25 जून, 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण जी की बहुत बड़ी सभा हुई थी। मैं भी उसमें उपस्थित था।
1975 में जब आपातकाल लगा तो मैं 26 वर्ष का था। 25 जून, 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण जी की बहुत बड़ी सभा हुई थी। मैं भी उसमें उपस्थित था। अगले दिन न अखबार वाला आया, न कोई समाचार दिखाई दिया। लगा कि कुछ न कुछ गड़बड़ है। इसका अंदाजा नहीं था कि आपातकाल लग गया है।
देश में आपातकाल लग गया है। पहला, सत्याग्रह जुलाई में राजमाता सिंधिया के नेतृत्व में दिल्ली स्थित चांदनी चौक में हुआ। मैं भूमिगत तरीके से शाखा भी लगाता था, ताकि कार्यकर्ताओं से संपर्क बना रहे। धीरे-धीरे पुलिस को पता चल गया कि हम सत्याग्रह के लिए सक्रिय हैं। 15 अगस्त को एक साथ कॉलेज के सभी प्रोफेसर पकड़े गए।
खैर, बाद में पता चला कि देश में आपातकाल लग गया है। पहला, सत्याग्रह जुलाई में राजमाता सिंधिया के नेतृत्व में दिल्ली स्थित चांदनी चौक में हुआ। मैं भूमिगत तरीके से शाखा भी लगाता था, ताकि कार्यकर्ताओं से संपर्क बना रहे। धीरे-धीरे पुलिस को पता चल गया कि हम सत्याग्रह के लिए सक्रिय हैं। 15 अगस्त को एक साथ कॉलेज के सभी प्रोफेसर पकड़े गए।
उस समय पाञ्चजन्य के संपादक श्री देवेंद्र स्वरूप जी मेरे पड़ोस में रहते थे। एसएचओ ने उन्हें पहचान लिया और पकड़ लिया। उसने देवेंद्र स्वरूप जी से कहा, ‘‘मैं प्रयागराज में आपका स्वयंसेवक रहा हूं। मेरा नाम विद्या सागर है।’’ स्थिति ऐसी थी कि सत्ता के दबाव में पुलिस-प्रशासन भी मजबूर था।
फिर हमने 20 सितंबर को पंजाबी बाग में सत्याग्रह किया। पुलिस ने हमें पांच दिन तक गिरफ्तार नहीं किया। इसके बाद करोल बाग में सत्याग्रह किया तो पुलिस ने गिरफ्तार किया। जब थाने ले गए तो वहां नरक जैसी स्थिति देखने को मिली। फिर हमें जेल भेज दिया गया। शुरुआत में कैदियों पर काफी अत्याचार हुआ। बाद में जेल में संख्या बढ़ती गई, तो उन्होंने रिहा भी करना शुरू कर दिया।
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