में ईसाइयत में कन्वर्जन हो रहा है। मछुआरों का, जिनमें अधिकांश कोल्लम से कन्याकुमारी के तटीय क्षेत्र के हैं, भी कन्वर्जन किया जा रहा है। लेकिन इसके सटीक आंकड़े एकत्र करना कठिन है।
क्रिप्टो क्रिश्चियन केरल का एक सामान्य रोग है। कन्वर्टेड ईसाई न तो अपना नाम बदलते हैं और न ही कन्वर्ट होने का कार्यक्रम धूमधाम से किया जाता है, जैसा दशकों पहले होता था। वे अपना ‘पूर्वाश्रम’ का नाम और पहनावा भी जस का तस रखते हैं। यहां तक कि वे सरकारी रिकॉर्ड में बदलाव भी नहीं कराते। स्कूलों या कॉलेजों में बच्चों का नामांकन कराते समय भी वे अपनी ‘कन्वर्टेड हैसियत’ का खुलासा नहीं करते हैं। कारण बहुत स्पष्ट है।
दरअसल, ओबीसी मछुआरे और पहाड़ी वनवासी आरक्षण का लाभ खोना नहीं चाहते हैं, जो उन्हें हिंदू होने के नाते मिलता है। इनमें से अधिकांश ईसाइयत का पालन सिर्फ चर्च और अपने घरों में करते हैं। घरों में वे ईसा मसीह या वर्जिन मैरी आदि की तस्वीरें या मूर्तियां रखते हैं, लेकिन पड़ोसियों को कन्वर्ट होने की भनक नहीं लगने देते हैं। ईसाइयत इस तरह चोरी-छिपे कन्वर्जन करा कर चुप नहीं हो जाती।
इन नए ‘प्रवेशकों’ को कट्टर ईसाई बनाने के कुछ केंद्र हैं। त्रिशूर के चलाक्कुडी के पास मुरिंगूर डिवाइन रिट्रीट सेंटर था। कुछ वर्ष पहले वहां हजारों लोग पहुंचते थे। एक सप्ताह से अधिक समय तक उन्हें नए रिलीजन के बारे में सिखाया-पढ़ाया जाता था। इस सेंटर पर विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम के उल्लंघन, हत्या, बलात्कार और नशीली दवाओं के दुरुपयोग सहित कई आरोप लगे। पुलिस में भी मामले दर्ज हुए और इसकी खबरें मीडिया तक पहुंचने लगीं। इसलिए वहां धीरे-धीरे लोगों का आना कम हो गया। बाद में कुछ नए सेंटर खुल गए। उनमें एक प्रमुख सेंटर, कृपासनम, अलप्पुझा जिले के पास कांजीक्कुझी में है।
केरल में चर्च अब प्रत्यक्ष रूप से हिंदुओं के कन्वर्जन के लिए उत्सुक नहीं दिखता है। अभी उसका मुख्य एजेंडा अपनी लड़कियों को ‘लव जिहाद’ से बचाना है। 20 सितंबर, 2021 को पाला के बिशप ने खुलकर कहा कि मुसलमानों का एक वर्ग ‘लव जिहाद’ और नारकोटिक जिहाद के माध्यम से ईसाइयों को निशाना बना रहा है।
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