आज अनुसंधान एवं जल संरक्षण की तकनीक के साथ किसानों को फसल उगाने के तौर-तरीके बताते हैं। उन्होंने पौधों को एक लीटर पानी से एक पेड़ के रूप में बदलने करने की उन्नत तकनीक विकसित की।
आज से लगभग 65 वर्ष पहले सुंडाराम वर्मा ने अपने खेत पर ही शोध करना शुरू किया और अब वे एक सफल किसान हैं। उनकी पहचान है शुष्क खेती के साथ वानिकी एवं विभिन्न फसलों की देसी किस्मों का नवाचार करना। वे आज अनुसंधान एवं जल संरक्षण की तकनीक के साथ किसानों को फसल उगाने के तौर-तरीके बताते हैं। उन्होंने पौधों को एक लीटर पानी से एक पेड़ के रूप में बदलने करने की उन्नत तकनीक विकसित की। वे इस तकनीक से अब तक 50,000 से भी ज्यादा पेड़-पौधे लगवा चुके हैं। सुंडाराम बताते हैं, ‘‘विज्ञान में स्नातक करने के बाद भी मैंने खेती की ओर रुख किया।
जब मैं पढ़ता था तब मेरे चाचा जी कृषि से संबंधित पत्रिकाएं लाते थे। उन्हें पढ़कर ही खेती के प्रति मेरी रुचि बढ़ी। इन्हीं पत्रिकाओं से हमें विभिन्न प्रकार की कृषि तकनीक और कृषि में हो रहे नवाचार की जानकारी मिली। इसके बाद हमने खेत में नए तरीके से काम करना प्रारंभ कर दिया। कुछ शुरुआती दिक्कतों के बाद सब ठीक हो गया। खेती से अच्छी आमदनी होने लगी। मेरे खेतों तक कृषि वैज्ञानिक यह देखने आते थे कि कैसे कोई किसान कृषि पर अनुसंधान करता है।’’
उन्होंने बताया, ‘‘1982 में नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में एक प्रशिक्षण के लिए जाना हुआ। इसमें मुझे शुष्क खेती की तकनीक की जानकारी मिली। इसके तहत बारिश के पानी और मिट्टी की नमी को संरक्षित करके सर्दियों की फसल ली जाती है। बरसात की नमी को गहरी जुताई करके रोककर रखा जाता है। इससे यह नमी जमीन में बनी रहती है और उससे ही फसल की उपज ली जाती है। फिर मैंने इस तकनीक को पौधों पर अपनाने की सोची।’’
सुंडाराम आगे बताते हैं कि फसलों की जड़ें लगभग एक फीट की होती हैं। जब एक फीट की जड़ों में ही फसलें तीन से चार महीने में तैयार हो जाती हैं, तो अगर फसल की जगह पौधे लगा दें तो पहले साल में ही उनकी जड़ें बहुत गहराई तक जा सकती हैं। बस उन्होंने इस तकनीक पर खेती के साथ अपने प्रयोग करने शुरू कर दिए। उन्होंने फलदार पौधों और औषधीय पौधों पर भी यह तकनीक अपनाई और इसमें भी उन्हें सफलता हासिल हुई।
सुंडाराम ने 13 साल पहले एक हेक्टेयर भूमि पर अनार का बगीचा लगाया। इसके लिए उन्होंने बूंद-बूंद सिंचाई का सहारा लिया, ताकि पानी अधिक खर्च न हो। इसके बावजूद 8 साल पहले वहां का पानी पूरी तरह खत्म हो गया। ऐसे में उन्होंने बारिश के पानी को इकट्ठा करने की तकनीक पर काम शुरू किया।
फसलों की जड़ें लगभग एक फीट की होती हैं। जब एक फीट की जड़ों में ही फसलें तीन से चार महीने में तैयार हो जाती हैं, तो अगर फसल की जगह पौधे लगा दें तो पहले साल में ही उनकी जड़ें बहुत गहराई तक जा सकती हैं। बस उन्होंने इस तकनीक पर खेती के साथ अपने प्रयोग करने शुरू कर दिए। उन्होंने फलदार पौधों और औषधीय पौधों पर भी यह तकनीक अपनाई और इसमें भी उन्हें सफलता हासिल हुई। -सुंडाराम वर्मा
इसके लिए उन्होंने पौधों के बीच जो खाली जगह होती है, उस पर पॉलीथीन बिछा दी। उन्होंने 10,000 वर्ग मीटर जमीन में से 4,000 वर्ग मीटर को खुला रखा और 6,000 वर्ग मीटर जमीन को पॉलीथीन से ढक दिया। इस तकनीक से हर साल एक हेक्टेयर में 20 लाख लीटर पानी इकट्ठा होता है। इस तरह उनका अनार का बगीचा हरा-भरा रहता है और इससे उन्हें हर वर्ष लगभग 5,00,000 रु. की आय होती है।
अंत में सुंडाराम कहते हैं कि किसान सब कुछ कर सकता है। सरकार को भी ऐसी योजनाएं बनानी चाहिए।
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