कल्याण और प्रतिष्ठा का योग
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कल्याण और प्रतिष्ठा का योग

युद्ध, तनाव, विविध तरह के असंतुलनों और असमानता से जूझ रहे विश्व के लिए भारत के प्राचीन ज्ञान से उपजा योग एक दर्दनिवारक बन कर उभरा है। जी-20 समूह की अपनी अध्यक्षता में भारत ने फिर योग के प्रसार पर जोर दिया है। विश्व में योग की स्वीकार्यता बढ़ी है, और भारत की प्रतिष्ठा

by जितेंद्र कुमार त्रिपाठी
Jun 20, 2023, 07:30 pm IST
in भारत, स्वास्थ्य
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21 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में घोषित करने के लिए भारत के नेतृत्व में रखे गए इस प्रस्ताव को यह कहते हुए पारित किया कि ‘योग स्वास्थ्य और कल्याण के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है।’ अब जी-20 के जो कार्यक्रम भारत में आयोजित हो रहे हैं, उनमें लगभग सभी कार्यक्रमों में भारत योग को महत्वपूर्ण ढंग से सदस्य देशों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा है।

भारत के पास 1 दिसंबर, 2022 से बीस देशों की सदस्यता वाले जी -20 समूह की वार्षिक अध्यक्षता आई। इंडोनेशिया के बाली में नवम्बर 2022 में हुए इस समूह के 17वें शीर्ष सम्मेलन में यह मेजबानी और वार्षिक अध्यक्षता भारत को हस्तांतरित हुई, जो आगामी सितंबर में नई दिल्ली में आयोजित होने वाले 18वें शीर्ष सम्मेलन में ब्राजील को हस्तांतरित होगी। 2 मई को लक्षद्वीप के बंगाराम द्वीप में भारत की जी-20 अध्यक्षता के एक भाग के तौर पर आयोजित सार्वभौमिक समग्र स्वास्थ्य पर विज्ञान 20 विषयगत सम्मेलन के दूसरे दिन, सभी प्रतिनिधियों ने योग सत्र में शामिल होकर योगाभ्यास किया। चर्चा का विषय भी शारीरिक और आत्मिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, कल्याण, पारंपरिक चिकित्सा और समग्र स्वास्थ्य था। इसी प्रकार, 29 जून को, जब जी-20 शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान के ओसाका में थे, तो उन्होंने इस अवसर का उपयोग भारत के पारंपरिक चिकित्सा उपायों और आयुष्मान भारत स्वास्थ्य योजना को प्रस्तुत करने में किया। उन्होंने योग पर जोर देने की बात ट्वीट करके भी कही।

समग्र दृष्टिकोण

2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में घोषित करने के लिए भारत के नेतृत्व में रखे गए इस प्रस्ताव को यह कहते हुए पारित किया कि ‘योग स्वास्थ्य और कल्याण के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है।’ अब जी-20 के जो कार्यक्रम भारत में आयोजित हो रहे हैं, उनमें लगभग सभी कार्यक्रमों में भारत योग को महत्वपूर्ण ढंग से सदस्य देशों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा है। इसका महत्व जी-20 समूह के महत्व से सीधे जुड़ा हुआ भी है। वास्तव में जी-20 समूह अपने आप में अनूठा है। संयुक्त राष्ट्र संघ, गुट-निरपेक्ष आंदोलन, 77 देशों का समूह तथा देशों का राष्ट्रमंडल (कॉमनवेल्थ आफ नेशंस) जैसे भारी-भरकम संगठन हैं, लेकिन उनमें किसी एक बिंदु पर भी एकमत न हो पाने से उत्पन्न सम्भाव्य निर्णयहीनता उन्हें अक्षम बना सकती है। इसी प्रकार, देशों के बहुत ही छोटे समूह कई बार पारस्परिक मनमुटाव के कारण भी इस निर्णयहीनता का शिकार होकर अपनी कार्यशीलता खो देते हैं, जैसा कि दक्षेस (सार्क) के साथ हुआ है। इनके विपरीत मध्य आकार के समूह अधिक सफल हुए हैं, क्योंकि उनके बीच की शत्रुता आकार के कारण कुछ हद तक हल्की पड़ जाती है। आसिआन, ओआईसी और जी-20 ऐसे ही मध्य आकार के समूह हैं। जी-20 की एक विशेषता यह भी है कि यह विकसित और विकासशील-दोनों ही तरह के देशों को एक मंच प्रदान करता है, जिसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक प्रगति पर ध्यान देना है (हालांकि तेजी से बदलते भू-रणनीतिक परिदृश्य में अन्य संगठनों की भांति यह भी वैश्विक राजनीति और कूटनीति से अछूता नहीं रह सकता)।

