योग व्यक्ति को अनुशासित, विवेकी और कर्मठ बनाता है। इसका मूल उद्देश्य समाज को समरस बनाकर समाज और राष्ट्र की समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करना है। योग पंथ या संप्रदाय केंद्रित नहीं है, बल्कि यह समस्त प्राणियों और प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व की सीख देता है
प्राचीन काल में मनुष्य के जीवन को दिशा देने वाली आश्रम व्यवस्था में पहले पायदान पर था ब्रह्मचर्य आश्रम। इसमें युवाओं को वेदों और शस्त्र विद्या के साथ योग की शिक्षा भी दी जाती थी। इसका उद्देश्य अनुशासित, विवेकपूर्ण और कर्मठ व्यक्तित्व का निर्माण करना था, जो आगे चलकर परिवार, समाज, राष्ट्र, फिर प्रकृति और अंतत: संपूर्ण मानवता के लिए काम करे। यानी मनीषी समरस समाज बनाना चाहते थे, ताकि इसकी इकाई के तौर पर व्यक्ति मानवीय गुणों से परिपूर्ण होकर ‘स्व’ का विकास करने के साथ प्रकृति के प्रति भी संवेदनशील रहे।
योग और शिक्षा एक सहज-स्वाभाविक डोरी से जुड़े हैं। शिक्षा जहां मनुष्य में क्षमताओं, विचारों का विकास कर विवेक साधना सिखाती है, वहीं योग इस लक्ष्य प्राप्ति का साधन बनता है। महर्षि अरविंद ने कहा था, ‘संपूर्ण जीवन ही योग है, जिसके जरिए उत्तम चरित्र का निर्माण होने की क्षमता विकसित होती है।’ वेदों, उपनिषदों, स्मृतियों, पुराणों आदि में योग दर्शन के विस्तृत आयामों का वर्णन है। वैदिक काल में योग का महत्व शीर्ष पर था। रामायण और महाभारत आदि धर्मग्रंथों में योग के बारे में बताया गया है।
जैन और बौद्ध धर्म में भी योग की विभिन्न शाखाओं के बारे में बताया गया है, जो वेदों और उपनिषदों से प्रेरित हैं। 1920 के दशक में करीब 3300-1700 ईसा पूर्व की सिंधु-सरस्वती घाटी सभ्यता की खोज हुई। उत्खनन में मूर्तियां और मुहरें मिलीं। योग मुद्राओं वाले इन साक्ष्यों के मिलने से लोगों को पता लगा कि भारतीय योग परंपरा कितनी प्राचीन है। करीब 200 ईसा पूर्व महर्षि पतंजलि ने योग की बिखरी शाखाओं को व्यवस्थित कर ‘योगसूत्र’ लिखा। वे ‘चित्तवृत्तिनिवृते’ यानी मन के व्यवहार को अनुशासित करने की बात करते हैं।
बौद्ध धर्म में भी यम और नियम के पालन की बात कही गई है, जिसके जरिए समाधि अवस्था में चित्त एकाग्र होता है और प्रज्ञा यानी बुद्धि का प्रकाश फैलता है। स्पष्ट है कि योग भारत भूमि के ऐसे ज्ञान को प्रस्तुत करता है जिसे व्यक्ति की जीवनशैली के बुनियादी तत्व के तौर पर हमारी संस्कृति में पिरोया गया। यह जीवनशैली व्यक्ति से समाज और फिर राष्ट्र के सशक्त अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है।
इस बार अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मानवता को समर्पित है। इस बार ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी घोषणा की। उन्होंने कहा कि आठवें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस, 21 जून 2022, का विषय है ‘मानवता के लिए योग।’ आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में मनाए जा रहे अमृत महोत्सव के मद्देनजर देश के प्रमुख 75 स्थानों पर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस आयोजित होगा। खास बात यह है कि इस बार ‘गार्जियन रिंग’ नाम से एक अनोखा कार्यक्रम होगा। इसके तहत सूर्य की गतिविधियों के अनुसार यानी जैसे-जैसे धरती के अलग-अलग हिस्सों में सूर्योदय होता जाएगा, वैसे-वैसे वहां सूर्य की उदीयमान किरणों का स्वागत करते हुए योग शुरू किया जाएगा। अलग-अलग देशों में भारतीय उच्चायोग वहां के स्थानीय समय के मुताबिक सूर्योदय के समय योग कार्यक्रम आयोजित करेगा। प्रधानमंत्री के अनुसार एक देश के बाद दूसरे देश से कार्यक्रम शुरू होगा और पूरब से पश्चिम तक निरंतर यात्रा चलती रहेगी।
योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा था ‘योग: कर्मसु कौशलम्’ अर्थात् योग से ही कर्मों में कुशलता है, यानी कर्मयोग के अनुसार कर्म करने में कुशल व्यक्ति कर्म बंधनों से मुक्त हो जाता है। वे कार्य कौशल के विकास की वह राह बताते हैं जो सत्य और न्याय के लिए किए गए प्रयत्न को सफल बनाती है। यह कुशल मानव समुदाय को विकसित करने का उपदेश है, जो समाज व राष्ट्र की उन्नति का मूल आधार है। वे अष्टांग योग के उस सूत्र की नींव रखते हैं जो मन व इंद्रियों को वश में रखने का साधन है, जिसके अभ्यास से न्यायपरायण, विवेकसम्मत व अनुशासित सामाजिक स्वरूप का निर्माण होता है।
आरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते।
योगारुढस्य तस्यैव शम: कारणमुच्यते।।
यानी जिसने अभी योग आरंभ किया है, उसके लिए अष्टांग योग कर्म का साधन है।
योग विज्ञान सर्वोपरि
योग पंथ या संप्रदाय केंद्रित नहीं है, बल्कि यह समस्त प्राणियों और प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व की सीख देता है। इसमें वर्णित समभाव दर्शन विभिन्न संस्कृतियों के बीच कुटुंब की भावना का विकास करता है। विचारधाराओं के पारस्परिक आदान-प्रदान से ज्ञान का कोश समृद्ध होता है, जिससे पांथिक एकता के साथ एक उन्नत समाज की नींव पड़ती है। योग मनुष्य को मन और व्यवहार को साधने की तकनीक बताने वाला विशिष्ट ज्ञान है।
आधुनिक युग वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी के तौर पर उन्नत अवस्था में है, पर समाज? समाज संक्रमण काल से गुजर रहा है, जिसमें आचार-विचार, व्यवहार में विवेक और संयम की सीमाएं बिखर रही हैं। दिशाहीन समाज में मान्यताओं, मूल्यों व वर्जनाओं की परिभाषाएं धुंधली पड़ रही हैं। आचरण दूषित हो रहे हैं। भाग-दौड़ भरी जिंदगी में असंतोष और निराशा बढ़ रही है। इनसान ही नहीं, देश भी आपस में लड़ रहे हैं। ऐसे में मनुष्य और विश्व के अस्तित्व की रक्षा के लिए अत्यंत प्रभावशाली शस्त्र की जरूरत है, जिसमें ‘मारक’ नहीं, बल्कि ‘सृजनात्मक’ क्षमता हो।
आदि योगी भगवान शिव ने मनुष्य को मनसा, वाचा और कर्मणा की परम संभावनाओं को प्रशिक्षित करने का विज्ञान और तकनीक सौंपी। उनके इस विज्ञान को उनके सात शिष्यों ने एशिया, मध्य-पूर्व, उत्तरी अफ्रीका और दक्षिणी अमेरिका सहित दुनिया भर के देशों में प्रसारित किया। यानी आदि काल से ही इस विज्ञान का उद्देश्य वैश्विक था। इसे संपूर्ण मानवता और संपूर्ण जगत के लिए रचा गया था। समाज को पुन: उसके गरिमापूर्ण स्वरूप में स्थापित करने के लिए सामाजिक इकाई की भौतिक शक्ति के साथ आध्यात्मिक शक्ति के बीच सामंजस्य बनाना होगा, क्योंकि समाज मनुष्यों के मूल्य पोषित संबंधों की संरचना है, जो आचार, विचार व व्यवहार की दृष्टि से सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक आधारों पर परस्पर संबंधित हैं। योग एक ऐसी ऊर्जा है जो दुविधाओं, उलझनों, निराशा-हताशा, दौड़ती-भागती जिंदगी में पैदा हुई नकारात्मक शक्तियों के कारण बिखर रहे समाज के मानकों को दुरुस्त कर एक सबल, सुगठित राष्ट्र के निर्माण में अहम योगदान कर सकता है। साथ ही, विश्व शांति की स्थापना का प्रेरक बल भी बन सकता है जो वर्तमान परमाणु युग में शक्ति परीक्षण में उलझी दुनिया की सबसे बड़ी चिंता है। आज भारत योग विज्ञान रूपी अपने सॉफ्टपावर के जरिये द्वेष, प्रतिस्पर्धा और जय-पराजय, शक्ति परीक्षण आदि नकारात्मक ऊर्जा से घिरी युद्धरत दुनिया को बर्बादी से उबार सकता है।
