स्त्री स्वस्थ तो परिवार स्वस्थ, परिवार स्वस्थ तो समाज स्वस्थ और समाज स्वस्थ तो राष्ट्र स्वस्थ। लेकिन महिलाएं खास तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही हैं। महिलाओं में खासतौर से एनीमिया यानी लौह की कमी एक बड़ी समस्या है। जरूरी है कि इस समस्या की गंभीरता को समझें और खान-पान को बेहतर करें
संभव है, आप थक जाती हों और आपको लगता हो कि घर-बाहर का काम करने के कारण ऐसा हो रहा है। हो सकता है कि आप चिड़चिड़ी हो गई हों, बराबर सिरदर्द की शिकायत हो जाती हो। अगर आपके साथ कुछ ऐसा है तो संभल जाएं, ये एनिमिया के लक्षण हो सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि खान-पान और दिनचर्या में सावधानियां बरतें ताकि इस तरह की समस्याओं को होने से ही रोका जा सके।
एनीमिया यानी खून की कमी। भारतीय महिलाओं में खून की कमी एक आम समस्या है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, महिलाओं में एनीमिया की समस्या अब भी चिंताजनक बनी हुई है। 15 से 50 वर्ष की लड़कियों और महिलाओं की आधी से अधिक आबादी में एनीमिया से पीड़ित है।
प्रकृति ने मातृ शक्ति को रचना करने की अद्भुत शक्ति दी है और इसी प्रक्रिया का अभिन्न अंग है- पीरियड या मासिक रक्त स्राव। इस दौरान शरीर से काफी खून निकल जाता है। इसके साथ खून में मौजूद आयरन (लौह) समेत अन्य खनिज भी निकल जाते हैं। शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में आयरन की अहम भूमिका होती है और लाल रक्त कोशिकाओं की हीमोग्लोबिन बनाने में। जब शरीर में हीमोग्लोबिन कम हो जाता है तो आॅक्सीजन की भी कमी होने लगती है। इसी स्थिति को एनीमिया कहते हैं। महिलाओं में हीमोग्लोबिन का सामान्य स्तर 12 से 15.5 ग्राम प्रति 100 मिलीलीटर होता है।
ये लक्षण हैं तो संभलिए
एनीमिया के कारण थकान, चक्कर आना, चेहरे और पैरों में सूजन, सांस फूलना, भूख नहीं लगना, त्वचा के पीला पड़ जाने जैसी समस्याएं पनपती हैं। इसलिए अगर आप भी इनमें से किसी भी समस्या को महसूस कर रही हैं तो इसे नजरअंदाज न करें। जांच कराएं और दवाएं लें। वैसे अपने सामान्य जीवन में भी कुछ बातों का ध्यान रखना आपके लिए फायदेमंद हो सकता है। महिलाएं अक्सर अपने खान-पान का ध्यान नहीं रखतीं और इसका परिणाम यह होता है कि धीरे-धीरे वे बीमार होती जाती हैं। इसलिए जरूरी है कि अपने आहार में उन चीजों को शामिल करें जो इस तरह की समस्या को होने से रोकती हों।
गांवों के ज्यादातर लोग शौच के लिए खेतों में चले जाते थे तो वहीं शहरों में भी बड़ी आबादी ऐसी थी जिनके पास शौचालय की सुविधा नहीं थी। लेकिन केंद्र सरकार ने 2014 से लेकर 2019 तक 10 करोड़ से अधिक नए शौचालय बनवाए। अब 90 प्रतिशत से अधिक घरों में शौचालय बन चुके हैं। इस दिशा में बहुत कुछ हुआ है, इसमें कोई संदेह नहीं, लेकिन सार्वजनिक शौचालयों के क्षेत्र में अब भी काफी कुछ किया जानी बाकी है।
चुकंदर आयरन का एक स्मृद्ध स्रोत होता है और इसके सेवन से शरीर में खून की कमी की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके अलावा पालक, पत्तागोभी, फूलगोफी, शलजम और शकरकंद का इस्तेमाल भी फायदेमंद होता है। मेवे में खजूर, किशमिश, बादाम के उपयोग से भी आयरन के कमी दूर की जा सकती है। फलों में खजूर, तरबूज, सेब, अंजीर, किशमिश, अनार आदि फायदेमंद होते हैं। यानी सस्ते से लेकर महंगे, हर तरीके के विकल्प मौजूद हैं जिनका चुनाव आप स्थिति के मुताबिक कर सकती हैं। हां, बेहतर हो कि आहार का चयन करते समय अपनी अन्य बीमारियों, अगर कोई हों, का भी ध्यान रखें या अपने डॉक्टर या किसी विशेषज्ञ से सलाह ले लें। क्योंकि अगर आपको शुगर, थॉयरॉयड या कोई और समस्या है तो कुछ चीजों का परहेज करना जरूरी हो जाता है।
कैल्शियम की कमी तो नहीं!
