पिछले दो दिनों से दक्षिण की अभिनेत्री शालिनी का डिवोर्स के फोटोशूट की फेमिनिस्ट वर्ग में बहुत चर्चा हुई। शालिनी ने अपने तलाक को लेकर एक फोटो शूट कराया और लिखा कि तलाक एक विफलता नहीं है।
शालिनी ने लाल रंग की ड्रेस में यह फोटोशूट कराया था और एक तस्वीर में वह अपनी शादी की तस्वीरें फाड़ती हुई दिखाई दी थीं और एक में वह पैरों से कुचल रही थीं। उन्होंने इन्स्टाग्राम पर अपनी प्रोफाइल में लिखा कि हर अंत एक नई शुरुआत की ओर लेकर जाता है। फिर उन्होंने लिखा कि आपको खुश होने का अधिकार है तो आपको एक बुरी शादी के जाल से बाहर निकल आना चाहिए। अपने जीवन का नियंत्रण अपने हाथ में लें और अपने एवं अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए आवश्यक परिवर्तन करें। तलाक विफलता नहीं है, बल्कि यह आपके जीवन के लिए टर्निंग पॉइंट है।
जैसे ही यह फोटोशूट सामने आया, वैसे ही फेमिनिस्ट वेबसाइट्स एवं पितृसत्ता को कोसने वाले फेमिनिस्ट वर्ग में एक खुशी की लहर दौड़ गयी। परिवार तोड़ने के लिए वैसे तो आजादी की उनकी अवधारणा ही पर्याप्त थी, परन्तु यह तलाक फोटोशूट तो जैसे सोने में सुहागा हो गया। जैसा कि अपनी पुस्तक The Feminist Lie में बॉब लेविस लिखते हैं कि फेमिनिज्म दरअसल समानता के लिए नहीं है, बल्कि वह परिवार को तोड़कर महिला केन्द्रित व्यवस्था को लेकर है, जहां पर पुरुषों की आवश्यकता नहीं है। वह लिखते हैं कि फेमिनिस्ट वर्ग की दृष्टि में परिवार शोषण का प्रथम बिंदु है, अत: उसकी कैद से बाहर निकलना चाहिए। उन्होंने लिखा है कि पहले फेमिनिस्टों का यह मानना था कि चूंकि शादी के बाद लड़की की सारी पहचान गायब हो जाती थी, तो सहानुभूति अर्जित करने के लिए आरंभिक फेमिनिस्ट वर्ग ने शादी को ही शोषण का माध्यम बताया था। उनका कहना था कि महिलाओं को वह अधिकार नहीं मिलते हैं, जो पुरुषों को प्राप्त होते हैं। इसी पुस्तक में पृष्ठ 36 पर लिंडा गार्डर जो कि एक प्रख्यात फेमिनिस्ट थीं, के हवाले से लिखा है कि
“एकाकी परिवार को नष्ट किया जाना चाहिए।।। इसका अंतिम अर्थ जो भी हो, परिवारों का टूटना अब एक वस्तुगत रूप से क्रांतिकारी प्रक्रिया है।।। किसी भी महिला को अपने बच्चों के प्रति अपनी विशेष जिम्मेदारी के कारण खुद को किसी भी अवसर से वंचित नहीं करना चाहिए।। ”
विवियन गोर्निक, एक अन्य नारीवादी लेखिका ने कहा,
“एक गृहिणी होना एक नाजायज पेशा है।”
महिलाओं के राष्ट्रीय संगठन की नेता शीला क्रोनिन ने कहा, “चूंकि विवाह महिलाओं के लिए दासता है, यह स्पष्ट है कि महिला आंदोलन को इस संस्था पर हमला करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।”
तो जैसे ही ऐसे विचारों से प्रेरित फेमिनिस्ट वर्ग की दृष्टि में यह घटना आई वैसे ही एक अभिवादन आरम्भ हो गया। यह कहा जाने लगा कि यह बहुत ही क्रांतिकारी कदम है। लगभग हर पोर्टल ने यह कहा कि यह बहुत ही अच्छा कदम है। कई हिन्दी की लेखिकाओं ने भी यह कहा और लिखा कि एक जहरीले रिश्ते से अलग हो जाना चाहिए!
यह बात सर्वविदित है कि शालिनी का पति उसके साथ शारीरिक और मानसिक हिंसा करता था। परन्तु जो यह मुख्यबात और मुख्यविमर्श यह मीडिया और कथित क्रांतिकारी फेमिनिस्ट लेखिकाएं छिपा ले गईं और भारतीय लोक पर ही कहीं न कहीं पिछड़ेपन का आरोप लगा रही थीं कि वह तलाक के उपरान्त महिला को स्वीकारता नहीं है, वह यह थी कि शालिनी की शादी रियाज के साथ हुई थी।
This viral 'Divorce' photo shoot is of Tamil actress Shalini. Husband Riyaz physically & mentally abused her so much that to save her life she had to divorce!
