जनजाति समाज से आने वालीं द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने अनेक राजनीतिक दलों के सामने दुविधा की स्थिति पैदा कर दी है। इनमें से एक प्रमुख राजनीतिक दल है झारखंड मुक्ति मोर्चा यानी झामुमो। इन दिनोें इसके कार्यकारी अध्यक्ष और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भाजपा की इस चाल से सबसे अधिक परेशान हैं। बता दें कि हेमंत खुद जनजाति हैं और उनके अधिकतर मतदाता भी जनजाति हैं। अब यदि वे द्रौपदी मुर्मू का समर्थन नहीं करते हैं, तो भाजपा यह कह सकती है कि हेमंत सोरेन दिखावे के लिए जनजाति की बात करते हैं। उन्होंने देश के इतिहास में पहली बार राष्ट्रपति बनने जा रही एक जनजाति समाज की महिला का समर्थन नहीं किया। इसके साथ ही उनके वे मतदाता भी छिटक सकते हैं, जो द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनते देखना चाहते हैं।
वहीं दूसरी ओर यदि हेमंत सोरेन द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करते हैं, तो उनकी सरकार खतरे में जा सकती है। उल्लेखनीय है कि इस समय झारखंड में गठबंधन सरकार है। इसमें झामुमो, कांग्रेस और राजद शामिल है। कांग्रेस और राजद के नेता कभी नहीं चाहेंगे कि हेमंत भाजपा के उम्मीदवार को समर्थन दें।
इन सब चुनौतियों से निपटने के लिए हेमंत ने 27 जून को नई दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भेंट की है। इसके बाद भी उन्होंने अभी तक पत्ता नहीं खोला है कि वे द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करेंगे या फिर विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का।
रांची के वरिष्ठ पत्रकार राकेश सिंह का मानना है कि शायद हेमंत कभी भी खुलकर नहीं बोलेंगे कि उनकी पार्टी द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करेगी, क्योंकि इस समय झामुमो की राजनीतिक स्थिति अपने सहयोगियों से दुराव की नहीं है।
उल्लेखनीय है कि अभी 26 जून को मांडर विधानसभा के उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की शानदार जीत हुई है। यानी आज भी कांग्रेस कई स्थानों पर मजबूत स्थिति में है। इसका श्रेय वहां के स्थानीय नेताओं को जाता है, न कि केंद्रीय नेतृत्व को। झामुमो को अहसास है कि यदि कांग्रेस उसके साथ नहीं रहेगी तो भाजपा को हराना आसान नहीं है।
इसलिए हेमंत सोरेन अपनी दुविधा दूर नहीं कर पा रहे हैं और शायद यह कभी दूर भी नहीं होगी।
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