समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मंगलवार को चौथे दिन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि शादी और तलाक के मामले में कानून बनाने का अधिकार तो संसद को ही है। ऐसे में हमें यह देखना होगा कि कोर्ट कहां तक जा सकता है। इस मामले पर कल यानी 26 अप्रैल को भी सुनवाई जारी रहेगी।
आज चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शामिल हुए, जबकि चीफ जस्टिस समेत बेंच के बाकी तीन जज फिजिकल मोड में सुनवाई के लिए बैठे। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वकील गीता लूथरा ने कहा कि उनके मुवक्किल इस मामले में पहला एकमात्र जोड़ा है, जो कानूनी रूप से छह साल से विवाहित है। उनकी शादी अमेरिका के टेक्सास में पंजीकृत है। उनकी एक बेटी भी है। यह एक महत्वपूर्ण धर्मनिरपेक्ष कार्य है। उन्होंने कहा कि विसंगति ये है कि जब हम देश के बाहर हैं तो एक युगल हैं लेकिन जैसे ही मैं भारत में आता हूं, मेरी शादी मान्य नहीं रह जाती। उन्होंने कहा कि कोई मेरे अधिकारों को दरकिनार नहीं कर सकता। एक नागरिक के रूप में मेरे अधिकारों को सिर्फ इसलिए नकारा नहीं जा सकता क्योंकि मैं विदेश में रह रहा हूं। लूथरा ने कहा कि आज 34 देशों ने समलैंगिक विवाह को स्वीकार किया है, जो कि भारत में नहीं है और यह लिंग के आधार पर भेदभाव है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं में से एक की वकील मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि सरकार का जवाब संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। ये केशवानंद भारती और पुट्टु स्वामी मामलों में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के भी विरुद्ध है। क्योंकि न्यायिक समीक्षा का अधिकार भी धारा 32 के तहत संविधान की मूल भावना है। उन्होंने कहा कि धारा 25 में दिए गए अधिकारों के तहत हमें भी अपनी मर्जी से विवाह करने का अधिकार है। इसके अर्थ में कोई बदलाव नहीं हो सकता। हम धारा 32 के तहत ही सीधे सुप्रीम कोर्ट आए हैं, क्योंकि हमारे अधिकारों का हनन हो रहा है। ऐसे में सरकार यह कहकर मामले को नहीं टाल सकती कि यह संसद का अधिकार क्षेत्र है। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि पुट्टु स्वामी मामला तो आधार को लेकर उठाई गई आपत्तियों के समय सामने आया लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि बच्चा गोद लेने और विरासत के अधिकार पर्सनल लॉ से ही निर्देशित होते हैं।
एक हिंदू और दूसरा क्रिश्चियन जोड़े की तरफ से वकील आनंद ग्रोवर ने कहा कि यह एक गलत धारणा प्रचलित है कि भारत में समान लिंग वाले संबंध नहीं हो सकते। यह पूरी तरह गलत धारणा है। जहां तक शहरी अभिजात्य वर्ग की बात है, उसमें से कुछ छोटे शहरों से थे और कुछ राजधानियों से आए और उन्होंने हाईकोर्ट्स से सुरक्षा की मांगी। ऐसे में सरकार का अभिजात्य वर्ग वाला बयान गलत है। उन्होंने कहा कि जन्म से एक पुरुष हूं और मैंने एक महिला से शादी की है। शादी के दौरान मैं एक महिला बन गया। अब कानून यह नहीं कहता है कि शादी खत्म हो गई।
ग्रोवर ने रामायण की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि भगवान राम जब वनवास जा रहे थे उस समय उन्होंने सभी पुरुषों और महिलाओं से अयोध्या लौट जाने को कहा था। किन्नर इस आदेश को मानने के लिए बाध्य नहीं थे। जब राम ने यह आदेश दिया तो किन्नरों ने चित्रकूट में ही भगवान का इंतजार करने का फैसला किया। किन्नरों का कहना था कि वो ना नर हैं ना नारी, इसलिए वो उनका आदेश मानने को बाध्य नहीं है।
एक अन्य ट्रांसजेंडर याचिकाकर्ता की ओर से जेना कोठारी ने कहा कि हमारा कहना है कि शादी में केवल समलैंगिक जोड़ों को ही नहीं अन्य सभी को बराबरी का हक मिले। जबकि ट्रांसजेंडर्स लोगों को बराबरी का अधिकार नहीं मिल रहा है। रोजमर्रा की जिंदगी में उन्हें अभी भी बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। हमें भी जीवन के अधिकार के तहत परिवार का अधिकार मिले। हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि ट्रांसजेंडर लोगों के पास परिवार होता है, लेकिन उनके परिवार शादियों को कानूनी तौर पर मान्यता ही नहीं देते। एक याचिकाकर्ता अक्काई पद्मशाली का कहना था कि मैं पुरुष पैदा हुई थीं। घर पर इतना प्रताड़ित किया गया कि 15 साल की उम्र में घर छोड़ दिया। अब अदालत इन्हें शादी करने जीवनसाथी चुनने और वंशवृद्धि का अधिकार दे।
वकील सौरभ कृपाल ने कहा कि शायद हमें सारे अधिकार मिल जाएं और मैं उम्मीद करता हूं कि ऐसा हो लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हम पहला कदम न उठाएं। उन्होंने कहा कि जब मूल अधिकारों का हनन होता है तो अदालत को दखल देना ही पड़ता है। उन्होंने कहा कि पिछले 75 सालों में संसद ने हमें दिखाया है कि जब बात एलजीबीटी समुदाय की आती है, वो कुछ नहीं करती है।
इस संविधान बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस. रवींद्र भट, जस्टिस हीमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल रहेंगे। 13 मार्च को कोर्ट ने इस मामले को संविधान बेंच को को रेफर कर दिया था।
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