She's being portrayed as 'Smashing Patriarchy' by libtards.
Should have put a suitcase & fridge also in the photoshoot 😜 pic.twitter.com/qQ5JvpWGMc— Tānyā (@TanyaBrahmvadni) May 3, 2023
रियाज से शालिनी की मुलाक़ात दुबई में हुई थी और उसके बाद उन्होंने पहले मंदिर में और फिर मुस्लिम तरीके से निकाह किया था और फिल्मीबीट वेबसाईट के अनुसार शालिनी ने रियाज़ से शादी करने के लिए इस्लाम भी अपनाया था। परन्तु शालिनी का इस्लाम में मतांतरित होना भी उनके लिए सुख की गारंटी नहीं हो सका और उन्हें उनके शौहर रियाज द्वारा मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाने लगा था। जब वह यह सह नहीं सकीं तो उन्होंने तलाक का निर्णय लिया।
ऐसे में तलाक के इस फोटोशूट को लेकर भारतीय लोक या कहें हिन्दू लोक को निशाने पर लेने वाली फेमिनिस्ट को क्या पूरी कहानी साझा नहीं की जानी चाहिए थी? और जैसे वह हर बात को लेकर पितृसत्ता को निशाने पर लेती हैं तो क्या उन्हें वह भी नहीं बताना चाहिए था कि रियाज ने कहीं न कहीं कुछ तो ऐसा शालिनी के साथ किया ही होगा कि उन्हें तलाक से इतनी प्रसन्नता हुई कि उन्होंने खुशी में फोटोशूट कराने का निर्णय ले लिया। रियाज के नाम को लिखने में क्या आपत्ति थी, यह समझ नहीं आया! या फिर यह कहा जाए कि वह दो भिन्न संस्कृतियों में अवधारणात्मक भेदों से उत्पन्न हिंसा का शिकार हुई थीं या फिर वह उसी मजहबी वर्चस्ववादी मानसिकता का शिकार हुई थीं, जिसका शिकार आज विश्व भर में लड़कियां और महिलाएं हो रही हैं। जैसे पाकिस्तान में हिन्दू लड़कियों का अपहरण हो रहा है, जबरन निकाह हो रहा है, जैसे निकिता तोमर मारी जा रही है या फिर जैसे ग्रूमिंग गैंग का शिकार ब्रिटेन में लड़कियां हो रही हैं।
इस समाचार में ऐसा क्या विशेष था कि इसे पहले फेमिनिस्ट वर्ग ने लपक तो लिया, परन्तु जैसे ही रियाज का नाम सामने आया तो वह इधर-उधर की बातें करने लगीं। वह शालिनी के इस फोटोशूट और प्रसन्नता के साथ नहीं थीं, और न ही हो सकती हैं, वह दरअसल अपने अवचेतन में भरी हिन्दू लोक से घृणा को इस फोटोशूट के माध्यम से पोषित कर रही थीं। वही पितृसत्ता का नाश किए जाने की बात, वही तलाकशुदा महिलाओं को आदर न दिए जाने की बात आदि आदि, जबकि भारत में सुलभा सन्यासिनी से लेकर महादेवी वर्मा तक ऐसी महिलाओं की एक वृहद श्रृंखला रही है, जिनके वैवाहिक जीवन पर कोई बात नहीं करता। यहाँ तक कि अक्क महादेवी की पूजा भी यह समाज करता है जिन्होंने महादेव के प्रेम और भक्ति के लिए अपने पति, राजपाट और वस्त्र तक त्याग दिए थे।
आज भी कान्हा के प्रेम में दीवानी मीरा के भजन कि “मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोय, जाके सर मोर मुकुट मेरो पति सोय’ को गाया जाता है। भारत में स्त्री – पुरुष संबंधों को लेकर एक वृहद एवं विशाल दृष्टिकोण रहा है, परन्तु वामपंथी फेमिनिज्म चूंकि भारत से इस सीमा तक घृणा करता है कि वह अवसर खोजता है, भारत के लोक को अपमानित करने का।
शालिनी के इस फोटोशूट के माध्यम से उन्हें एक माध्यम मिला था, जो कि रियाज का नाम आते ही फुस्स हो गया, और इस घटना ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि एक बड़े वर्ग, जिसकी रग-रग में भारतीय लोक और संस्कृति के प्रति अथाह घृणा है, के लिए शालिनी की पीड़ा और शालिनी का हर्ष कतई मायने नहीं रखता है, हां उसके ईगो को भारतीय लोक को कोसकर आनंद प्राप्त होता है, इसलिए वह भारतीय लोक की निंदा करने के लिए और नीचा दिखाने के लिए शालिनी के फोटोशूट को प्रयोग करने के लिए कदम बढ़ा ही रहा था कि रियाज का नाम सामने आ गया और आन्दोलन गीला पटाखा हो गया। या कहें क्रान्ति का असमय गर्भपात हो गया!
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