गोकृति में बने कागज पर हनुमान चालीसा प्रकाशित की गई है। पूरी चालीसा हिंदी, अंग्रेजी और रोमन में है। प्रत्येक चौपाई का हिंदी और अंग्रेजी में अर्थ भी बताया गया है। भीमराज शर्मा के अनुसार अब तक इस चालीसा की 5,000 प्रतियां तो विदेशों में बिक चुकी हैं।
गाय, गोबर, गोमूत्र आदि की बात सुनते ही कुछ लोग भौहें सिकोड़ लेते हैं। ऐसे लोगों को जयपुर स्थित सुदर्शनपुरा औद्योगिक क्षेत्र में ‘गोकृति’ के नाम से चल रही एक इकाई को देखना चाहिए। यहां गोवंश के गोबर से 100 से अधिक उत्पाद तैयार होते हैं। इसके संस्थापक हैं भीमराज शर्मा।
इन्होंने गोबर के माध्यम से स्वावलंबन और सफलता का एक बेजोड़ उदाहरण समाज के सामने रखा है। गोकृति का एक प्रमुख उत्पाद है कागज। इस कागज से डायरियां, फाइल फोल्डर, विवाह आमंत्रण पत्र, शुभकामना लिफाफे, राखियां, छोटे गुलदस्ते, गिफ्ट बॉक्स, टेबल कैलेंडर, चूड़ी बॉक्स सहित कई तरह की सजावटी एवं दैनिक उपयोगी की वस्तुएं बनाई जाती हैं।
गोकृति में बने कागज पर हनुमान चालीसा प्रकाशित की गई है। पूरी चालीसा हिंदी, अंग्रेजी और रोमन में है। प्रत्येक चौपाई का हिंदी और अंग्रेजी में अर्थ भी बताया गया है। भीमराज शर्मा के अनुसार अब तक इस चालीसा की 5,000 प्रतियां तो विदेशों में बिक चुकी हैं। इसके अलावा गोबर से गणेशजी, लक्ष्मी जी आदि देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाई जाती हैं। गोकृति में होली के समय उपहार का पैकेट तैयार होता है, जिसमें गोबर से बनी चीजें होती हैं। यहां गुलाल बहुत ही प्रसिद्ध है। दीपावली में दीए और अन्य सजावटी सामान तैयार किए जाते हैं। रक्षाबंधन के समय कई प्रकार की राखियां तैयार होती हैं।
गोकृति का सालाना कारोबार एक करोड़ रु. से अधिक है। इससे 30 लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिला है, जबकि अप्रत्यक्ष रूप से सैकड़ों लोग लाभान्वित हो रहे हैं। यही कारण है कि आज गोकृति की गूंज पूरे देश में सुनी जा रही है। बहुत सारे लोग गोकृति के कार्यों का अध्ययन कर रहे हैं, ताकि वे भी गो उत्पादों पर आधारित कुछ कार्य कर सकें।
इन उत्पादों की सबसे बड़ी विशेषता है कि इनमें पांच तरह के पौधों के बीज होते हैं। उपयोग के बाद इन उत्पादों को किसी गमले में रख देने से उसमें मौजूद बीज से पौधे उग आते हैं। उन पौधों को आप अपनी सुविधा के अनुसार कहीं भी लगा सकते हैं। गोकृति के लिए जयपुर के आसपास के गांवों से 10 रु. प्रतिकिलो गोबर खरीदा जाता है। भीमराज शर्मा कहते हैं, ‘‘इससे गोपालन को बढ़ावा मिल रहा है। लोग बूढ़ी गायों और बूढ़े बैलों को भी नहीं बेचते हैं।
गोकृति गोरक्षा का जरिया बन गई है।’’ उन्होंने यह भी बताया कि गोकृति का सालाना कारोबार एक करोड़ रु. से अधिक है। इससे 30 लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिला है, जबकि अप्रत्यक्ष रूप से सैकड़ों लोग लाभान्वित हो रहे हैं। यही कारण है कि आज गोकृति की गूंज पूरे देश में सुनी जा रही है। बहुत सारे लोग गोकृति के कार्यों का अध्ययन कर रहे हैं, ताकि वे भी गो उत्पादों पर आधारित कुछ कार्य कर सकें।
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