आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी एआई एक ऐसा नया जिन्न उभरा है जिसने दुनियाभर के रणनीतिकारों की नींद उड़ाई हुई है। पलक झपकते मुश्किल और उलझन भरे काम करने में माहिर ये नई प्रौद्योगिकी उद्यमियों के साथ ही पेशेवर लोगों को परेशान किए हुए है। अब इंटरनेशनल मॉनिटिरिंग फंड या अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ की प्रथम उपनिदेशक गीता गोपीनाथ ने चेताया है कि इसकी वजह से आने वाले दिनों में लोगों की नौकरियों पर संकट पैदा हो सकता है।
विश्व के अनेक देशों में जहां आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा होने लगा है वहीं अनेक जाने—माने संस्थान हर साल लाखों पेशेवरों को नौकरियों में उतार रहे हैं। एक साथ कई लोगों का काम करने में माहिर इस प्रौद्योगिकी ने अब उनकी नौकरियों पर तलवार लटका दी है। और अगर आईएमएफ की इतनी बड़ी अधिकारी इसे लेकर चिंता व्यक्त कर रही है तो निश्चित ही वक्त आ गया है कि उनके अनुसार, इसके लिए ‘नियम तय करने ही होंगे’।
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को लेकर जहां विभिन्न उद्यम कौतुहल का भाव ओढ़े हैं वहीं अब अनेक ऐसे संस्थानों में पेशेवर लोगों के काम से खाली होने की भयावह स्थिति भी मुंहबाए खड़ी है। कंपनियों अपना ध्यान एआई पर है। इन परिस्थितियों में सुप्रसिद्ध अर्थविद् अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की बड़ी अधिकारी गीता गोपीनाथ की उक्त आशंका को गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है कि एआई से आने वाले दिनों में श्रम बाजार में कई तरह की दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। गीता ने विशेष रूप से नीतिकारों से अनुरोध किया है कि इस तकनीक को काबू करने के लिए जल्दी ही नियम बनाने होंगे।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की बड़ी अधिकारी गीता गोपीनाथ की उक्त आशंका को गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है कि एआई से आने वाले दिनों में श्रम बाजार में कई तरह की दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। गीता ने विशेष रूप से नीतिकारों से अनुरोध किया है कि इस तकनीक को काबू करने के लिए जल्दी ही नियम बनाने होंगे।
अर्थ क्षेत्र के मशहूर समाचार पत्र द फाइनेंशियल टाइम्स में छपी रिपोर्ट बताती है कि, गीता गोपीनाथ सरकारों, संस्थाओं और नीतिकारों से नियम बनाने को लेकर गंभीर हैं जिससे कि श्रम बाजार में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से आगे कोई रुकावट न खड़ी हो। इसके लिए जितना जल्दी हो हमें तैयारी के साथ बढ़ना चाहिए।
अर्थविद् गीता गोपीनाथ का कहना है कि एआई से संकट में आने वाले पेशेवरों के भविष्य को ध्यान में रखकर सरकारों को सामाजिक सुरक्षा दायरे को और आगे बढ़ाना चाहिए। हमें एक ऐसी कर नीति बनानी चाहिए जिसके अंतर्गत उस तरह की कंपनियों को बिल्कुल भी बढ़ावा ना दिया जाए जो कर्मचारियों की जगह मशीनों से काम लेती हों। गीता का कहना है कि नीतिनिर्धारक ऐसी कंपनियों से सावधान रहें जिन्हें नई तकनीक के क्षेत्र में चुनौती देना मुश्किल हो।
उल्लेखनीय है कि खुद जो बाइडेन व्हाइट हाउस में शीर्ष टेक कंपनियों के सीईओ से एआई के खतरों पर चर्चा कर चुके हैं और इसे एक खतरा बनने से बचाने को कह चुके हैं। अभी मार्च 2023 में गोल्डमन सैक्स की रिपोर्ट में कहा गया था कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की वजह से 30 करोड़ नौकरियों पर तलवार लटक सकती है। गत साल पीडब्ल्यूसी ने सालाना वैश्विक कार्यबल पर एक सर्वेक्षण किया था, जिसमें बताया गया था कि विश्व के श्रम बाजार के लगभग एक तिहाई लोगों को यह डर लगने लगा है कि आने वाले तीन साल में यह नई तकनीक उनकी नौकरियां न खा जाए।
यहां बता दें कि हाल ही में आईबीएम कंपनी के सीईओ ने कहा था कि उनकी कंपनी में 7,800 पदों पर लोगों का चयन रोककर उनके स्थान पर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को लाने पर विचार कर रही है। यानी आने वाले दिनों में इस तकनीकी के द्वारा लोगों की रोजी—रोटी सीधे प्रभावित हो सकती है!
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