ज्ञानवापी में शृंगार गौरी की नियमित पूजा अधिकार मामले में सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘जब वर्ष में एक बार पूजा से मस्जिद के चरित्र पर कोई खतरा नहीं है तो रोजाना या साप्ताहिक पूजा से मस्जिद के चरित्र में बदलाव कैसे हो सकता है?
मुस्लिम पक्ष श्रीराम जन्मभूमि की ही तरह ज्ञानवापी मामले को भी न्यायिक प्रक्रिया में उलझाने की कोशिशों में जुटा है। वह इसके लिए उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय तक गुहार लगा चुका है- लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगी है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के हाल के निर्णय से भी मुस्लिम पक्ष को झटका लगा है।
ज्ञानवापी में शृंगार गौरी की नियमित पूजा अधिकार मामले में सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘जब वर्ष में एक बार पूजा से मस्जिद के चरित्र पर कोई खतरा नहीं है तो रोजाना या साप्ताहिक पूजा से मस्जिद के चरित्र में बदलाव कैसे हो सकता है? 1990 तक रोजाना माता शृंगार गौरी, हनुमानजी व गणेश देवता की पूजा होती थी। इसके बाद वर्ष में एक बार पूजा की अनुमति दी गई। सरकार या स्थानीय प्रशासन नियमित पूजा की व्यवस्था कर सकता है। इसका कानून से कोई संबंध नहीं है। यह प्रशासन और सरकार के स्तर का मामला है।’’
उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ज्ञानवापी को वक्फ संपत्ति बता रही है। लेकिन हिंदू पक्षकारों की ओर से सिविल वाद में वक्फ संपत्ति को कब्जे में सौंपने या स्वामित्व में लेने की बात नहीं कही गई है। ऐसे में यह मामला केवल शृंगार गौरी की नियमित पूजा अधिकार से जुड़ा हुआ है। इस मुकदमे में वक्फ कानून-1995 की धारा 85 लागू नहीं होती।
‘‘जब वर्ष में एक बार पूजा से मस्जिद के चरित्र पर कोई खतरा नहीं है तो रोजाना या साप्ताहिक पूजा से मस्जिद के चरित्र में बदलाव कैसे हो सकता है? 1990 तक रोजाना माता शृंगार गौरी, हनुमानजी व गणेश देवता की पूजा होती थी। इसके बाद वर्ष में एक बार पूजा की अनुमति दी गई। सरकार या स्थानीय प्रशासन नियमित पूजा की व्यवस्था कर सकता है। इसका कानून से कोई संबंध नहीं है। यह प्रशासन और सरकार के स्तर का मामला है।’’
1993 में शृंगार गौरी की पूजा रोक दी गई थी और हिंदुओं की ओर से कई वर्षों तक कोई प्रयास नहीं किया गया। इससे प्रतिदिन पूजा के अधिकार की मांग समाप्त नहीं हो जाती। इस पर उपासना स्थल कानून-1991 लागू नहीं होता। मुस्लिम पक्ष का तर्क था कि उपासना स्थल पर नियमित पूजा प्रतिबंधित है, क्योंकि पूजा होने से स्थल की मजहबी प्रकृति से छेड़छाड़ होगी। कानूनी तौर पर इस प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की जा सकती, इसलिए परिसर में नियमित पूजा की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। लेकिन उच्च न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष के तर्क को खारिज कर दिया।
हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा, ‘‘यह बहुत ही ऐतिहासिक निर्णय है। मुस्लिम पक्ष हमेशा यह दावा करता था कि यह मुकदमा प्लेसेज आफ वर्शिप एक्ट से बाधित है। वाराणसी जिला अदालत ने 12 सितंबर को हमारे पक्ष में निर्णय दिया था। वही बात अब इलाहाबाद न्यायालय ने भी कही है।’’
पिछले साल अदालत के आदेश पर जब सर्वेक्षण टीम ज्ञानवापी परिसर में गई तो मुस्लिम पक्ष ने इसका विरोध किया। अदालत द्वारा नियुक्त अधिवक्ता आयुक्त अजय मिश्र को हटाने के लिए याचिका दाखिल की गई, लेकिन मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज हो गई। इसके बाद परिसर में नमाज पढ़ने पर रोक लगाने की मांग को लेकर 24 मई, 2022 को किरण सिंह ने याचिका दाखिल की, तब भी मुस्लिम पक्ष ने विरोध किया। लेकिन अदालत ने याचिका स्वीकार को सुनवाई योग्य माना।
इसी तरह, मुस्लिम पक्ष ने 17 अप्रैल, 2023 को सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर कहा कि उन्हें नमाज पढ़ने में दिक्कत हो रही है। शीर्ष अदालत ने वाराणसी के जिलाधिकारी को समस्या का समाधान निकालने का निर्देश दिया। अंतत: 19 अप्रैल, 2023 को जिलाधिकारी की अगुआई में समिति की बैठक में वजू की व्यवस्था को लेकर सहमति बनी।
2021 में वाराणसी सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के न्यायालय में सात मुकदमे दायर किए गए थे। ये सभी मामले एक ही प्रकृति के हैं, इसलिए इन पर एक साथ सुनवाई होगी। इसके लिए अदालत ने अगली तारीख 7 जुलाई तय की है।
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