21 अगस्त को लातेहार जिले के महुआडांड़ अनुमंडल के कई गांवों के बाहर रातों-रात बोर्ड (चूंकि इन दिनों पत्थर की कटाई नहीं हो रही है, इसलिए बोर्ड लगाए जा रहे हैं) लगाए गए। उनमें लिखा गया है, ‘‘संविधान के अनुच्छेद 19(5) के अनुसार यह क्षेत्र पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र है।
एक बार फिर से झारखंड में पत्थरगड़ी (स्थानीय लोग इसे पत्थलगड़ी कहते हैं) को लेकर माहौल गर्म है। इस बार पत्थरगड़ी लातेहार जिले के महुआडांड़ में हुई। पहले ऐसी घटनाएं खूंटी जिले में अधिक होती थीं। अब ये लोग लातेहार जिले को अशांत करने में लग गए हैं। उल्लेखनीय है कि 21 अगस्त को लातेहार जिले के महुआडांड़ अनुमंडल के कई गांवों के बाहर रातों-रात बोर्ड (चूंकि इन दिनों पत्थर की कटाई नहीं हो रही है, इसलिए बोर्ड लगाए जा रहे हैं) लगाए गए। उनमें लिखा गया है, ‘‘संविधान के अनुच्छेद 19(5) के अनुसार यह क्षेत्र पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र है। इसमें कोई भी बाहरी व्यक्ति स्वतंत्र रूप से न तो घूम सकता है, न कारोबार कर सकता है, न ही बस सकता है और न ही ग्राम सभा की अनुमति के बिना प्रवेश कर सकता है।’’
दरअसल, पत्थरगड़ी जनजातीय समाज की एक प्राचीन परंपरा है, जिसमें किसी की मृत्यु होने के बाद श्मशान में उसके नाम से एक पत्थर गाड़ा जाता है और उस पर उस व्यक्ति एवं उसके वंश की जानकारी अंकित की जाती है। यह परंपरा पूरे विधि-विधान से सगे-संबंधियों के साथ निभाई जाती है। अब इसी परंपरा की आड़ में चर्च से जुड़े लोग भोले-भाले जनजातियों को भड़काते हैं। ये लोग जनजातियों से कहते हैं, कि संविधान में तुम लोगों के लिए अनुसूचित क्षेत्र की व्यवस्था है और तुम लोग उसके जरिए किसी भी बाहरी व्यक्ति को अपने गांव या क्षेत्र में प्रवेश करने से रोक सकते हो, यहां तक कि प्रशासनिक अधिकारियों को भी।
इस कारण जनजातीय लोग अपने गांवों के बाहर एक पत्थर गाड़ते हैं और उस पर बाहरी लोगों के लिए प्रवेश वर्जित करने संबंधी बातें लिखी रहती हैं। सामाजिक कार्यकर्ता प्रिया मुंडा ने बताया, ‘‘इस तरह का काम वे जनजातीय लोग करते हैं, जो ईसाई बन चुके हैं। वास्तव में पत्थरगड़ी करने के पीछे उद्देश्य होता है चर्च की गतिविधियों को छिपाना।’’ उन्होंने यह भी बताया, ‘‘महुआडांड़ और उसके आसपास के गांवों में चर्च की तूती बोलती है। ईसाई मिशनरी से जुड़े तत्व लोभ-लालच से लोगों को ईसाई बनाते हैं और जो इनका विरोध करता है, उसका सामाजिक बहिष्कार करवाते हैं। महुआडांड़ में भी यही हो रहा है।’’
उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले महुआडांड़ में एक सभा हुई थी। इसमें कई गांवोें के लोगों के साथ ही महुआडांड़ के बाहर के कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। सभी ने एक मत से चर्च की हिंदू-विरोधी गतिविधियों का विरोध किया और कहा कि चर्च के प्रति लोगों को जगाने के लिए अभियान चलाया जाएगा। इसके कुछ दिन बाद ही कई गांवों में पत्थरगड़ी हुई।
जब इसकी जानकारी अन्य ग्रामीणों को हुई तो वे लोग विरोध में उतर गए। इसके बाद प्रशासन ने उन पत्थरों को हटवा दिया। इससे गुस्साए चर्च से जुड़े लोगों ने पुलिस प्रशासन एवं अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के आवासों पर ताला जड़ दिया और दबाव डालने लगे कि वे बोर्ड फिर से लगाएं। ताला एक दिन तक लगा रहा और ये पदाधिकारी पिछले दरवाजे से अपने आवास में पहुंचे। इसके बावजूद न तो ताला लगाने वालों के विरुद्ध कोई कार्रवाई हुई और न ही पत्थरगड़ी करने वालों के विरुद्ध।
