लालू प्रसाद चारा घोटाले के दोषी हैं, और अभी जमानत पर हैं बाहर। इसके बाद भी वे राजद के एक बार फिर से राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने जा रहे हैं। लालू 25 साल से राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इसके बाद भी कहते हैं कि उनकी पार्टी आम जनता की पार्टी है।
इसे भारतीय लोकतंत्र का अवगुण ही कहेंगे कि एक नेता भ्रष्टाचार का दोषी है। वह अभी भी सजा काट रहा है। यह अलग बात है कि उसे जमानत मिली है और बाहर घूम रहा है। इसके बाद भी वह अपनी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष पिछले 25 वर्ष से है। और एक बार फिर से राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने जा रहा है।
यहां बात बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद के अध्यक्ष लालू यादव की हो रही है। वे एक बार फिर से राजद की कमान संभालेंगे। यानी उन्होंने एक बार फिर से बता दिया कि राजद एक परिवार की ही पार्टी है। यही बात एक बार
भाजपा के वरिष्ठ नेता नंदकिशोर यादव ने कही थी, तो उनकी बड़ी आलोचना हुई थी।
1990 से 2005 तक इसे ससुराल पार्टी कहा जाता था। जिसका तात्पर्य साधु यादव, सुभाष यादव, राबड़ी देवी और लालू प्रसाद से था। साधु और सुभाष यादव लालू प्रसाद के साले थे। बाद में साधु और सुभाष राजद से अलग हो गए। अब पार्टी में उनकी खाली जगह को लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी, तेजप्रताप एवं बेटी डॉ. मीसा भारती भर रही हैं। इसके साथ एक बात और भी तय है कि पार्टी में कोई आए या जाए राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी लालू प्रसाद के लिए आरक्षित है। पिछले 25 वर्ष से पार्टी में अब तक 6 प्रदेश अध्यक्ष हुए लेकिन किसी को इस काबिल नहीं समझा गया जो राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर विराजमान हो सके।
प्रदेश अध्यक्ष का सबसे छोटा कार्यकाल कमल पासवान का तो सबसे बड़ा डॉ. रामचंद्र पूर्वे का
चारा घोटाले में नाम आने के बाद जनता दल से अलग होकर लालू प्रसाद ने 05 जुलाई, 1997 को राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया था। जब दिल्ली में नए दल की घोषणा हो रही थी उस समय पार्टी के 17 लोकसभा सांसद और 8 राज्यसभा सांसद उपस्थित थे। उस समय बिहार-झारखंड एक था। भाजपा के कट्टर विरोधी लालू प्रसाद ने उस समय प्रदेश अध्यक्ष की कमान कमल पासवान को सौंपी थी। यह संयोग ही था कि पहला प्रदेश अध्यक्ष का नाम भाजपा के चुनाव चिन्ह् से जुड़ा हुआ था। शायद लालू प्रसाद को अपनी गलती ध्यान में आ गई और सिर्फ 24 दिन के बाद कमल पासवान की विदाई हो गई। 29 जुलाई, 1997 को राजद के प्रदेश अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी बने। हालांकि वे भी 1 वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके और 17 अप्रैल, 1998 को उनकी विदाई हो गई। राजद के तीसरे प्रदेश अध्यक्ष की कमान पीतांबर पासवान ने 18 अप्रैल, 1998 को संभाली। 5 वर्ष से अधिक समय तक वे इस पद पर बने रहे। 29 सितंबर, 2003 को उनकी विदाई के बाद प्रदेश पार्टी की कमान अब्दुल बारी सिद्दकी ने संभाली। वे 7 वर्ष तक बिहार में पार्टी को मजबूती देते रहे। इनके कार्यकाल में ही राजद बिहार में सत्ता से बेदखल हुई। इनके ही कार्यकाल में राजद सबसे कम सीटों पर सिमटी।
रामचंद्र पूर्वे ने इतिहास रचा
अब्दुल बारी सिद्दकी से प्रदेश की कमान लेने वाले रामचंद्र पूर्वे ने इतिहास रचा। राजद के वरिष्ठ नेता डॉ. रामचंद्र पूर्वे 5 दिसंबर, 2010 को प्रदेश अध्यक्ष बने। डॉ. पूर्वे लगभग 9 वर्ष तक इस पद पर बने रहे। 26 नवंबर, 2019 को वे इस पद से विदा हुए। उपलब्धि के तौर पर देखा जाए तो रामचंद्र पूर्वे के कार्यकाल में ही पार्टी की बिहार के सियासत में जोरदार वापसी हुई। 27 नवंबर, 2019 को जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया।
विवादित रहा वर्तमान अध्यक्ष जगदानंद सिंह का कार्यकाल
प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह का कार्यकाल हमेशा विवादों में रहा। तेजप्रताप के साथ उनकी अक्सर अनबन होती रही। जगदानंद सिंह के निर्णयों के खिलाफ तेजप्रताप हमेशा खड़े दिखे। 18 अगस्त, 2021 को राजद के प्रदेश युवा अध्यक्ष आकाश यादव को हटाने का मुद्दा हो या फिर 21 मार्च, 2022 को पार्टी के कार्यालय सचिव चंद्रेश्वर प्रसाद को हटाने का मुद्दा- तेजप्रताप ने उनके निर्णयों की खुली चुनौती दी। तेजप्रताप ने उन्हें हिटलर तक कह डाला। जगदानंद सिंह ने जब कार्यभार संभाला था तो बिहार में पहली बार राजद को लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली। वह ऐसा दौर था जब पार्टी की हालात पूरी तरह गड़बड़ा गई थी। स्वर्ण आरक्षण बिल का राजद द्वारा विरोध करने पर पार्टी की काफी बदनामी हो रही थी। ऐसे समय में प्रदेश अध्यक्ष की कमान जगदानंद सिंह को सौंप कर यह संदेश दिया गया कि राजद अगड़ी जाति के खिलाफ नहीं है। लालू प्रसाद के पीछे हमेशा खड़े रहने वाले जगदानंद सिंह इस बार फिर प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी संभालेंगे।
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