सुनील राय
गत 28 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में बाराबंकी के किसान हरिश्चन्द्र की प्रशंसा की थी. चीन और अमेरिका में सुपर फ्रूट मानी जाने वाली ‘चिया सीड’ को बिना किसी सरकारी मदद के किसान हरिश्चंद्र ने उगाया था. हरिश्चंद्र ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की तारीफ़ से प्रेरित होकर बाराबंकी के अमसेरुवा गांव में ड्रैगन फ्रूट उगाकर सूबे के किसानों को एक नई राह दिखाई है.
ड्रैगन फ्रूट की खेती कर सूबे के किसान अपनी आय में कई गुना इजाफा कर सकते हैं. एक किलो ड्रैगन फ्रूट 350 रुपए में बिक रहा हैं. मुख्यमंत्री की पहल पर उद्यान विभाग ने ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले किसान को 30 हजार रुपए प्रति एकड़ अनुदान देने का फैसला किया है.
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, दक्षिण पूर्व एशिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, कैरिबियन,ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों में ड्रैगन फ्रूट की खेती होती है. गुजरात सरकार ने इस फल को 'कमलम' नाम दिया है. एंटीऑक्सीडेंट, वसा रहित, फाइबर से भरपूर ड्रैगन फ्रूट में कैल्शियम, मैग्नेशियम और आयरन के अलावा प्रचुर मात्रा में विटामिन सी एवं ए भी पाया जाता है. इसका स्वाद काफी हद तक तरबूज जैसा होता है. देखने में यह नागफ़नी जैसा दिखता है. इसे सलाद, जैम, जेली या जूस के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है.
इस फल में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन सी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है. ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले बाराबंकी के किसान हरिश्चंद्र, सेना से आर्टिलरी कर्नल के पद से वर्ष 2015 में रिटायर हुए थे. वह बताते हैं कि रिटायर होने के बाद उन्होंने तीन एकड़ जमीन बाराबंकी की हैदरगढ़ तहसील के सिद्धौर ब्लाक के अमसेरुवा गांव में खरीदी. इस भूमि पर चिया सीड, ग्रीन एप्पल, रेड एप्पल बेर, ड्रैगन फूड, काला गेहूं और कई प्रजाति के आलू की खेती करना शुरू किया. गत वर्ष नवंबर में पहली बार आधा एकड़ भूमि में चिया सीडी की खेती की. चिया सीड की खेती चीन में अधिक होती है. यह मूल रूप से मैक्सिको की फसल है.
अमेरिका में इसे खाने के लिए खूब उगाया जाता है. इससे लड्डू, चावल, हलवा, खीर, जैसे व्यंजन बनते हैं. बहुत छोटे से दिखने वाले ये बीज सफेद, भूरे और काले रंग के होते हैं और शरीर को एनर्जी प्रदान करते हैं. इसमें कई पोषक तत्व होते हैं, जिसकी वजह से इनकी मांग काफी ज्यादा है. चिया सीड के इन गुणों और उसकी मांग के आधार पर ही प्रधानमंत्री ने कहा कि ये खेती ना सिर्फ हरिश्चंद्र की आय बढ़ाएगी, बल्कि आत्मनिर्भर भारत में अपना योगदान भी देगी.
हरिश्चंद्र ने ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए एक एकड़ में 500 पिलर पर 2000 प्लांट (पौधे) लगाए. इन्हें लगाने में करीब 6 लाख रुपए खर्च हुए. तीन वर्ष पूर्व लगाए गए ड्रैगन फ्रूट के पौधों में अब फल निकले आये हैं. इस फल की बिक्री खेत पर ही हो जा रही है. इसे बेचने के लिए बाजार नहीं जाना पड़ता है. हरिश्चंद्र का कहना है कि एक एकड़ में लगाए गए ड्रैगन फ्रूट अगले तीस वर्षों तक फल देंगे और हर साल 15 लाख रुपए प्राप्त होंगे.
इस वर्ष इसको विस्तार देने की योजना है. नए प्रयोग करते हुए खेती -किसानी में नाम कमाने वाले हरिश्चंद्र कहते हैं कि ड्रैगन फ्रूट की खेती, किसानों की आय बढ़ाने में कारगर साबित होगी. इसकी खेती में रखरखाव पर ज्यादा खर्च नहीं आता है क्योंकि रसायनिक खाद आदि का उपयोग इस खेती में नहीं होता. गोबर और जैविक खाद का इस खेती में उपयोग होता है. एक बार लगाए पौधे से तीस साल तक फल मिलता है. किसान के लिए यह खेती बैंक में जमा कराए गए धन पर मिलने वाले ब्याज की तरह है.
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