नासा की प्रशिक्षु प्रतिमा रॉय की उस तस्वीर पर सेकुलर तत्व बौखलाए हुए हैं जिसमें प्रतिमा ने अपनी हिन्दू आस्था को गर्व से दर्शाया है
11 जुलाई को अमेरिका के विश्व प्रसिद्ध अंतरिक्ष अनुसंस्थान संस्थान नासा ने ट्विटर पर अपनी एक इंटर्न की तस्वीर क्या साझा की, दुनियाभर के हिन्दूफोबिक कुनबे की सीने पर सांप लोटने लगे। तस्वीर से चिढ़कर वे बेतुकी टिप्पणी करने लगे, एक बार फिर हिन्दुत्व के प्रति उनके मन में इकट्ठा जहर उलीचने लगे। कारण बस इतना था कि तस्वीर में उस प्रशिक्षु प्रमिता रॉय की टेबल पर उन्हें हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाएं और चित्र सजे दिख गए थे।
प्रतिमा की इस आस्था से तथाकथित बुद्धिजीवियों को त्योरियां चढ़नी ही थीं। खुद को सेकुलर बताने वाले इन नास्तिकों और कम्युनिस्टों को प्रतिमा का भक्ति भाव देख पारा चढ़ गया और वे ना जाने क्या अनाप—शनाप टिप्पणियां करने लगे, सिर्फ प्रतिमा पर ही नहीं, बल्कि नासा पर भी। उन्होंने प्रतिमा के वैज्ञानिक होने पर ही संदेह जताया। क्योंकि उनके हिसाब से 'पढ़े—लिखे वैज्ञानिक' का आस्था से कोई सरोकार ही नहीं होना चाहिए। जबकि दुनिया जानती है कि नासा जैसे संस्थान में प्रशिक्षु का स्थान पाना भी कितनी मेहनत और समर्पण के बाद संभव हो पाता है। प्रतिमा ने विज्ञान में अपनी कर्मठता के कारण ही नासा में जगह पाई है।
प्रतिमा के अलावा अमेरिका के सुप्रसिद्ध अंतरिक्ष संस्थान नासा ने तीन अन्य प्रशिक्षुओं की तस्वीरें भी साझा की हैं। लेकिन सेकुलरों ने निशाना साधा सिर्फ प्रतिमा पर क्योंकि उसकी टेबल पर हिन्दू देवी—देवताओं की प्रतिमाएं जो थीं। सेकुलरों ने आलोचनाओं की झड़ी लगा दी। किसी ने इस बहाने भगवान राम को लेकर अभद्र टिप्पणी की तो किसी ने अंतरिक्ष में आस्थावान प्रतिमा की प्रतिभा पर ही उंगली उठा दी। कुछ ने कहा कि प्रतिमा को देवी-देवताओं से खुद को घेरे रखने की जरूरत ही क्या है? एक टिप्पणी तो साफ तौर पर ‘हिन्दूफोबिया’ की झलक देती है। उल्लेखनीय है कि नासा ने ऐसी अभद्र टिप्पणियों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन एक बात तो पूरी तरफ साफ है कि यही लोग तब एक शब्द नहीं बोलते अगर किसी मुस्लिम या ईसाई प्रशिक्षु की टेबल पर मक्का, मदीना या सलीब लगा होता। तब ये उसे सेकुलर कहकर शायद उसकी शान में कसीदे काढ़ते कि 'देखो, अपने मजहब का कैसा पक्का इंसान है जो आस्था के बल पर इस जगह तक पहुंचा है।'
हिन्दूफोबिया का असर दुनिया भर में देखने में आता रहा है। अमेरिका के विश्वविद्यालय हों या इंग्लैंड के, वहां भी बड़े—बड़े प्रोफेसरों ने माहौल में हिन्दू धर्म के प्रति जहर फैलाने में कसर नहीं रखी है। इतना जहर कि भारत से वहां पढ़ने गए हिन्दू परिवारों के बच्चे तक अपनी हिन्दू पहचान छुपाने को बाध्य कर दिए गए हैं। आक्सफोर्ड की रश्मि सावंत के साथ जो हुआ, उसे कौन भूला होगा! हिन्दूफोबिक लॉबी और सेकुलर छात्र गुटों ने पहली बार छात्रसंघ की अध्यक्ष बनी एक छात्रा को विश्वविद्यालय को छोड़कर भारत लौटने पर सिर्फ इसलिए बाध्य कर दिया था कि वह गर्व से जयश्रीराम कहती थी। सेकुलरों की कमान वहीं की एक महिला प्रोफेसर ने संभाली हुई थी। इसी तरह अनेक संस्थानों में सक्रिय हिन्दूफोबिक तत्व जहां हिन्दू धर्म से जुड़ा कुछ पाते हैं, वहीं अपना दुष्प्रचार शुरू कर देते हैं।
तथाकथित बुद्धिजीवी अशोक स्वैन को नासा प्रशिक्षु प्रतिमा की आस्था से कुछ ज्यादा ही दिक्कत हुई। उनके ट्वीट को देखकर आपको उनकी बुद्धि का स्तर पता चल जाएगा। वे लिखते हैं, 'एक हिन्दू बच्ची को हिन्दू देवी—देवताओं से घिरे होने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या इनके बिना हम कुछ नहीं कर सकते?'
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