स्थानीय प्रशासन की इस उदासीनता से हिंदू समाज के लोग गुस्से में आ गए। इसके बाद महुआडांड़ में कई पंचायतों के प्रतिनिधियों की बैठक हुई। पंचायत ने स्पष्ट कहा कि पत्थरगड़ी करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई होनी ही चाहिए। कार्रवाई के डर से ऐसे तत्वों ने फिलहाल उस क्षेत्र को छोड़ दिया है।
हिंदुओं का बहिष्कार महुआडांड़ अनुमंडल में 106 गांव हैं। इन गांवों में लोहार, मुंडा, नागेशिया जैसी जनजातियां रहती हैं। इनकी गरीबी और निरक्षरता का चर्च ने लाभ उठाया और हर गांव में लगभग 50 प्रतिशत लोगों को ईसाई बना दिया गया है। इनसे महुआडांड़ कस्बा भी नहीं बचा है। यहां के भी अधिकतर लोगों को ईसाई बनाया जा चुका है।
कुछ वर्ष पहले तक इस कस्बे में हिंदू बहुमत में थे। कन्वर्जन के कारण अब यहां ईसाई बहुमत में हैं। इसके बाद हिंदू और फिर मुसलमानों की संख्या है। हिंदुओं के कन्वर्जन से कई संगठनों के कार्यकर्ता परेशान हैं। इसलिए ये लोग जब-तब हिंदुओं को जागरूक करने के लिए कुछ कार्यक्रम करते हैं। चर्च के लोगों ने ऐसे कार्यकर्ताओं की दुकानों का बहिष्कार कर रखा है। महुआडांड़ के अनेक हिंदुओं ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि हिंदुओं का बहिष्कार करने के लिए स्थानीय सेंट जोसेफ स्कूल के प्राचार्य दिलीप ने लोगों को उकसाया।
दिलीप एक चर्च में पादरी है। कुछ समय पहले उसने रविवार की सभा में चर्च आने वाले लोगों से कहा, ‘‘महुआडांड़ के कुछ हिंदू कार्यकर्ता ईसाइयों के विरोध में काम करते हैं। इसलिए ‘हर्ष हार्डवेयर’, ‘संदीप हार्डवेयर’, ‘निखिल मोबाइल’, ‘आदर्श मोबाइल शॉप’ और ‘ममता फर्नीचर’ जैसी दुकानों से कोई भी ईसाई कुछ सामान न खरीदे।’’
आज तक उपरोक्त दुकानों से कोई ईसाई सामान नहीं खरीदता है। एक अन्य कार्यकर्ता ने बताया कि संदीप गुप्ता नामक एक हिंदू दुकानदार ने चर्च में जाकर वहां के प्रमुख लोगों से माफी मांगी तब उनकी दुकान से ईसाई सामान खरीद रहे हैं।
बता दें कि संदीपहिंदू समाज के लिए बराबर कुछ कार्यक्रम करते थे। इस कारण चर्च ने उनकी दुकान का बहिष्कार किया। कई साल तक उनकी दुकान से किसी ईसाई ने सामान नहीं खरीदा। इस कारण उनकी दुकान बंद होने की स्थिति में आ गई। इसके बाद उन्होंने चर्च से माफी मांग ली। एक अन्य कार्यकर्ता ने बताया कि महुआडांड़ में एक हिंदू की ‘सरिता बस’ के नाम से बस सेवा थी। उसका भी बहिष्कार किया गया और अब वह बस सेवा भी बंद हो गई। प्रिया मुंडा ने यह भी बताया कि महुआडांड़ में कोई हिंदू युवक तिलक लगाकर घूमता है या फिर कंधे पर भगवा गमछा रखता है, तो उसे भी चर्च के लोग निशाने पर रखते हैं।
चर्च और नक्सली साथ
‘जनजाति सुरक्षा मंच’ के राष्ट्रीय सह संयोजक डॉ. राजकिशोर हांसदा के अनुसार, ‘‘पत्थरगड़ी के पीछे चर्च और वामपंथी तत्व हैं। ये तत्व भारत और भारतीयता के विरोध में लोगों को भड़काते हैं और इनके लिए पैसे का भी इंतजाम करते हैं। इनका उद्देश्य है जनजातियों और गैर-जनजातियों में दरार पैदा करना, ताकि ये लोग आपस में लड़ते रहें और भारत कमजोर होता रहे।’’
गिरिडीह के डॉ. सुनील कुमार भी कुछ ऐसा ही मानते हैं। वे कहते हैं, ‘‘ईसाई और नक्सली झारखंड को भी नागालैंड या मिजोरम की तरह ईसाई-बहुल बनाना चाहते हैं। इसके लिए एक वैश्विक योजना बनाई गई है। उसमें पत्थरगड़ी भी शामिल है।’’ दुर्भाग्य से झारखंड की वर्तमान सरकार ऐसे तत्चों के प्रति नरम रुख रखती है। यही नहीं, ऐसे लोगों के विरुद्ध दायर मुकदमों को भी वापस लेती है। इस कारण इनका दुस्साहस बढ़ता जा रहा है।
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