रामगढ़ जिले के बेयांग गांव में रहने वाले केदार प्रसाद महतो ने कुछ उपकरणों को जोड़कर एक ऐसी मशीन बनाई है, जो सामान्य रूप से बह रही जलधारा से बिजली पैदा करती है। उनके संयंत्र से उत्पादित बिजली से गांव के रास्ते हो रहे हैं रौशन
नदी में लगा बिजली संयंत्र
जज्बा, जोश और जुनून हो तो कठिन से कठिन लक्ष्य को भी हासिल किया जा सकता है। झारखंड के रामगढ़ जिले के बेयांग गांव के निवासी केदार प्रसाद महतो इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। 12वीं तक पढ़े केदार प्रसाद महतो ने पारंपरिक ज्ञान से असंभव दिखने वाला काम कर न केवल दूसरों को रास्ता दिखाया है, बल्कि यह साबित भी किया है कि सपने को साकार करने के लिए डिग्री और भारी भरकम रकम जरूरी नहीं है। दरअसल, केदार प्रसाद देसी तकनीक से बिजली पैदा कर रहे हैं। अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने जीवन के बहुमूल्य 8 साल खपा दिए। यह उनकी मेहनत और लगन का परिणाम है कि आज गांव को मुफ्त बिजली मिल रही है।
देसी टरबाइन से गांव रौशन
बचपन से ही केदार की रुचि तकनीकी क्षेत्र में थी। वे शुरू से ही कुछ नया करना चाहते थे, इसलिए लगातार उपकरणों को जोड़ने-तोड़ने का उनका सिलसिला चलता रहा। इसी क्रम में एक दिन उन्होंने टरबाइन बना दिया, जो सामान्य रूप से बहती जलधारा से बिजली पैदा कर सकती है। इसे उन्होंने गांव के पास बहने वाली नदी में लगाया। इसके लिए बांस और र्इंट को जोड़कर बाकायदा एक मचान बनाया। केदार बताते हैं, ‘‘पूरा झारखंड बरसों से बिजली की समस्या से जूझ रहा है। इसी को देखते हुए खुद ही बिजली बनाने की इच्छा हुई। इसलिए पढ़ाई के साथ-साथ छोटे-मोटे उपकरणों को जोड़कर एक मशीन तैयार की। 2021 में उत्साहजनक सफलता मिली। जलधारा से टरबाइन चालू हो गया और बिजली पैदा होने लगी।’’
आज उनके बनाए टरबाइन से 5 किलोवाट बिजली पैदा हो रही है, जो गांव के मंदिर और सड़कों-गलियों को रौशन कर रही है। केदार ने आगे बताया कि नदी में मचान बनाने से लेकर और विभिन्न तरह के उपकरण खरीदने पर लगभग 3 लाख रुपये का खर्च आया। लेकिन यह रकम उन्होंने अपनी जेब और कुछ दोस्तों की मदद से इकट्ठी की। बता दें कि 32 वर्षीय केदार बिजली का ही काम करते हैं और इसी से उनके परिवार का गुजर-बसर होता है। इसमें से भी वे कुछ पैसे बचा लेते हैं, जिसे बिजली संयंत्र के रख-रखाव पर खर्च करते हैं। वे कहते हैं कि पैसे के अभाव और कुछ अन्य तकनीकी कारणों से अधिक बिजली पैदा नहीं कर पा रहे हैं। यदि सरकार से मदद मिल जाए तो वे आसपास के सभी गांवों के लिए बहुत ही सस्ती बिजली उत्पादन कर सकते हैं।
परिवार और गांव को गर्व
केदार के पिता जानकी महतो और माता फुलेश्वरी देवी को अपने बेटे की सफलता पर गर्व है। उनका कहना है कि यदि सरकार इन देसी तकनीक को प्रोत्साहन और सहयोग दे, तो बिजली उत्पादन के लिए बड़े-बड़े जलाशय बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। केदार की इस उपलब्धि से गांव वाले भी चकित हैं। वे उन्हें गांव का ‘नायक’ मानते हैं। हालांकि केदार के लिए बिजली संयंत्र बनाने से लेकर इससे बिजली पैदा करने तक का सफर मुश्किलों से भरा रहा। वे कहते हैं, ‘‘शुरू में जब मैं लोगों से कहता था कि बिजली पैदा करना चाहता हूं तो वे हंसते थे। कहते थे, पागल हो।
सरकार तो पर्याप्त बिजली उत्पादन कर ही नहीं पा रही है और तुम बिजली पैदा करने की बात कर रहे हो। क्या तुम सरकार से बड़े हो गए हो? इसके बाद मैंने लोगों से इस विषय में बात करना ही छोड़ दिया और अपने काम में लगा रहा। हां, कुछ खास दोस्तों से बात करता था और उनसे परेशानियां साझा करता था। जरूरत पड़ने पर वे उपकरण खरीदने में मेरी मदद भी करते थे। उनके सहयोग से ही मुझे सफलता मिली।’’ केदार को गांव के ज्ञानी महतो, गंगेश महतो, सिकंदर महतो, जगन्नाथ महतो, नवीन महतो, ऋषिकेश महतो और कमलेश महतो से आर्थिक और अन्य तरह की मदद मिलती रही है। इसलिए केदार बात-बात में इन सभी लोगों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं।
5 किलोवाट बिजली उत्पादन
केदार को पहली सफलता 2020 में मिली, जब उन्होंने 3 किलोवाट बिजली पैदा करना शुरू किया। इसके बाद वे 2021 में 5 किलोवाट बिजली पैदा करने लगे, लेकिन इसी वर्ष नदी में बाढ़ आई और उनका टरबाइन व उपकरण बह गए। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने हौसला बुलंद रखा और एक बार फिर उपकरणों की मरम्मत कर बिजली पैदा करने लगे।
केदार अपने गांव के साथ-साथ आसपास के गांवों को भी बिजली को लेकर आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि अगर उनकी इस परियोजना को सरकार सहयोग दे तो वे 2 मेगावाट बिजली आसानी से पैदा कर सकते हैं। इतनी बिजली से कई गांव रौशन हो सकते हैं।
केदार द्वारा बनाए गए संयंत्र की विशेषता यह है कि इसे कहीं भी लगाया जा सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे बिजली पैदा करने पर कोई अतिरिक्त लागत नहीं आती, जबकि पानी से बिजली पैदा करने के लिए कोयला और बॉयलर की जरूरत पड़ती है। लेकिन केदार द्वारा निर्मित उपकरण को चलाने के लिए बहती जलधारा ही काफी है। गांव के मुखिया सूरजनाथ भी केदार की प्रशंसा करते नहीं अघाते। वे कहते हैं कि केदार प्रसाद के कारण गांव की अलग पहचान बन रही है। अब रांची से लेकर रामगढ़ तक हमारे गांव की चर्चा होती है। उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले गांव में सरस्वती पूजा हो रही थी। अचानक बिजली चली गई तो हर तरफ अंधेरा छा गया। केदार को पता चला तो उसने तुरंत अपने बिजली संयंत्र से बिजली दे दी। इस कारण पूजा में कोई व्यवधान नहीं पहुंचा।
केदार अपने गांव के साथ-साथ आसपास के गांवों को भी बिजली को लेकर आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं। लेकिन उनके पास संसाधन नहीं है। वे कहते हैं कि यदि उन्हें आर्थिक मदद मिली तो वे 2 किलोवाट बिजली तो आसानी से पैदा कर सकते हैं। इतनी बिजली से तो कई गांव रौशन हो सकते हैं।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
टिप्पणियाँ