इंडिया टुडे की पत्रिका “ब्राइड्स टुडे” ऐसी पत्रिका है, जिसमें कथित एलीट वर्ग की जीवन शैली और अमीरों की दुल्हनों के विषय में क्या नया हो रहा है, उसके विषय में निरंतर लिखा जाता है। कथित एलीट इसलिए कहा क्योंकि उसका नाम आम जनता को नहीं पता है, जो सहज है वह उन तमाम विकृतियों से दूर रहता है, जो उस कथित एलीट वर्ग से उत्पन्न होती हैं। परन्तु यह भी बात सत्य है कि ये तमाम विकृतियाँ दरअसल उसी सहज वर्ग को प्रदूषित करने के लिए बनाई जाती हैं, जैसी आजकल महिला और पुरुष के बीच जो लैंगिक भेद है उसे मिटाने के लिए
ब्राइड्स टुडे के इस अंक में भारतीय दुल्हन का ऐसा विकृत रूप दिखाया है, जिसे देखकर नेट पर लोग हैरान रह गए। इसके मुखपृष्ठ पर एक ट्रांस एक्टिविस्ट आलोक वैद मेनन का फोटो शूट प्रकाशित किया गया है। इस तस्वीर को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। इसमें मेनन को विवाह के अवसर पर महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले परम्परागत आभूषण पहने हुए दिखाया है और साथ ही यह तक एक्टिविस्ट के शब्दों को ही सहारा बनाकर यह तक दिखाने का पूरा प्रयास किया है कि भारत में समलैंगिक विवाह को लेकर समाज में भेदभाव है।
ब्राइड्स टुडे की वेबसाईट पर जो आलोक वैद मेनन का इंटरव्यू प्रकाशित किया गया है, वह उसी खतरे की ओर संकेत कर रहा है, जिसका सामना आज पश्चिम कर रहा है। विवाह को लेकर भी उसने कर्तव्यों को नकारने की बात करते हुए कहा है कि शादी हमारी इच्छाओं से अधिक हमसे अपेक्षाओं के विषय में अधिक है। आलोक ने भारतीय समाज में विवाह जैसी पवित्र अवधारणा पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि वह एक ऐसी संस्कृति में पले/बढे, जहां पर विवाह को परिपक्वता के साथ जोड़ दिया जाता है और किसी ने कहा कि पूर्ण होने के लिए विवाह आवश्यक है।
और यह भी कहा कि आलोक को अपने वस्त्रों की शैली आदि के कारण अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। और ऐसा संसार चाहिए जहाँ पर वह बिना हमले की आशंका के चल सकें।
जैसे ही यह तस्वीरें नेट पर आईं। लोगों की प्रतिक्रियाएं आना आरम्भ हो गईं। एक यूजर ने लिखा कि वोक महामारी भारत आ गयी है
The woke pandemic has reached India pic.twitter.com/pbjZH4Mh76
— End Wokeness (@EndWokeness) April 23, 2023
एक यूजर ने आलोक वैद मेनन की पुरानी पोस्ट से कुछ ऐसी पंक्तियाँ लिखकर साझा कीं, जिससे आलोक की उस विकृत सोच का पता चलता है जो उसके दिल में छोटी बच्चियों के प्रति है। आलोक की एक पुरानी फेसबुक पोस्ट है, जिसमें उसने लिखा था कि छोटी बच्चियां भी उतनी ही जटिल होती हैं, जितने कि हम लोग। किसी भी तरह की कोई परियों की कहानी उनके यहाँ नहीं होती है। वह भी क्वीर, ट्रांस, उदार, नीच, सुन्दर, बदसूरत आदि होती हैं। आपके बच्चे उतने सीधे नहीं होते, जैसा आपको लगता है।
Yo, India, come get your cover boy.
Women and girls don't want this skank in, on, near, or featured in our single sex spaces. https://t.co/QP7q4eMqQp pic.twitter.com/tGXgUgHdhb
— Billy Bragg (@Serena_Partrick) April 24, 2023
यह आलोक ने उस चिंता पर कहा था जो इस बात पर व्यक्त की गयी थी कि यदि ट्रांस महिलाएं आम महिलाओं के वाशरूम में जाएँगी तो बच्चियों की सुरक्षा का क्या होगा? यह बहुत ही वास्तविक चिंता है क्योंकि ऐसे मामले लगातार सामने आ रहे हैं, जहां पर ट्रांस महिलाएं आम महिलाओं वाले वाशरूम में जाकर बच्चियों का यौन शोषण कर रही हैं।
प्रश्न यह उठता है कि ब्राइडल टुडे जैसी पत्रिकाएँ क्या अलोक वैद मेनन जैसे लोगों की मानसिकता का अध्ययन नहीं करती हैं? जो बातें वर्षों से ही सार्वजनिक क्षेत्रों में हैं, उनपर विचार ही नहीं किया जाता है और एक एजेंडा चलाने के उद्देश्य से उन बातों को प्रकाशित किया जाता है, जो युवा पीढी को गलत तरीके से प्रभावित कर सकती हैं। युवा पीढी को बाल रंगाने का, रंगीन ट्रेंडी कपडे पहनने का शौक होता है, जब वह अपने इन शौकों के निकट ऐसे लोगों को पाती हैं, तो वह उनके साथ खुद को जोड़ने लगती है और फिर ऐसे लोग उन युवाओं की ऊर्जा का लाभ उठाते हैं।
जो ऊर्जा समाज के सकारात्मक कार्यों में निवेशित होनी चाहिए, वह ऊर्जा आलोक वैद मेनन जैसी गन्दी मानसिकता वाले लोगों की रक्षा करने में व्यर्थ होने लगती है क्योंकि ऐसे लोग खुद को शोषित दिखाते हैं। एवं उनका उत्पीडन और कोई नहीं बल्कि वह समाज कर रहा होता है, जो समाज इन बच्चों को भी शायद बाल रंगाने पर टोक देता हो। इसमें गलती उन पत्रिकाओं एवं पोर्टल की बहुत अधिक होती है जो आपराधिक मानसिकता को छिपाकर कथित एक्टिविज्म को प्रोत्साहित करते हैं।
ब्राइडल टुडे पर प्रकाशित आलोक वैद मेनन के विषय में एक यूजर ने लिखा कि आलोक पर बच्चों के यौन उत्पीडन के मामले दर्ज हैं।
FYI this guy has sexual molestation charges on him, for assault ON KIDS!
The woke media and pop culture won't tell you that. https://t.co/5hchxetXzG— Eshan Kokiloo (@CoachEshan) April 24, 2023
सोशल मीडिया पर लोग यह कह रहे हैं कि यह जेंडर आइडेंटिटी जैसी बीमारियाँ उन्हें पश्चिम की लगती थीं, मगर यह तेजी से पैर पसार रही हैं, और हमें अपने बच्चों को बचाना होगा।
ब्राइडल एशिया पर जो यह तस्वीर प्रकाशित हुई है, वह कहीं न कहीं उसी महिला विरोधी सोच को दर्शाती है, जो हमने कथित समावेशीकरण के नाम पर पश्चिम में देखी कि उन क्षेत्रों में महिलाओं के स्थान पर महिला बनकर आ जाना, जहां से वह धनार्जित कर रही हैं, जहां से वह नाम कमा रही हैं। लिया थॉमस, आलोक वैद मेनन जैसे लोग महिलाओं को उनके अपने क्षेत्र से बाहर कर उन्हें सामाजिक एवं आर्थिक परिदृश्य से गायब करना चाहते हैं। यह पहचान पर अतिक्रमण है।
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