इस्राएल के खुफिया विभाग से जुड़े फौजी और अधिकारी अब अरबी सीखेंगे और इस्लाम को समझेंगे। उनके लिए ऐसा करना अब वहां की सरकार ने अनिवार्य कर दिया है। अपने चारों तरफ इस्लामी देशों से घिरे छोटे से यहूदी देश इस्राएल के खुफिसा विभाग को इस प्रकार का आदेश क्यों दिया गया है, इसे लेकर विशेषज्ञों की अलग अलग राय है। कुछ का मानना है कि इस्लाम का अध्ययन करने का आदेश देना एक रणनीतिक निर्णय हो सकता है। यह कदम न केवल सुरक्षा और खुफिया क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में सहायक होगा, बल्कि क्षेत्रीय समझ और संवाद की नई संभावनाओं को भी जन्म देगा।
दुनिया का कोई भी सभ्य व्यक्ति 7 अक्तूबर 2023 को इस्राएल पर इस्लामी हमासियों के बर्बर हमले को भुला नहीं सकता। उस हमले की वजह इस्राएल की खुफिया एजेंसियों को बड़ी चूक भी बताई गई है। वे समय रहते जान ही न पाए कि हत्यारे हमासी ऐसा पाशविक हमला बोलने वाले हैं और वह भी उस दिन जब वहां एक बड़ा सालाना संगीत कार्यक्रम हो रहा था जिसमें देश विदेश के हजारों युवा जुटे थे। बताया गया कि इ्रसाएल का खुफिया विभाग हमले की पूर्व सूचना को डिकोड नहीं कर पाया, जिससे भारी जानमाल की हानि हुई। हालांकि एक थ्योरी यह है कि मोसाद को पहले भनक लग चुकी थी कि हमास कोई बड़ा हमला बोलने की तैयारी कर रहा था, फिर भी वैसी कोई सर्तकता देखने में नहीं आई थी।
जैसा पहले बताया, इस्राएल चारों ओर से अरबी भाषी देशों से घिरा है और ये देश हैं जॉर्डन, लेबनान, मिस्र और सीरिया। इसके अतिरिक्त, ईरान और फिलिस्तीन जैसे कट्टर विरोधी देश भी अरबी या उससे मेल खाती भाषाओं का प्रयोग करते हैं। इस्राएल के खुफिया विभाग के जवानों और अधिकारियों के लिए अरबी भाषा और इस्लाम का अध्ययन अनिवार्य इसलिए किया गया होगा ताकि वे कुरान को ठीक से समझ सकें। कुरान में लिखी बातों को ही जिहादी अपनी सोच की गाइड बताते हैं। अरबी भाषा जाने बिना यह समझना मुश्किल होता है कि कुरान में आखिर लिखा क्या है।

इस्राएल सरकार का यह आदेश कोरा कागजी आदेश नहीं है। उस देश की सेना ने एक नया विभाग स्थापित कर दिया है जो अनुवादक, रेडियो ऑपरेटर और खुफिया शोध करने वालों को इस्लामी रीति—नीति और अरबी भाषा का गहन प्रशिक्षण देगा। इतना ही नहीं, नए सैनिकों को भर्ती से पहले ही अरबी और इस्लाम की शिक्षा दी जाएगी। सरकार का लक्ष्य है कि अगले वर्ष तक 50 प्रतिशत खुफिया अधिकारी अरबी में दक्ष हों।
इसमें संदेह नहीं है कि इस्राएल के सैनिकों और अधिकारियों के अरबी भाषा और इस्लामी सोच को समझने से दुश्मनों की योजनाओं को बेहतर तरीके से डिकोड किया जा सकेगा। उन्हें इस्लामी तौर—तरीकों और सोच को जानने में सुविधा रहेगी, जिससे उनके रणनीतिक आकलन में और गहराई आएगी।
इसके साथ ही, इस्राएल सरकार हूती विद्रोहियों की भाषा और व्यवहार को समझने के लिए विशेष कोर्स शुरू करने जा रही है। सरकार ने छह साल बाद शिक्षा संस्थानों में मध्य पूर्वी अध्ययन विभाग को फिर से चालू करने का निर्णय लिया है ताकि स्कूल-कॉलेजों में क्षेत्रीय अध्ययन कराया जाए। उद्देश्य यही है कि विद्यार्थी अपने आसपास के वातावरण को अच्छे से जान सकें। इस्राएल के अधिकारी मानते हैं कि वे अरब के गांवों में पले-बढ़े बच्चों जैसे माहिर तो नहीं हो सकते, लेकिन भाषा और रीति—नीति सीखकर कुछ समझ तो बनाई ही जा सकती है।
इस्राएल में इस नए आदेश से साफ समझ आता है कि वह यहूदी देश इस्लाम को मजहबी नहीं बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से देख रहा है, जिससे यह कदम उसकी सुरक्षा नीति का हिस्सा मालूम देता है। सरकार का यह निर्णय एक बहुआयामी रणनीति का हिस्सा हो सकता है जिससे भाषा, संस्कृति और मजहब में खुफिया दक्षता हासिल हो। विमर्श के प्रसार के मामले में इस्राएल सरकार का यह निर्णय बहुत सहायक हो सकता है। वैसे भी, विशेषज्ञ मानते हैं कि इस्लामी सोच को समझना अब इस्राएल की सुरक्षा नीति का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।
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