जिहादी तालिबानियों के विरुद्ध सैकड़ों ग्रामीणों के हथियार उठाने के बाद, अब वहां बड़ी तादाद में महिलाओं ने थामी बंदूकें
तालिबानी आतंकियों के विरुद्ध हथियारबंद हो रही हैं अफगानी महिलाएं
अफगानिस्तान पर तेजी से कब्जा करते जा रहे जिहादी तालिबानियों के विरुद्ध अब स्थानीय महिलाओं ने इन जिहादियों का सामना करने के लिए हथियार उठाए हैं। वे सब अपने देश की फौज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर इन आतंकवादियों से लड़ने को तैयार हैं।
अफगानिस्तान में उधर अमेरिकी और नाटो सैनिकों की वापसी हो रही है तो इधर कट्टर तालिबानियों की ताकत बढ़ती जा रही है। एक बार फिर अफगानिस्तान दो दशक पहले के दौर में उतरता दिखाई दे रहा है जब मजहबी कट्टरपंथ का ऐसा बोलबाला था कि सभ्य समाज के सभी मूल्य धराशायी हो गए थे। महिलाओं के साथ अन्याय होता था और मर्दों पर कई तरह के फरमान लागू थे। हुकूमत मध्य युगीन मानसिकता से चलती थी। कहीं वे तालिबानी फिर से हावी न हो जाएं, इसीलिए अब अफगानिस्तान की महिलाओं में एक नई जाग्रति आती दिख रही है। उन्हें तालिबान से किसी तरह की उम्मीद नहीं है। इनका कहना है कि अगर तालिबान का शासन होता है, तब वह न तो पढ़—लिख सकेंगी, न नौकरी कर सकेंगी। उनका घर से बाहर निकलना बंद कर दिया जाएगा। इसलिए अब महिलाएं भी आगे आकर अफगानी नेशनल आर्मी का साथ दे रही हैं।
हथियार उठाने वाली इन महिलाओं का कहना है कि अफगान सरकार अकेले दम पर जिहादी तालिबानियों से नहीं लड़ सकती, इसलिए वे सेना और सरकार का साथ देने के लिए मैदान में उतरी हैं। राजधानी काबुल, फारयाब, हेरात और अन्य कई शहरों में महिलाओं ने हथियारों के साथ प्रदर्शन किए हैं। हथियार थामे इन महिलाओं की अनेक तस्वीरें साझा की गई हैं सोशल मीडिया पर।आरटीए (रेडियो टेलीविजन अफगानिस्तान) ने अपने ट्विटर हैंडल से जोजजान और गौर की हथियारबंद महिलाओं की तस्वीरें साझा की हैं।
हथियार क्यों थामे? इस सवाल पर ये कहती हैं कि अफगान सरकार अपने अकेले दम पर जिहादी तालिबानियों से नहीं लड़ सकती, इसलिए वे सेना और सरकार का साथ देने मैदान में उतरी हैं। उल्लेखनीय है कि राजधानी काबुल, फारयाब, हेरात और अन्य कई शहरों में महिलाओं ने हथियारों के साथ प्रदर्शन किए हैं।
काबुल की रहने वाली सईदा गजनीवाल कहती हैं, ''आज समय की सबसे बड़ी जरूरत है तालिबान के खिलाफ एकजुट होना। यह एक सकारात्मक कदम है। महिलाएं चाहती हैं कि हर कोई अपनी आजादी के लिए और हिंसा के खिलाफ तालिबान के मुकाबले में खड़ा हो।'' महिला अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली डॉ. शुक्रिया निजामी पंजशीर कहती हैं, ''सरकार अकेले इन लड़ाकों का सामना नहीं कर पाएगी, इसलिए लोगों को आगे आकर सरकार के साथ खड़े होने की जरूरत है।'' वे कहती हैं कि अफगानिस्तान के पूरी तरह आजाद होने तक वे चैन से नहीं बैठेंगी। देश में 20 साल पहले जैसा अंधेरा छाया था, वैसा दोबारा नहीं छाने दिया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि फिलहाल, अफगानिस्तान के अनेक इलाकों में अफगान सेना और तालिबानी लड़ाकों के बीच जंग छिड़ी है। खबरों के अनुसार, तालिबानियों ने अफगानिस्तान के एक तिहाई से ज्यादा जिलों पर कब्जा कर लिया है। इस सबको देखकर स्थानीय लोग आशंकित हैं।
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