वीर बहादुर बन्दा बैरागी, जिनकी वीरता से कांप उठे थे मुस्लिम आक्रांता
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वीर बहादुर बन्दा बैरागी, जिनकी वीरता से कांप उठे थे मुस्लिम आक्रांता

बन्दा बैरागी ने सबसे पहले गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने वाले जल्लाद जलालुद्दीन का सिर काटा। फिर सरहिन्द के नवाब वजीरखान का वध किया।

by WEB DESK
Jun 8, 2023, 07:16 pm IST
in भारत
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बन्दा बैरागी का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 को ग्राम तच्छल किला, पुंछ में रामदेव के घर में हुआ था। उनका बचपन का नाम लक्ष्मणदास था। युवावस्था में शिकार खेलते समय उन्होंने एक गर्भवती हिरणी पर तीर चला दिया था। इससे उसके पेट से एक शिशु निकला और तड़पकर वहीं मर गया। यह देखकर उनका मन खिन्न हो गया। उन्होंने अपना नाम माधोदास रख लिया और घर छोड़कर तीर्थयात्रा पर चल दिए। अनेक साधुओं से योग साधना सीखी और फिर नान्देड़ में कुटिया बनाकर रहने लगे।

इसी दौरान गुरु गोविन्दसिंह जी माधोदास की कुटिया में आए। उनके चारों पुत्र बलिदान हो चुके थे। उन्होंने इस कठिन समय में माधोदास से वैराग्य छोड़कर देश में व्याप्त मुस्लिम आतंक से जूझने को कहा। इस भेंट से माधोदास का जीवन बदल गया। गुरुजी ने उसे बन्दा बहादुर नाम दिया। फिर पांच तीर, एक निशान साहिब, एक नगाड़ा और एक हुक्मनामा देकर दोनों छोटे पुत्रों को दीवार में चिनवाने वाले सरहिन्द के नवाब से बदला लेने को कहा।

बन्दा हजारों सिख सैनिकों को साथ लेकर पंजाब की ओर चल दिए। उन्होंने सबसे पहले श्री गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने वाले जल्लाद जलालुद्दीन का सिर काटा। फिर सरहिन्द के नवाब वजीरखान का वध किया। जिन हिन्दू राजाओं ने मुगलों का साथ दिया था, बन्दा बहादुर ने उन्हें भी नहीं छोड़ा। इससे चारों ओर उनके नाम की धूम मच गई।

उनके पराक्रम से भयभीत मुगलों ने दस लाख फौज लेकर उन पर हमला किया और विश्वासघात से 17 दिसंबर, 1715 को उन्हें पकड़ लिया। उन्हें लोहे के एक पिंजड़े में बन्दकर, हाथी पर लादकर सड़क मार्ग से दिल्ली लाया गया। उनके साथ हजारों सिख भी कैद किए गए थे। इनमें बन्दा के वे 740 साथी भी थे, जो प्रारम्भ से ही उनके साथ थे। युद्ध में वीरगति पाए सिखों के सिर काटकर उन्हें भाले की नोंक पर टांगकर दिल्ली लाया गया। रास्ते भर गर्म चिमटों से बन्दा बैरागी का मांस नोचा जाता रहा।

काजियों ने बन्दा और उनके साथियों को मुसलमान बनने को कहा; पर सबने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। दिल्ली में आज जहां हार्डिंग लाइब्रेरी है,वहां 7 मार्च, 1716 से प्रतिदिन सौ वीरों की हत्या की जाने लगी। एक दरबारी मुहम्मद अमीन ने पूछा-तुमने ऐसे बुरे काम क्यों किए, जिससे तुम्हारी यह दुर्दशा हो रही है ?

बन्दा ने सीना फुलाकर सगर्व उत्तर दिया- मैंं तो प्रजा के पीड़ितों को दंड देने के लिए परमपिता परमेश्वर के हाथ का शस्त्र था। क्या तुमने सुना नहीं कि जब संसार में दुष्टों की संख्या बढ़ जाती है, तो वह मेरे जैसे किसी सेवक को धरती पर भेजता है।

बन्दा से पूछा गया कि वे कैसी मौत मरना चाहते हैं ? बन्दा ने उत्तर दिया, मैं अब मौत से नहीं डरता; क्योंकि यह शरीर ही दुःख का मूल है। यह सुनकर सब ओर सन्नाटा छा गया। भयभीत करने के लिए उनके पांच वर्षीय पुत्र अजय सिंह को उनकी गोद में लेटाकर बन्दा के हाथ में छुरा देकर उसको मारने को कहा गया।

बन्दा ने इससे इन्कार कर दिया। इस पर जल्लाद ने उस बच्चे के दो टुकड़ेकर उसके दिल का मांस बन्दा के मुंह में ठूंस दिया, पर वे तो इन सबसे ऊपर उठ चुके थे। गरम चिमटों से मांस नोचे जाने के कारण उनके शरीर में केवल हड्डियां शेष थी। फिर भी 8 जून, 1716 को उस वीर को हाथी से कुचलवा दिया गया। इस प्रकार बन्दा वीर बैरागी अपने नाम के तीनों शब्दों को सार्थक कर बलिपथ पर चल दिए।

Topics: Guru Govind Singhबन्दा बैरागी8 जून बलिदान दिवसगुरु गोविन्दसिंहमुगल आक्रांताBanda Bairagi8th June Sacrifice DayMughal invaderगुरु तेगबहादुरGuru Teg Bahadur
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