तिब्बतियों और बौद्ध धर्म के विरुद्ध चीन ने जैसे मोर्चा खोला हुआ है। कम्युनिस्ट चीनी शासन ने तिब्बत का जो हाल किया वह किसी से छुपा नहीं हैं। जिस तरह वहां के प्राचीन बौद्ध मठों को तोड़ा गया है, वरिष्ठ लामाओं को अपमानित करके गुमनामी के गर्त में डाला गया है, नौजवान तिब्बतियों को जिस तरह प्रताड़ित किया जा रहा है, वह दुनिया से छुपा नहीं है। धर्म विरोधी कम्युनिस्ट ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं जिससे तिब्बतियों की नस्ल ही खत्म हो जाए। इसी के कड़ी में चीन दूसरे पड़ोसी देशों में बसे तिब्बतियों का जीना भी मुहाल किए हुए है।
ताजा समाचार नेपाल से आया है। वहां बसे तिब्बतियों पर भी चीन परोक्ष रूप से अपना दमन चक्र चलाए हुए है। वहां रह रहे करीब 15 हजार तिब्बतियों के मानवाधिकारों पर कुठाराघात करने के लिए अंदरखाने नेपाल सरकार पर कथित दबाव बनाया हुआ है।
तिब्बतियों के दर्द को दुनिया तक पहुंचाने में जुटी संस्था तिब्बत राइट्स कलेक्टिव की एक हाल की रिपोर्ट हैरान करने वाली है। रिपोर्ट बताती है कि नेपाल की सरकार पर चीन का एक संगठन ‘काउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ पीसफुल नेशनल रीयूनिफिकेशन’ का भारी दबाव है कि तिब्बतियों के अधिकार छीने जाएं। पता चला है कि चीन से आर्थिक सहायता पाने के चक्कर में काठमांडू के कम्युनिस्ट शासक चीन के इस दबाव में आ चुके हैं और तिब्बतियों के भले का भुला चुके हैं। इससे नेपाल के पर्वतीय इलाकों में बसे हजारों तिब्बती शरणार्थियों को रोजमर्रा जीवन में अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
दूसरे देशों तक में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की नफरती विचारधारा के सुनियोजित प्रसार की कोशिश का नेपाल जीता—जागता उदाहरण बनता दिखाई दे रहा है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के एजेंडे को दूसरे देशों में चीन अपने यहां के एजीओ संगठनों को हस्तक बनाता आ रहा है। नेपाल में भी ‘काउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ पीसफुल नेशनल रीयूनिफिकेशन’ के माध्यम से बीजिंग की सत्ता यही प्रयास कर रही है। चीन के कम्युनिस्ट शासन के कथित इशारों पर काम करने वाला यह एनजीओ नेपाल में तिब्बत से आए शरणार्थियों के जीवन पर मुसीबतें बरपाने की कोशिश में जुटा है।
नेपाल में ‘काउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ पीसफुल नेशनल रीयूनिफिकेशन’ के माध्यम से बीजिंग की सत्ता तिब्बत से आए शरणार्थियों के जीवन पर मुसीबतें बरपाने की कोशिश में जुटी है।
तिब्बत के शांतिप्रिय बौद्ध लोगों के अधिकारों की चिंता करने वाले संगठन तिब्बत राइट्स कलेक्टिव की उक्त रिपोर्ट बताती है कि नेपाल सरकार पर इस चीनी संगठन का काफी असर है और यह वहां रह रहे तिब्बत के लोगों के मानवीय अधिकारों को कुचलने का दबाव बनाए हुए है।
उल्लेखनीय है कि चीन नेपाल को भी अपनी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना से जोड़ने का इच्छुक है। इसके माध्यम से ही चीन सरकार नेपाल की सरकार को अपने यहां रह रहे तिब्बती लोगों की गतिविधियों पर लगाम कसने के बदले कथित तौर पर काफी पैसा दे रही है। इतना ही नहीं, चीन ने वहां के शासन के साथ भारी निवेश करने का वायदा किया है।
तिब्बतियों के लिए चिंता अब और बढ़ सकती है क्योंकि अब तो नेपाल में चीन के इशारों पर चलने वाले गठबंधन की कम्युनिस्ट सरकार है। ऐसे में लगता नहीं है कि नेपाल की वर्तमान प्रचंड सरकार चीन के किसी भी ‘आदेश’ की अवहेलना करने की हिम्मत दिखाएगी। तिब्बती संगठन की यह रिपोर्ट बताती है कि नेपाल में तिब्बती शरणार्थियों के लिए स्कूलों—कॉलेजों में प्रवेश, बैंकों में खाते खोलने और कारोबार करने देने में अड़चनें खड़ी की हुई हैं। तिब्बतियों की शिकायतों की खास सुनवाई भी नहीं होती है। कुल मिलाकर नेपाल में बसे तिब्बतियों में अब अपना अस्तित्व बचाने को लेकर चिंता पैदा हो गई है।
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