भारत सरकार के प्रयासों से वर्तमान वर्ष को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष घोषित किया गया है। इस विषय पर जागरुकता पैदा करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। कम पानी और खाद में पैदा होने वाले ये खाद्यान्न गरीब और संसाधनहीन देशों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे और इस लिहाज से ग्लोबल साउथ को सहारा देने की नीति के भी अनुरूप हैं। भारत में भी जी-20 के अंतर्गत होने वाली सभी बैठकों में इन्हीं खाद्यान्नों से बने पकवान परोसे जा रहे हैं, ताकि प्रतिभागी प्रतिनिधि इन्हें अपने देश में प्रचारित कर सकें।

जी-20 इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें जी-7 (सात अतिविकसित देशों का समूह) तथा ब्रिक्स (तीव्र गति से विकासशील पांच देशों का समूह) के सभी देश शामिल हैं। ऐसे में यह ग्लोबल साउथ (अविकसित, अल्पविकसित और विकासशील देशों) की समस्याओं को ग्लोबल नॉर्थ (अतिविकसित देशों) तक पहुंचाने का एक माध्यम हो गया है। हालांकि भारत के पास इस समूह की अध्यक्षता एक सामान्य वार्षिक क्रम में आई है, तथापि भारत यह दिखा सकता है कि यूरोप में जारी युद्ध की छाया और परमाणु युद्ध की आशंका में जी रहे विश्व की आर्थिक और सुरक्षा संबंधी समस्याओं से कैसे पार पाया जाए। भारत इस दिशा में प्रयत्न कर रहा है। हम समय-समय पर विश्व को यह बताते रहे हैं कि शक्ति का संचरण सदा ही बंदूक की नली से नहीं होता, आपसी सद्भाव से भी होता है। योग इसका एक बहुत शानदार और सबसे निरापद तरीका है।

अंदमान निकोबार द्वीप समूह में योग करते प्रतिनिधि
योग के कई पहलू हैं, और कुछ तो बहुत गहरा अर्थ भी रखते हैं। लेकिन वैश्विक सरलता के लिए भारत इसे शारीरिक-मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य या कल्याण के साथ प्रस्तुत कर रहा है।

वसुधैव कुटुम्बकम्

योग में विश्व को यह बताने की क्षमता है कि युद्ध किसी भी समस्या का न तो स्थायी हल है और न ही स्थायी शांति की गारंटी है। हर युद्ध का अंत शांति-वार्ता की मेज पर ही होता है। स्थायी शांति केवल संबंधों की प्रगाढ़ता से ही आ सकती है और इस प्रगाढ़ता के लिए सद्भाव आवश्यक है, जो पारस्परिक विश्वास से ही उत्पन्न होता है। विश्वास के लिए एक-दूसरे के विषय में सही जानकारी होना आवश्यक है। साहित्य, संस्कृति के अलावा योग एक ऐसा सामान्य सेतु है, जो विश्वास भी पैदा करता है और शांति की दिशा में आत्मविश्वास भी पैदा करता है। भारत अपनी निर्बाध सभ्यता, संस्कृति और विचारों की गुणवत्ता के बूते योग को इस रूप में प्रस्तुत करने में सक्षम और समर्थ है। योग सभी देशों की जनता के अवचेतन मष्तिष्क में जाकर शांति के पक्ष में वातावरण बनाता है। योग के वैज्ञानिक पक्ष के उभरकर सामने आने से विश्व को इस धारणा से बाहर निकलने में मदद मिली है कि भारत सपेरों, मदारियों या जादूगरों का देश है। भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति, वैदिक काल से लेकर आधुनिक युग तक के लिए लाभकारी साहित्य और जीवन-दर्शन, समस्त मानव जाति के प्रति प्रेम ने भारत को एक विश्वसनीयता दी है। इसीलिए जी-20 की अध्यक्षता के प्रारम्भ में ही हमने बता दिया कि हमारा उद्देश्य होगा ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ या ‘एक पृथ्वी, एक परिवार और एक साझा भविष्य।’

योग के कई पहलू हैं, और कुछ तो बहुत गहरा अर्थ भी रखते हैं। लेकिन वैश्विक सरलता के लिए भारत इसे शारीरिक-मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य या कल्याण के साथ प्रस्तुत कर रहा है।

अंतररराष्ट्रीय योग दिवस पर

21 जून को, अर्थात् अंतररराष्ट्रीय योग दिवस पर न केवल विदेश स्थित भारतीय दूतावासों में योग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, बल्कि विदेशों के विभिन्न उच्च शिक्षा संस्थान भी अब इसका महत्व समझ कर अपने यहां योग शिक्षा के पाठ्यक्रम चलाने लगे हैं। यहां तक कि 2017 में सऊदी अरब ने भी अपने शिक्षा संस्थानों में खेलकूद में दक्षता हासिल करने के लिए योग शिक्षा को मान्यता दे दी। योग के कई पहलू हैं, और कुछ तो बहुत गहरा अर्थ भी रखते हैं। लेकिन वैश्विक सरलता के लिए भारत इसे शारीरिक-मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य या कल्याण के साथ प्रस्तुत कर रहा है। यही कारण है कि आयुष्मान भारत योजना के साथ-साथ भारत ने कम लागत में पैदा होने वाले, किन्तु अधिक पौष्टिक मिलेट वर्ग के खाद्यान्नों जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो आदि के उपयोग को बढ़ावा देने का अभियान चलाया।

