हल्द्वानी : शैलेश मटियानी आधुनिक हिन्दी साहित्य-जगत के प्रसिद्ध कहानीकार एवं गद्यकार थे। उन्होंने कहानियों के अतिरिक्त अनेक निबंध तथा प्रेरणादायक संस्मरण भी लिखे हैं। उनके हिन्दी साहित्य के प्रति प्रेरणादायक समर्पण व उत्कृष्ट रचनाओं के सम्मान में उत्तराखंड सरकार द्वारा हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में पुरस्कार वितरण किया जाता है।.
शैलेश मटियानी का जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के ग्राम बाड़ेछीना में 14 अक्टूबर सन 1931 में हुआ था। उनका मूल नाम रमेशचंद्र सिंह मटियानी था। बारह वर्ष की अवस्था में उनके माता-पिता का देहांत हो गया था। पारिवारिक तथा आर्थिक कारणों से निरंतर विद्याध्ययन में व्यवधान पड़ गया था, अत: पढ़ाई बीच में ही रुक गई थी। तब उन्हें जीवनयापन हेतु पशुओं के बूचड़खाने में जुए की नाल उघाने का काम करना पड़ा था।
सत्रह वर्ष की उम्र में उन्होंने फिर से पढ़ना शुरू किया, बेहद विकट परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण की और रोजगार की तलाश में पैतृक गांव छोड़कर सन 1951 में दिल्ली आ गए। दिल्ली में वह अमर कहानी के संपादक आचार्य ओमप्रकाश गुप्ता के यहां रहने लगे। उस समय तक ‘अमर कहानी’ और ‘रंगमहल’ में उनकी कहानी प्रकाशित हो चुकी थी। इसके बाद वह इलाहाबाद चले गए और बाद में उन्होंने मुजफ्फरनगर में भी काम किया। दोबारा दिल्ली में कुछ समय रहने के बाद वह मुंबई चले गए, जहां पांच-छह वर्षों तक उन्हें अनेकों कठिन अनुभवों से गुजरना पड़ा था। सन 1956 में उन्हें श्रीकृष्णपुरी हाउस में काम मिला और अगले साढ़े तीन साल तक वह वहीं रहे, वहां उन्होंने अपना लेखन कार्य भी जारी रखा था।
मुंबई से अल्मोड़ा और दिल्ली होते हुए वह दोबारा इलाहाबाद आ गए और फिर कई वर्षों तक वहीं रहे। सन 1992 में छोटे पुत्र की मृत्यु के बाद उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया था। जीवन के अंतिम समय में वह उत्तराखंड के हल्द्वानी आ गए थे। मटियानी जब हल्द्वानी आकर बसे तो आवास विकास कॉलोनी में एक किराए के मकान में रहते थे। यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को जब ये बात मालूम हुई, तो उन्होंने नैनीताल के उस समय के डीएम बीपी पांडेय को उनके घर भेजा और उनके लिए भूमि और घर की व्यवस्था करने के लिए घोषणा की, साथ ही उनकी बेटी के लिए कुमाऊं विश्व विद्यालय में नौकरी की भी व्यवस्था करवाई। कल्याण सिंह ने अपनी सरकार में मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को उनके स्वास्थ्य और कुशल क्षेम पूछने के लिए भी कहा था। डॉ. निशंक जब भी हल्द्वानी आते वे उनसे मिलने उनके आवास अवश्य जाते थे।
बात दें, मानसिक विक्षिप्तता की अवस्था में उनका देहावसान 24 अप्रैल सन 2001 में दिल्ली के शहादरा अस्पताल में हुआ था। शैलेश मटियानी का अंतिम संस्कार हल्द्वानी उत्तराखंड में किया गया था। उनके देहावसान के पश्चात शैलेश मटियानी स्मृति कथा पुरस्कार की स्थापना की गई थी।
शैलेश मटियानी ने सन 1950 से ही कविताएं और कहानियां लिखनी शुरू कर दी थीं। प्रारम्भ में वह रमेश मटियानी ‘शैलेश’ नाम से लिखते थे। उनका पहला कहानी संग्रह ‘मेरी तैंतीस कहानियां’ सन 1961 में प्रकाशित हुआ था। उनकी कहानियों में ‘डब्बू मलंग’, ‘रहमतुल्ला’, ‘पोस्टमैन’, ‘प्यास और पत्थर’, ‘दो दुखों का एक सुख’, ‘चील’, ‘अर्द्धांगिनी’, ‘ जुलूस’, ‘महाभोज’, ‘भविष्य’ और ‘मिट्टी’ आदि विशेष उल्लेखनीय है। कहानियों के साथ उन्होंने कई प्रसिद्ध उपन्यास भी लिखे थे। उनके कई निबंध संग्रह एवं संस्मरण भी प्रकाशित हुए। उन्होंने ‘विकल्प’ और ‘जनपक्ष’ नामक दो पत्रिकाएं भी निकाली थी। उनके पत्र ‘लेखक और संवेदना’ में संकलित हैं। वह अपनी छोटी-छोटी कहानियों के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं, जिनमें भारतीय निम्न और निम्न-मध्य वर्ग के संघर्षों और युद्ध की भावना का चित्रण किया गया है।
शैलेश मटियानी को उनके प्रथम उपन्यास ‘बोरीवली से बोरीबंदर तक’ को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया था। इसके पश्चात उन्हें ‘महाभोज’ कहानी पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का प्रेमचंद पुरस्कार, सन 1977 में उत्तर प्रदेश शासन की ओर से पुरस्कृत, सन 1983 में फणीश्वरनाथ रेणु पुरस्कार बिहार सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार का संस्थागत सम्मान, देवरिया केडिया संस्थान द्वारा साधना सम्मान, सन 1994 में कुमाऊं विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट. की मानद उपाधि, सन 1999 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा लोहिया सम्मान, सन 2000 में केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार के साथ अनेकों सम्मान और पुरस्कार प्रदान किए गए थे।
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