हैजा, मलेरिया जैसी बीमारियों के लिए उपयोगी दवा ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन, जिसे आम बोलचाल में ओआरएस घोल कहा जाता है, के जनक हैं डॉ. दिलीप महालनाबिस। इन्हें इस बार मरणोपरांत पद्मश्री देने का निर्णय लिया गया है।
डॉ. दिलीप महालनाबिस का जन्म 12 नवंबर, 1934 को हुआ था। उन्होंने कोलकाता और लंदन से पढ़ाई की थी। ओआरएस बनाने के पीछे एक कहानी है। 1971 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में फौजी दमन के बाद बड़ी संख्या लोग शरणार्थी के रूप में भारत आ रहे थे।
डॉ. दिलीप महालनाबिस उन बीमार शरणार्थियों का इलाज करते थे। उन्हीं दिनों हैजा फैला और उसने शरणार्थी शिविरों में रह रहे लोगों को अपनी चपेट में ले लिया। उनकी टीम पश्चिम बंगाल के बनगांव में एक शरणार्थी शिविर में हैजा महामारी से पीड़ितों का इलाज कर रही थी, लेकिन इस बीच हैजा से बचाव के लिए दी जाने वाली दवा समाप्त हो गई।
ओआरएस ने शिविरों में हैजा से होने वाली मृत्यु दर को 40 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया था।
डॉ. महालनाबिस ने 1975 से 1979 के बीच अफगानिस्तान, मिस्र और यमन में भी लोगों को हैजा से बचाया।
तब डॉ. महालनाबिस ने लोगों की जान बचाने के लिए ओआरएस का उपयोग करना उचित समझा। ओआरएस पैकेट उपलब्ध न होने से उन्होंने ड्रम में नमक और चीनी का घोल (ओआरएस) तैयार किया और मरीजों को दिया। उनका यह प्रयोग बहुत सफल रहा।
एक रपट से यह सिद्ध हुआ कि ओआरएस ने शिविरों में हैजा से होने वाली मृत्यु दर को 40 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया था। डॉ. महालनाबिस ने 1975 से 1979 के बीच अफगानिस्तान, मिस्र और यमन में भी लोगों को हैजा से बचाया। गत वर्ष उनका निधन हो चुका है।
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