वर्ष 2007 में सी.आर.पी.एफ के आयुध भण्डार तक पहुंचने की योजना बना कर आये जिन आतंकवादियों को समाजवादी पार्टी की सरकार रिहा कराना चाहती थी. उन आतंकवादियों के खिलाफ जिस मुकदमे को वापस लेने की तैयारी चल रही थी. उसी मुक़दमे की सुनवाई पूरी होने पर अदालत ने इन आतंकियों को फांसी की सजा सुनाई है. उस आतंकी हमले में सी.आर.पी.एफ के सात जवान शहीद हुए थे
ईसाई कलेंडर के मुताबिक़ 31 दिसंबर की रात साल की आखिरी रात होती है. सो, काफी संख्या में लोग पुराने साल को विदा कर के नए वर्ष के स्वागत में जुट जाते हैं. रामपुर जनपद में 31 दिसंबर वर्ष 2007 की रात भी कुछ ऐसी ही थी. जब ए.के – 47 जैसे स्व-चालित हथियारों से गोलियां चलने लगी तब लोगों ने सोचा कि नए वर्ष के जश्न में कुछ लोग पटाखे दाग रहे हैं. मगर कुछ ही देर में वहां मालूम हुआ कि पाकिस्तान से आये आतंकवादियों ने सी.आर.पी.एफ के ग्रुप सेंटर पर हमला कर दिया था. इस हमले में सी.आर.पी.एफ के हवलदार रामजी शरण मिश्र , हवलदार ऋषिकेश राय, हवलदार अफज़ल अहमद , सिपाही मनवीर सिंह , सिपाही विकास कुमार , सिपाही आनंद कुमाद एवं सिपाही देवेन्द्र कुमार शहीद हो गए थे.
इस आतंकी घटना को अंजाम देने वाले चार आतंकियों — मो शरीफ, सबा उद्दीन, इमरान एवं फारुख– को न्यायालय ने वर्ष 2019 में फांसी की सजा सुनाई थी. जंग बहादुर खान को आजीवन कारावास एवं फहीम अंसारी को दस वर्ष की सजा सुनाई गई थी. इमरान और फारूख ये दोनों आतंकी पाकिस्तान के निवासी हैं. फहीम अंसारी मुंबई का निवासी है और सबाउद्दीन बिहार का रहने वाला है. ये दोनों मुंबई के 26/11 के हमले में भी आरोपी थे.
इस आतंकी हमले में इमरान शहजाद , मो. फारूख , मो. शरीफ , सबा उद्दीन , मो. कौसर , गुलाब खान एवं जंग बहादुर खान को ए.टी.एस ने गिरफ्तार किया था. इन आतंकियों की योजना सी.आर. पी.एफ के आयुध भंडार तक पहुँचने की थी मगर सी.आर. पी.एफ के जवानों ने पूरी मुस्तैदी से मोर्चा संभाला जिसकी वजह से इन आतंकियों को पीछे हटना पड़ा था.
बताया जाता है घटना के कुछ दिन पहले अलर्ट भी जारी हुआ था मगर पुलिस ने उस तरफ ध्यान नहीं दिया था. वर्ष 2012 में जब सपा की सरकार बनी तो इन आतंकवादियों के खिलाफ चल रहे इस मुकदमे को वापस लेने का प्रयास भी किया गया. शासन की तरफ से जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर पूछा गया था कि क्या इस मुकदमे को वापस लिया जा सकता है. शासन के इस पत्र की खबरें जब अखबारों में छपी. तब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पर सख्त टिप्पणी की थी. इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मुकदमे को वापस लेने का इरादा छोड़ दिया था. 12 साल तक सुनवाई चली. ढाई सौ तारीखें पड़ी. 54 गवाहों में से 34 गवाहों की गवाही हुई और तब इन आतंकियों को सजा सुनाई गई.
टिप्पणियाँ