इस बार राज्यसभा की 57 सीटें खाली हुई, जिनमें 24 भाजपा की थी। भाजपा 23 सीटें वापस हासिल करने में सफल रही, लेकिन कांग्रेस को चोट पहुंची है। हरियाणा में नेहरू-गांधी परिवार के करीबी अजय माकन हार गए, जबकि कर्नाटक में जद-एस के साथ कांग्रेस का गठबंधन खतरे में
हाल के राज्यसभा चुनावों के बाद राष्ट्रीय राजनीति में कोई नाटकीय बदलाव नहीं आने वाला। अलबत्ता, कांग्रेस और भाजपा के राजनीतिक-प्रबंधन को लेकर इसमें कुछ संकेत खोजे जा सकते हैं। इस चुनाव में जहां हरियाणा में कांग्रेस की आंतरिक कलह सामने आई, वहीं महाराष्ट्र के महाविकास अघाड़ी गठबंधन के भविष्य से जुड़े कुछ सवाल सामने दिखाई पड़ने लगे हैं। कर्नाटक में कांग्रेस और जनता दल-एस (जेडीएस) के बीच की दरार भरी नहीं है। हालांकि कांग्रेस का राजनीतिक-प्रबंधन राजस्थान में अपेक्षाकृत दुरुस्त साबित हुआ। राजस्थान में भाजपा में क्रॉस वोटिंग हुई। कांग्रेस प्रत्याशी को वोट देने वाली धौलपुर से अपनी विधायक शोभारानी कुशवाह को भाजपा ने पार्टी से निकाल दिया है।
राज्यसभा की सीटें किसे, कितनी मिलेंगी, आमतौर पर इसका अनुमान पहले से होता है। रहस्य कुछ उन सीटों को लेकर रहता है, जिनमें किसी एक दल के पास विधायकों का संख्याबल नहीं होता या दूसरे दलों के साथ समझौता नहीं हो पाता। एक-दो सीटों के पेचदार चुनाव के कारण राजनीतिक-नेटवर्किंग की परीक्षा होती है। ऐसे में क्रॉसवोटिंग और भितरघात के प्रसंगों का इतिहास भी है।
इस बार राज्यसभा की 57 सीटें खाली हुई। 10 जून को 57 में से 16 पर चुनाव की नौबत आई, क्योंकि 3 जून को नाम वापसी के बाद शेष 41 सीटों पर उम्मीदवार निर्विरोध चुन लिए गए थे। जिन 16 सीटों पर चुनाव हुआ, उनमें महाराष्ट्र में 6, कर्नाटक में 4, हरियाणा में 2 और राजस्थान में 4 सीटें थीं। इन 16 में से 11 सीटें पहले भाजपा के पास थीं। विधानसभाओं के संख्याबल को देखते हुए भाजपा को साफ तौर पर 6 सीटें मिल सकती थीं। यानी पार्टी के सामने 5 सीटें कम होने का खतरा था। अपनी स्थिति बेहतर बनाने के लिए भाजपा ने चारों राज्यों में अपनी सुनिश्चित सीटों के साथ एक-एक अतिरिक्त सीट पर प्रत्याशी खड़े किए। इस तरह, भाजपा 4 में से 3 अतिरिक्त सीटें जीतने में सफल रही।
महाराष्ट्र : यहां उद्धव सरकार के समर्थक विधायकों में भाजपा सेंध लगाने में सफल रही। भाजपा ने महाविकास अघाड़ी से एक सीट छीनकर फौरी राजनीतिक शिकस्त ही नहीं दी है, बल्कि आने वाले समय का संकेत भी किया है। भाजपा आसानी से दो सदस्यों को राज्यसभा में भेज सकती थी। शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस के पास एक-एक सदस्य को जिताने लायक संख्याबल था। महाविकास अघाड़ी और भाजपा के पास कुछ अतिरिक्त वोट थे, जिनकी वजह से छठी सीट के लिए मुकाबला रोचक हो गया था। भाजपा के तीनों उम्मीदवारों, पीयूष गोयल, अनिल बोंडे और धनंजय महादिक ने जीत हासिल की। वहीं शिवसेना से संजय राउत, राकांपा से प्रफुल्ल पटेल और कांग्रेस से इमरान प्रतापगढ़ी जीते। छठी सीट के लिए शिवसेना के संजय पवार और भाजपा के धनंजय महादिक के बीच कांटे के मुकाबले में भाजपा ने 17 निर्दलीय या छोटे दलों का समर्थन जुटा लिया और उद्धव ठाकरे को चोट पहुंचाई। हालांकि यह लड़ाई केवल एक सीट के लिए हुई, पर इसके दूरगामी निहितार्थ हैं।
राजस्थान : राजस्थान में कांग्रेस ने वोटों का बेहतर इस्तेमाल कर प्रमोद तिवारी, रणदीप सुरजेवाला और मुकुल वासनिक को राज्यसभा में पहुंचा दिया, जबकि भाजपा के एकमात्र उम्मीदवार घनश्याम तिवारी को सफलता मिली। भाजपा समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी सुभाष चंद्रा चुनाव हार गए। दो सीटों पर कांग्रेस और एक सीट पर भाजपा की जीत तय थी। 4 सीटों पर चुनाव के लिए 5 उम्मीदवार मैदान में थे। कांग्रेस की एक सीट फंस सकती थी। सुभाष चंद्रा को जीतने के लिए बाहरी वोटों की जरूरत थी, जो नहीं मिल सके। भाजपा की एक विधायक ने कांग्रेस प्रत्याशी को वोट दे दिया।