‘मैं’ नहीं ‘हम’

‘मैं’ के स्थान पर ‘हम’ का भाव एक जुड़ाव का संकेत देता है। जनवरी में भारत द्वारा आयोजित ग्लोबल साउथ के 125 देशों के पहले सम्मेलन को ‘वॉइस आफ ग्लोबल साउथ’ नाम दिया गया। यद्यपि यह पहल भारत की थी, जो आर्थिक विकास के मुद्दों पर विकासशील देशों का अघोषित नेता रहा है, फिर भी भारत ने इसका कोई श्रेय न लेते हुए इसे एक सामूहिक प्रयास बताया। नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की सहायता की हमारी तत्परता ने हमारी सदाशयता और परिणामत: हमारी विश्वसनीयता को बार-बार रेखांकित किया है, जिसके कई उदाहरण दिए जा सकते हैं। वर्ष 2004 के अंत में आई सुनामी के दौरान भारत ने न सिर्फ आपदा प्रबंधन में आत्मनिर्भरता दिखाई, बल्कि आसपास के दूसरे देशों की भी सहायता की। अगले कुछ वर्षों में भारत ने खाद्यान्न की कमी से जूझ रहे कई देशों को खाद्यान्न सहायता भी दी, जिनमें म्यांमार और जिम्बाब्वे शामिल हैं। कोरोना काल में भारत ने न सिर्फ  घरेलू टीकाकरण में तेजी दिखाई, बल्कि अधिक संख्या में टीकों का उत्पादन करके दुनिया के अन्य जरूरतमंद देशों को उनकी आर्थिक क्षमता के आधार पर सस्ती दरों पर निर्यात किया या नि:शुल्क उपलब्ध कराया। एक सौ नब्बे से अधिक देशों में ये टीके पहुंचाए गए। हमने टीकों के वितरण में कोई भेदभाव भी नहीं किया। अमेरिकी राष्ट्रपति के अनुरोध पर वहां क्लोरोक्विन की गोलियां भेजी गईं और यहां तक कि दर्द निवारक दवा की कमी से जूझ रहे चीन को भी पैरासिटामोल की गोलियां भेजी गईं, जबकि चीन हमसे दुश्मनी प्रकट करने का कोई अवसर नहीं छोड़ता।

योग का प्रचार

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बनाने में योग की महती भूमिका को देखते हुए भारत ने इसे प्रचारित करने का निश्चय किया। प्रतिवर्ष 21 जून को, अर्थात् अंतररराष्ट्रीय योग दिवस पर न केवल विदेश स्थित भारतीय दूतावासों में योग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, बल्कि विदेशों के विभिन्न उच्च शिक्षा संस्थान भी अब इसका महत्व समझ कर अपने यहां योग शिक्षा के पाठ्यक्रम चलाने लगे हैं। यहां तक कि 2017 में सऊदी अरब ने भी अपने शिक्षा संस्थानों में खेलकूद में दक्षता हासिल करने के लिए योग शिक्षा को मान्यता दे दी। योग के कई पहलू हैं, और कुछ तो बहुत गहरा अर्थ भी रखते हैं। लेकिन वैश्विक सरलता के लिए भारत इसे शारीरिक-मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य या कल्याण के साथ प्रस्तुत कर रहा है। यही कारण है कि आयुष्मान भारत योजना के साथ-साथ भारत ने कम लागत में पैदा होने वाले, किन्तु अधिक पौष्टिक मिलेट वर्ग के खाद्यान्नों जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो आदि के उपयोग को बढ़ावा देने का अभियान चलाया।
भारत सरकार के प्रयासों से वर्तमान वर्ष को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष घोषित किया गया है। इस विषय पर जागरुकता पैदा करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। कम पानी और खाद में पैदा होने वाले ये खाद्यान्न गरीब और संसाधनहीन देशों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे और इस लिहाज से ग्लोबल साउथ को सहारा देने की नीति के भी अनुरूप हैं। भारत में भी जी-20 के अंतर्गत होने वाली सभी बैठकों में इन्हीं खाद्यान्नों से बने पकवान परोसे जा रहे हैं, ताकि प्रतिभागी प्रतिनिधि इन्हें अपने देश में प्रचारित कर सकें।
(लेखक पूर्व राजनयिक हैं)

Topics: Yoga originated from the ancient wisdom of Indiaभारतयोगतनावविश्व में योगभारत के प्राचीन ज्ञान से उपजा योगयुद्धजी-20 समूहवसुधैव कुटुम्बकम्समग्र दृष्टिकोणYoga in the world
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