नई दिल्ली । कांग्रेस पार्टी तिरुवनंतपुरम के सांसद शशि थरूर को लेकर दुविधा में है। कांग्रेस पार्टी का शशि थरूर की राष्ट्रवादी नीतियों के कारण उनके प्रति धैर्य धीरे-धीरे कमजोर होता जा रहा है। सवाल यह है कि आखिर कांग्रेस पार्टी की ऐसी क्या मजबूरी है जिससे उसे शशि थरूर को अब भी पार्टी में बर्दाश्त करना पड़ रहा है।
2026 के विधानसभा चुनाव की रणनीतिक विवशता
कांग्रेस पार्टी की शशि थरूर के प्रति मजबूरी का मूल कारण है 2026 में होने वाले केरल विधानसभा चुनाव। इस वर्ष केरल के साथ-साथ तमिलनाडु, पुडुचेरी, असम और पश्चिम बंगाल जैसे महत्वपूर्ण राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में भी विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं।
बंगाल और असम में कांग्रेस की स्थिति
पश्चिम बंगाल की 294 विधानसभा सीटों में कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है। वहीं असम में कांग्रेस की स्थिति लगातार कमजोर हो रही है। हाल ही में संपन्न पंचायत चुनावों में कांग्रेस पार्टी की बुरी तरह से हार हुई। यहां तक कि जोरहाट में, जो उपनेता विपक्ष का संसदीय क्षेत्र है, कांग्रेस 36 जिला पंचायत सीटों में एक भी सीट नहीं जीत पाई।
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इन चुनावों से यह स्पष्ट हो गया है कि असम में अब कांग्रेस को विपक्षी दल की हैसियत बनाए रखने की भी चुनौती है।
तमिलनाडु और पुडुचेरी में गठबंधन पर निर्भरता
तमिलनाडु में कांग्रेस पार्टी द्रमुक की पिछलग्गू बनकर अपने वजूद की रक्षा कर रही है। वहीं पुडुचेरी में कभी कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन अब भाजपा और एनआर कांग्रेस के गठबंधन ने कांग्रेस को पूरी तरह से सत्ता से बाहर कर दिया है।
केरल में थरूर की मजबूरी बनाम जातिगत समीकरण
केरल की राजनीति में कांग्रेस पार्टी शशि थरूर को किनारे करके एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकती। इसके पीछे का मुख्य कारण है राज्य की जातिगत राजनीति, जिसमें नायर जाति का महत्वपूर्ण स्थान है। शशि थरूर इसी जाति से आते हैं और इस जाति की केरल में लगभग 15 प्रतिशत जनसंख्या है।
नायर मतदाता और कांग्रेस का समीकरण
अब तक कांग्रेस को नायर जाति का वोट माकपा के विरोध के कारण मिलता रहा, ना कि कांग्रेस के प्रति प्रेम के कारण। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद अब केरल की राजनीति में भाजपा नीत एनडीए ने भी ज़मीन बनानी शुरू कर दी है।
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इस कारण नायर मतदाता अब कांग्रेस और भाजपा दोनों के प्रति सकारात्मक रुख रखते हैं। अगर कांग्रेस पार्टी थरूर पर कोई अंकुश लगाती है, तो यह जाति पूरी तरह कांग्रेस से किनारा करके भाजपा के साथ जा सकती है।
कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव और नायर समाज की नाराज़गी
कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में थरूर का विरोध करते हुए खरगे को समर्थन देने के कारण नायर जाति में गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी के प्रति रोष व्याप्त है। इससे यह भी साफ होता है कि आने वाले चुनावों में नायर जाति का कांग्रेस को पहले जैसा समर्थन मिलना संदिग्ध है।
कांग्रेस में थरूर की उपेक्षा और उसका संभावित असर
शशि थरूर कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ सांसदों में से एक हैं। वह चौथी बार तिरुवनंतपुरम लोकसभा सीट से जीत चुके हैं। उनकी वरिष्ठता को देखते हुए उन्हें लोकसभा में पार्टी का नेता या उपनेता बनाया जाना चाहिए था।
गांधी परिवार की परिवारवादी नीति
गांधी परिवार ने हमेशा योग्यता की बजाय पारिवारिक पृष्ठभूमि को प्राथमिकता दी है। इसी नीति के चलते उन्होंने राहुल गांधी को लोकसभा में पार्टी का नेता और गौरव गोगोई को उपनेता नियुक्त किया है। गौरव गोगोई स्वर्गीय तरुण गोगोई के पुत्र हैं, जो गांधी परिवार के करीबी माने जाते थे।
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शशि थरूर की इस उपेक्षा से न सिर्फ नायर जाति, बल्कि केरल की आम जनता भी आहत है। आगामी विधानसभा चुनाव में जनता इस अपमान का बदला मतदान के जरिए लेने के मूड में दिख रही है।
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