कर्नाटक : कर्नाटक में संख्याबल के आधार पर चार में से तीन सीट भाजपा और एक कांग्रेस को मिलनी थी। लेकिन राज्य के तीन प्रमुख दलों ने 6 उम्मीदवार उतार दिए। भाजपा की निर्मला सीतारमण और कन्नड़ अभिनेता जागेश की जीत तय थी। पार्टी के पास 32 वोट अतिरिक्त थे, जो उसने तीसरे उम्मीदवार लहर सिंह सिरोया के लिए छोड़े थे। कांग्रेस के जयराम रमेश की जीत पर भी संदेह नहीं था, लेकिन पार्टी ने एक और प्रत्याशी मंसूर अहमद खान को भी उतार दिया। उधर, जनता दल सेक्युलर ने कृपेंद्र रेड्डी को उतारा। जद-एस को 13 वोटों की जरूरत थी, लेकिन कांग्रेस ने खेल बिगाड़ दिया। यानी जद-एस और कांग्रेस में सुलह नहीं होने का लाभ भाजपा को मिला।
इस बार जिन 57 सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हुआ, उनमें 24 भाजपा के हैं। निर्विरोध चुने गए सदस्यों में 14 भाजपा के हैं। सीधे चुनाव में 16 में से 6 सीटों पर भाजपा जीती, जबकि तीन सीटों पर उसके समर्थन वाले निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की। इस तरह, उच्च सदन में भाजपा सांसदों की संख्या 94 हो गई है।
हरियाणा : महाराष्ट्र की तरह हरियाणा में भी भाजपा और कांग्रेस के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई थी, जिसमें कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। गांधी परिवार के करीबी अजय माकन चुनाव हार गए, जबकि उन्हें जिताने लायक वोट पार्टी के पास थे। लेकिन माकन की जगह भाजपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार कार्तिकेय शर्मा जीत गए। भाजपा के कृष्ण लाल पवार की जीत तय थी, जबकि कांग्रेस को माकन के जीतने का भरोसा था। माकन की हार के साथ प्रदेश कांग्रेस के भीतर के झगड़े भी सामने आए हैं। कुमारी शैलजा की जगह अपने विश्वस्त उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष बनवाने वाले भूपिंदर सिंह हुड्डा पर आरोप लग रहे हैं। कहा जा रहा है कि पार्टी के पास जीत के लिए वोट पूरे थे, फिर भी माकन की हार चिंता की बात है। बागी तेवर दिखाने वाले कुलदीप बिश्नोई को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है, लेकिन इससे समस्याएं कम होने के बजाय बढ़ ही रही हैं।
राज्यसभा का महत्व
इस बार जिन 57 सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हुआ, उनमें 24 भाजपा के हैं। निर्विरोध चुने गए सदस्यों में 14 भाजपा के हैं। सीधे चुनाव में 16 में से 6 सीटों पर भाजपा जीती, जबकि तीन सीटों पर उसके समर्थन वाले निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की। इस तरह, उच्च सदन में भाजपा सांसदों की संख्या 94 हो गई है।
इस चुनाव में सबसे बड़ी सफलता आम आदमी पार्टी को मिली है। राज्यसभा में इसके सदस्यों की संख्या 3 से बढ़कर 10 हो गई है। राज्यसभा में कुल 245 सीटें हैं। इनमें 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं और 233 सदस्य राज्यों और केंद्रशासित क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं। मनोनीत सदस्य चाहे तो 6 माह के भीतर किसी राजनीतिक दल में शामिल हो सकता है। बीते तीन-चार दशकों में ऐसा कभी नहीं हुआ, जब राज्यसभा में किसी एक दल के पास बहुमत रहा हो। यानी 123 या उससे ज्यादा सदस्य रहे हों।
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद लोकसभा में तो भाजपा को पूर्ण बहुमत प्राप्त था, पर राज्यसभा में वह अल्पमत में थी। इस कारण उच्च सदन में अपने फैसले पास कराने में सरकार को खासी दिक्कतें आई। भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव कराने में सत्तारूढ़ भाजपा को सफलता नहीं मिली। इसी तरह, तीन कृषि सुधार कानूनों, जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक और नागरिकता कानून संशोधन विधेयकों को पास कराने के लिए भी पार्टी को अन्नाद्रमुक, बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस की मदद लेनी पड़ी थी।
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