‘माघ के समान कोई महीना नहीं, सतयुग के समान कोई युग नहीं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं, गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं और अक्षय तृतीया के समान कोई तिथि नहीं।’ इस वैदिक मान्यता का प्रतिपादन करते हुए शास्त्र कहते हैं कि “न क्षयति इति अक्षय” अर्थात जिसका कभी क्षरण न हो। इसीलिए अक्षय तृतीया को ईश्वरीय तिथि माना जाता है। इस दिन बिना पंचाग देखे ही कोई भी शुभ कार्य बिना किसी सोच विचार के सहज ही किया जा सकता है।
शुभ कार्यों के लिए हमारे यहां वर्ष में साढ़े तीन स्वयंसिद्ध अभिजित मुहूर्त निर्धारित किये गये हैं। इनमें सर्वप्रमुख अभिजित मुहूर्त है अक्षय तृतीया। शेष ढाई अभिजित मुहूर्त हैं- चैत्र शुक्ल गुड़ी पड़वा, आश्विन शुक्ल विजयादश्मी तथा दीपावली की पड़वा का आधा दिन। वैशाख मास की विशिष्टता अक्षय तृतीया के कारण अक्षुण्ण मानी जाती है। अक्षय तृतीया की महत्ता से जुड़े विविध महत्वपूर्ण सन्दर्भों के उल्लेख विष्णु धर्मसूत्र, मत्स्य, नारद तथा भविष्य पुराण आदि धर्मग्रंथों विस्तार से मिलते हैं।
अक्षय तृतीया से जुड़े विविध पौराणिक संदर्भ
भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की गणना युगादि तिथियों में होती है क्योंकि सतयुग एवं त्रेतायुग का प्रारंभ अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में नर-नारायण, हयग्रीव एवं चिरंजीवी अवतार भगवान परशुराम, इन तीन अवतारों का प्राकट्य अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था। श्रीहरि के पौराणिक तीर्थ बद्रीनारायण के पट अक्षय तृतीया को ही खुलते हैं। वृंदावन के बांके बिहारी के चरण कमलों का दर्शन वर्ष में केवल एक बार अक्षय तृतीया के दिन ही होते हैं। इस दिन देवी अन्न पूर्णा का जन्मोत्सव मनाया जाता है। महाभारत के अनुसार महर्षि वेदव्यास ने अक्षय तृतीया के दिन से ही महाभारत लिखना शुरू किया था। कथानक है कि द्वापर युग में महाभारत काल में जिस दिन दु:शासन ने द्रौपदी का चीर हरण किया था, उस दिन अक्षय तृतीया तिथि थी। उस दिन द्रौपदी की लाज बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को अक्षय चीर प्रदान किया था। अक्षय तृतीया पर ही श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को अक्षय पात्र प्रदान किया था। इस पात्र की यह विशेषता थी कि इसका भोजन कभी समाप्त नहीं होता था। इसी पात्र की सहायता से युधिष्ठिर अपने राज्य के भूखे और गरीब लोगों को भोजन उपलब्ध कराते थे।
श्रीमद्भागवत के कथानक के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही सुदामा अपने मित्र भगवान कृष्ण से मिलने द्वारिका गये थे। सुदामा के पास कृष्ण को भेंट करने के लिए मात्र दो मुट्ठी चावल के दाने ही थे। अपने बाल सखा के इस उपहार को अत्यंत प्रेम भाव से ग्रहण कर प्रतिदान में श्रीकृष्ण ने उनकी झोपड़ी को स्वर्ण महल में रूपांतरित कर दिया था। बताते चलें कि जैन धर्म के पुराण ग्रन्थ के अनुसार प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी महाराज ने भी 400 वर्षों की तपस्या के उपरांत अक्षय तृतीया के दिन ही इक्षुरस (गन्ने के रस) ग्रहण कर अपने तप अनुष्ठान का पारण किया था।
वसंत और ग्रीष्म के संधिकाल का महोत्सव
