विजयादशमी पर नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से श्री विजयादशमी उत्सव में सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी ने कहा कि देश में नवोत्थान की प्रक्रिया में अभी भी बाधाओं को पार करना पड़ेगा। पहली बाधा है गतानुगतिकता! समय के साथ मनुष्यों का ज्ञाननिधि बढ़ता रहता है। समय के चलते कुछ चीज़ें बदलती हैं, कुछ विलुप्त हो जाती हैं। कुछ नयी बातें व परिस्थितियां जन्म भी लेती हैं। इसलिए नयी रचना बनाते समय हमें परम्परा व सामयिकता का समन्वय करना पड़ता है। अप्रासंगिक बातों का त्यागकर नयी युगानुकुल व देशानुकुल परम्पराएं बनानी पड़ती हैं। हमारी पहचान, संस्कृति, जीवन दृष्टि आदि को अधोरेखित करने वाले शाश्वत मूल्यों का क्षरण न हो, उनके प्रति श्रद्धा व उनका आचरण, पूर्ववत बना रहे इसकी सावधानी बरतनी पड़ती है ।
दूसरी प्रकार की बाधाएं भारत की एकता व उन्नति को न चाहने वाली शक्तियां निर्माण करती हैं। ग़लत अथवा असत्य विमर्श को प्रसारित कर भ्रम फैलाना, आततायी कृत्य करना अथवा उसको प्रोत्साहन देना और समाज में आतंक, कलह व अराजकता को बढ़ाते रहना, यह उनकी कार्यपद्धति है, जो दिख रही है। समाज के विभिन्न वर्गों में स्वार्थ व द्वेष के आधार पर दूरियां और दुश्मनी बनाने का काम स्वतन्त्र भारत में भी उनके द्वारा चल रहा है। उनके बहकावे में न फ़ंसते हुए, उनकी भाषा, पंथ, प्रांत, नीति कोई भी हो, उनके प्रति निर्मोही होकर निर्भयतापूर्वक उनका निषेध व प्रतिकार करना चाहिए। शासन व प्रशासन के इन शक्तियों के नियंत्रण व निर्मूलन के प्रयासों में हमें सहायक बनना चाहिए। समाज का सबल व सफल सहयोग ही देश की सुरक्षा व एकात्मता को पूर्णत: निश्चित कर सकता है।
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