हिजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने हिजाब को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि सिखों की पगड़ी और कृपाण की तुलना हिजाब से नहीं की जा सकती है। ये दोनों सिख धर्म का अनिवार्य हिस्सा हैं और सिखों की पहचान से जुड़ी हैं।
जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि सिख धर्म का 500 वर्षों का इतिहास है। इतना ही नहीं, भारतीय संविधान के हिसाब से भी सिखों के लिए पांच ककार जरूरी हैं। शिक्षण संस्थानों में हिजाब की तुलना सिखों के धार्मिक चिह्नों से नहीं की जा सकती है।
शिक्षण संस्थानों में हिजाब को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई है। गुरुवार को याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील निजाम पाशा ने दलील दी। उन्होंने कहा कि सिखों के पांच ककार की तरह इस्लाम में भी हज, नमाज, रोजा, जकात और तौहीद पांच स्तंभ हैं। हिजाब भी इनका एक हिस्सा रहा है। उन्होंने फ्रांस और आस्ट्रिया का उदाहरण दिया। इस पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि हम भारतीय हैं और भारत में रहना चाहते हैं।
इससे पहले याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि हिजाब पर प्रतिबंध का आदेश उचित नहीं है। हिजाब
कानून, नैतिकता और स्वास्थ्य के खिलाफ नहीं है। हर धार्मिक परंपरा जरूरी नहीं कि किसी धर्म का हिस्सा हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सरकार उस पर प्रतिबंध लगा दे। उन्होंने कहा कि मैं जनेऊ पहनकर कोर्ट आता हूं। क्या यह किसी तरह से कोर्ट के अनुशासन का उल्लंघन है। इस पर कोर्ट ने कहा कि कोर्ट में पहनी जाने वाली ड्रेस की तुलना स्कूल ड्रेस से नहीं कर सकते। सड़क पर हिजाब पहनने से जरूरी नहीं कि किसी को दिक्कत हो, लेकिन सवाल स्कूल के अंदर हिजाब पहनने को लेकर है।
सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई अब 12 सितंबर को होगी। उस दिन सलमान खुर्शीद याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील पेश करेंगे।
गौरतलब है कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने आदेश में कहा था कि शैक्षणिक संस्थानों की ओर से निर्धारित ड्रेस कोड का पालन सभी के लिए अनिवार्य है। कुरान में मुस्लिम महिलाओं को हिजाब पहनना अनिवार्य नहीं है। यह इस्लाम में धार्मिक अनिवार्यता नहीं है।
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