दुनिया अपना रही योग
महर्षि अरविंद कहते हैं, ‘‘योग साधना का उद्देश्य केवल वैयक्तिक पूर्णता नहीं, वरन् विश्व उत्थान है।’’ योग की राह पर चलने से समृद्धि आएगी जो वास्तविक स्वराज्य का मार्ग प्रशस्त करती है, समाज व राष्ट्र की नींव को मजबूत व व्यवस्था को सुदृढ़ रखती है और विकास के नए दरवाजे खोलती है। उनका कहना था, ‘‘भारत विश्व के समक्ष योग का आदर्श रखने के लिए उठ रहा है। वह योग के द्वारा ही सच्ची स्वाधीनता, एकता और महानता प्राप्त करेगा और योग द्वारा ही उसका रक्षण करेगा।’’
यह भाव आज और भी प्रासंगिक है। युद्ध, आर्थिक क्षेत्रों की रस्साकशी, शक्ति प्रदर्शन में तबाह हो रहे विश्व में योग के यम और नियम के पालन से होने वाले लाभ का संदेश सार्थक और सृजनात्मक प्रभाव डाल सके, ऐसे कदम उठाने होंगे। कोरोना जैसी महामारी को झेल रही दुनिया में योग की महत्ता और व्यापक हो गई है। यह हमारे लिए गर्व की बात है।
शिव से लेकर श्रीकृष्ण, वशिष्ठ, पाराशर, पतंजलि और गौतम बुद्ध आदि द्वारा प्रसारित ज्ञान में मध्यकाल के दौरान सामाजिक आयाम जुड़ने लगे थे। इस काल के प्रमुख गुरुओं आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, गोरखनाथ, चौरंगीनाथ, समर्थ रामदास गुरु जैसी विभूतियों ने उस ज्ञान जोत को प्रज्ज्वलित रखा। मुगलकाल और ब्रिटिश शासन के समय इस स्वर्णिम परंपरा पर कुछ समय के लिए काले बादल छा गए थे, पर बाद के वर्षों में लाहिड़ी महाशय, परमहंस योगानंद, महर्षि अरविंद, स्वामी कुवलयानंद, आनंदमूर्ति, सद्गुरु, स्वामी रामदेव और श्री श्री रविशंकर आदि गुरुओं ने योग को पुन: जन-जन में प्रसारित करने का बीड़ा उठाया। लेकिन इसे विश्व मंच पर पूर्ण तेजस्विता के साथ स्थापित किया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने। उन्होंने 27 सितंबर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा के अपने पहले संबोधन में 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव आधिकारिक तौर पर रखा।
11 दिसंबर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र की 69वीं महासभा में भारत के प्रस्ताव पर दुनिया के कई देशों समर्थन के बाद 21 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली, जिसमें चीन और अमेरिका भी शामिल थे। इस तरह, पहली बार 21 जून, 2015 को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ पूरे उत्साह के साथ मनाया गया। 21 जून को सूर्य उत्तरी गोलार्ध से चलकर भारत के बीच से गुजरने वाली कर्क रेखा में आ जाता है। लिहाजा, इस दिन सूर्य की किरणें धरती पर ज्यादा समय तक रहती हैं।
इस कारण दिन सबसे लंबा होता है। इसे दीर्घायु से जोड़ा गया है। इसलिए योग दिवस के तौर पर 21 जून तय किया गया, क्योंकि योग भी मनुष्य को दीर्घायु प्रदान करता है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि योग सदियों पुराने भारतीय दर्शन को अभिव्यक्त करता है और मनुष्य व प्रकृति के बीच समग्रता लाता है। हमारी वैश्विक आकांक्षाओं की पूर्ति विश्व को अपने साथ लेकर चलने से पूरी हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा विश्व को अपने साथ लेकर चलने की भारत सरकार की प्रतिबद्धता की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
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