|
नरेन्द्र कोहलीसेवा का यशसंध्या कुछ ढली और अंधेरा होने लगा तो एक-एक कर सब लोग अपने-अपने घर चले गए। “काली!” नरेन्द्र! ने पुकारा, “अब तुम भी घर जाओ। हां, रास्ते में गोलाप मां को उनके घर छोड़ते जाओ।””और तुम?” काली ने पूछा, “तुम घर नहीं जाओगे?” नरेन्द्र हंसा, “मैं भी चला गया तो यहां ठाकुर के पास कौन रहेगा-लाटू?”काली मौन खड़ा रह गया: नरेन्द्र ठीक ही कह रहा था। ठाकुर को सारी रात लाटू के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।”पर तुम तो प्रात: से ही यहां हो, अब सारी रात कैसे जागोगे?” काली ने पूछा। ठाकुर पुकारेंगे तो जाग जाऊंगा, नहीं तो ठाठ से खर्राटे लूंगा। नींद नहीं आई तो कुछ तो कुछ पढ़ लूंगा। परीक्षा की तैयारी हो जाएगी।”काली जानता था कि वास्तविकता यह नहीं है। वह बलराम बसु के घर एक सप्ताह तक ठाकुर के पास रहा था। ठाकुर तो वैसे ही बहुत कम सोते थे और आजकल तो स्वस्थ भी नहीं थे। प्रत्येक घंटे-डेढ़ घंटे के बाद उन्हें किसी-न-किसी वस्तु की आवश्यकता होती ही थी। कोई यह सोचे कि वह रातभर ठाकुर की सेवा भी करेगा और सो भी लेगा तो यह संभव नहीं था।”सारी रात सो नहीं पाओगे।” काली बोला, “और थका हुआ उनींदा आदमी पढ़ाई भी क्या करेगा?””सेवाव्रत लेकर नींद की बात नहीं सोचनी चाहिए।” इस बार नरेन्द्र गंभीरता से बोला, “सेवा तो उपासना है। उपासना के भाव से ही सारी रात जागना चाहिए।”काली थोड़ी देर मन-ही-मन विचार करता रहा और सहसा उसकी मुद्रा बदल गई, “गोलाप मां को उनके घर छोड़कर मैं भी यहीं आ रहा हूं। मैं तुम्हारे साथ रहूंगा। ठाकुर की सेवा का सारा यश तुम अकेले को नहीं दूंगा।””अरे, नहीं! उसकी आवश्यकता नहीं है।””तुम्हें नहीं है, मुझे तो है।” काली ने कहा।नरेन्द्र मुस्कराया, “तो दिन-रात यहीं रहने का विचार है- चौबीसों घंटे?””तुम रहोगे तो मैं भी रहूंगा।” काली ने कहा।”मैं तो रहूंगा ही।” नरेन्द्र मुस्कराया, “मैंने ठाकुर का पूर्ण सेवाकर्म ग्रहण किया है। उनकी चिकित्सा करवाने के लिए एक भी पैसा नहीं दे सकता, तो सेवा तो करनी ही चाहिए न।””हम मिलकर भी तो सेवा कर सकते हैं।””ठीक है।” नरेन्द्र का स्वर गंभीर और आदेशात्मक हो गया, “यहां रहोगे तो मेरा अनुशासन मानना होगा। दिन-रात न जागने दंूगा, न काम करने दूंगा। दिन-रात काम करके बीमार पड़ोगे तो तुम्हारी सेवा कौन करेगा? ठाकुर को देखूंगा या तुम्हें? इसलिए दो घंटे दिन में और दो घंटे रात में तुम ठाकुर की सेवा करोगे। दोपहर को उनके शरीर पर तेल लगाओगे और छत पर ले जाकर धूप में नहलाओगे। स्वीकार?””स्वीकार।””तो जाओ।” नरेन्द्र बोला, “गोलाप मां को उनके घर छोड़ आओ।”28
टिप्पणियाँ