क्या आप अपने बालों को लेकर परेशान हैं? क्या आपको लगता है कि आपके बाल रूखे हो गए हैं? क्या आपके बाल समय से पहले सफेद होने लगे हैं और आपको इन्हें दुरुस्त करने की चिंता सताने लगी है? हो सकता है कि आपके शरीर में कैल्शियम (चूने) की कमी हो गई हो। कैल्शियम की कमी वह धीमी प्रक्रिया है जिसके लक्षण धीरे-धीरे सामने आते हैं और इसी चक्कर में बड़ी आबादी, खास तौर पर महिलाएं इसकी चपेट में आ जाती हैं।
कैल्शियम की कमी के कारण मांसपेशियों में ऐंठन, जोड़ों में दर्द, नाखूनों का नाजुक हो जाना और उनका आसानी से टूट जाना, घबराहट, मांस-पेशियों में हल्का-हल्का दर्द, नींद की कमी आदि समस्याएं होती हैं। हमारे शरीर के वजन का लगभग 14 प्रतिशत भार हड्डियों का होता है। यही हड्डियां शरीर को खड़ा रखती हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत में 20 प्रतिशत लड़कियों और 30 साल से अधिक की लगभग 70 प्रतिशत महिलाओं में कैल्शियम की समस्या पाई जाती है। एक धारणा यह भी है कि कैल्शियम बच्चों के लिए जरूरी है, क्योंकि तब हड्डियां बन रही होती हैं। सच यह है कि कैल्शियम की जरूरत उम्र भर होती है। शुरुआती जीवन में हड्डियों को बनाने और बाद में उन्हें मजबूत बनाए रखने के लिए कैल्शियम की जरूरत होती है।
जीवन के शुरुआती चरण में मासिक धर्म, मध्य चरण में गर्भावस्था और बाद में रजोनिवृत्ति के दौरान शरीर में कैल्शियम की खपत बढ़ जाती है। अगर इस कमी को पूरा नहीं किया गया तो इससे कई तरह की समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। शुरुआती चरण में कैल्शियम की कमी को पकड़ पाना मुश्किल होता है, क्योंकि तब कोई स्पष्ट लक्षण नहीं आता और इसके गंभीर नतीजे सामने नहीं आते। लेकिन शरीर यदि शिकायत करने लगे और उस पर ध्यान नहीं दिया तो आपके लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। कैल्शियम की कमी से गठिया, आॅस्टियोपीनिया, आॅस्टियोपोरोसिस, हाईपोकैल्शिमिया जैसे रोग हो सकते हैं और गंभीर स्थितियों में जानलेवा भी।
अगर आप अपने शरीर की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए खान-पान का ध्यान रखेंगी तो कैल्शियम की कमी नहीं होगी। इसके लिए दूध दही, पनीर, सोयाबीन मिल्क, मशरूम, हरी सब्जियां वगैरह खान-पान में शामिल करना फायदेमंद होता है। अगर मांसाहारी हैं तो मछली का सेवन करें। कैल्शियम शरीर में अवशोषित हो, इसके लिए शरीर में विटामिन-डी का स्तर ठीक रहना चाहिए। इसके लिए रोजाना 20-30 मिनट की धूप जरूरी है।
तीन चौथाई आबादी में विटामिन-डी की कमी
एक अनुमान के मुताबिक भारत की लगभग तीन चौथाई आबादी विटामिन-डी की कमी की समस्या से जूझ रही है और करीब 68 प्रतिशत महिलाओं में यह समस्या देखी जा रही है। सबसे पहले यह समझने की जरूरत है इसकी कमी क्यों हो रही है। हमने खुद को जिस तरह घर-दफ्तर की चारदीवारी के बीच कैद कर लिया है, जिस तरह छोटे शहरों और कस्बों तक में प्रदूषण बढ़ रहा है और समय की कमी के कारण प्रसंस्कृत खाने का चलन बढ़ रहा है, उससे विटामिन-डी की कमी हो रही है। यह समस्या कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिन महिलाओं में विटामिन डी की कमी होती है, उनमें दिल की बीमारियां, स्ट्रोक, मधुमेह और उच्च रक्तचाप का खतरा बढ़ जाता है। गर्भावस्था के दौरान यदि इसकी कमी हो जाए तो एक्लेप्सिया का भी खतरा हो जाता है। इनके अलावा भी उनमें तरह-तरह की समस्याएं हो सकती हैं, क्योंकि विटामिन-डी शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत रखता है। इसकी कमी कई तरह के बीमारियां और संक्रमण हो सकते हैं। वजन को नियंत्रित रखें, क्योंकि मोटापा बढ़ने से भी शरीर में विटामिन डी की कमी होने लगती है।
यूटीआई है खतरनाक
महिलाओं में यूटीआई (यूरिन ट्रैक्ट इन्फेक्शन) एक बड़ी समस्या है और लगभग तीन चौथाई महिलाएं इसकी शिकार हो जाती हैं। महिलाओं के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि एक तो, देश में सार्वजनिक शौचालयों की कमी है, जो हैं भी, उनमें से अधिकतर में साफ-सफाई नहीं है। यूरिन (पेशाब) को रोकना अपने आप में कई तरह की समस्याओं की जड़ है। यूरिन के साथ हानिकारक बैक्टीरिया वगैरह भी निकलते हैं और अगर यूरिन को ज्यादा देर रोका गया तो इन बैक्टीरिया को किलेबंदी करने का मौका मिल जाता है। यूटीआई का इलाज तो है, लेकिन यह समस्या ही न हो, इसके लिए स्वच्छता जरूरी है। पानी शरीर की गंदगी को निकालने के लिए फिल्टर की तरह काम करता है, इसलिए रोजाना सात-आठ गिलास पानी पीना फायदेमंद होता है। करौंदे के जूस से इस तरह के संक्रमण को टालने में मदद मिलती है। गांवों के ज्यादातर लोग शौच के लिए खेतों में चले जाते थे तो वहीं शहरों में भी बड़ी आबादी ऐसी थी जिनके पास शौचालय की सुविधा नहीं थी। लेकिन केंद्र सरकार ने 2014 से लेकर 2019 तक 10 करोड़ से अधिक नए शौचालय बनवाए। अब 90 प्रतिशत से अधिक घरों में शौचालय बन चुके हैं। इस दिशा में बहुत कुछ हुआ है, इसमें कोई संदेह नहीं, लेकिन सार्वजनिक शौचालयों के क्षेत्र में अब भी काफी कुछ किया जानी बाकी है।
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