अक्षय तृतीया का पर्व वसंत और ग्रीष्म के संधिकाल का महोत्सव है। इस तिथि में गंगा स्नान तथा पितरों का तिल व जल से तर्पण और पिंडदान अक्षय फलदायी माना जाता है। आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार अनुसार इस दिन यथा सामर्थ्य जल, अनाज, गन्ना, दही, सत्तू, खरबूजा, तरबूज, खीरा, ककड़ी आदि फल तथा मटका, सुराही, हाथ से बने पंखे, सूती वस्त्र, जूता, छाता, गौ, भूमि आदि का दान विशेष फल प्रदान करने वाला माना जाता है।
अलौकिक कोष में जमा हो जाता है इस दिन किया गया दान
पंडित जय गोविन्द शास्त्री कहते हैं कि इस दिन किये जाने वाले दान को वैज्ञानिक तर्कों में ऊर्जा के रूपांतरण से जोड़ कर देखा जा सकता है। दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करने के लिए यह दिवस सर्वश्रेष्ठ माना गया है। अक्षय तृतीया के विषय में कहा गया है कि इस दिन किया गया दान खर्च नहीं होता है, यानी आप जितना दान करते हैं उससे कई गुना आपके अलौकिक कोष में जमा हो जाता है। मृत्यु के बाद जब अन्य लोक में जाना पड़ता है तब उस धन से दिया गया दान विभिन्न रूपों में प्राप्त होता है। इसी तरह दान देने वाले पुनर्जन्म लेकर जब फिर से धरती पर आते हैं तब भी उस कोष में जमा धन के कारण उनको धरती पर भौतिक सुख एवं वैभव प्राप्त होता है।
भौतिक उन्नति के लिए विशेष महत्व
आचार्य रामचंद्र शुक्ल बताते हैं कि धन और भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति तथा भौतिक उन्नति के लिए इस दिन का विशेष महत्व है। धन प्राप्ति के मंत्र, अनुष्ठान व उपासना बेहद प्रभावी होते हैं। स्वर्ण, रजत, आभूषण, वस्त्र, वाहन और संपत्ति के क्रय के लिए मान्यताओं ने इस दिन को विशेष बताया गया है। विशेष तौर पर इस दिन सोने के आभूषण की खरीदारी बेहद शुभ मानी जाती है। मान्यता है इस दिन सोने और चांदी के आभूषण खरीदने से व्यक्ति के जीवन में माता लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहता है जिससे व्यक्ति का जीवन सुख,समृद्धि और वैभव का वास रहता है। इस दिन पदभार ग्रहण, वाहन क्रय, भूमि पूजन तथा नया व्यापार जो भी कार्य शुरू किया जाता है उसमें अपार सफलता और सुख-संपदा की प्राप्ति होती है। इस दिन परिणय सूत्र में बंधे दंपत्तियों का दांपत्य जीवन भी अत्यंत प्रेम भरा होता है। कारण कि इस दिन प्राप्त आशीर्वाद बेहद तीव्र फलदायक माने जाते हैं। ओडिशा और पंजाब में इस तिथि को किसानों की समृद्धि से जोड़कर देखा जाता है तो बंगाल में इस दिन गणपति और लक्ष्मीजी की पूजा का विधान है।
दान का महापर्व बने अक्षय तृतीया
भारतीय मनीषियों की मान्यता है कि बैशाख मास के शुक्लपक्ष की तृतीया में ऐसी दिव्य ऊर्जा है कि इस दिन किया जाने वाला जप-तप, दान, हवन, तीर्थस्थान का पुण्यफल “अक्षय” हो जाता है। बैशाख मास में भगवान सूर्य की तेज धूप तथा प्रचंड गर्मी से प्रत्येक जीवधारी भूख-प्यास से व्याकुल हो उठता है इसलिए प्यासे को पानी पिलाना व यथा सामर्थ्य दान पुण्य करना इस तिथि का सर्वप्रथम संदेश है। हम ईमानदारी से आत्म-निरीक्षण करें कि हम जिस समाज, जिस देश का अंग हैं, उसके प्रति अपने कर्तव्य का कितना पालन करते हैं? संभवत: हमें इसी दायित्व का बोध कराने के लिए हमारे ऋषि-मुनियों ने कुछ तिथियों को दान का महापर्व बनाकर उन्हें मुख्य आध्यात्मिक धारा में ला दिया; ताकि दान की प्रेरणा मिलती रहे।
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