जगन्नाथ रथयात्रा: भगवान जगन्नाथ के सेवक और सोने की झाड़ू से रथ मार्ग बुहारने वाले राजा का इतिहास
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जगन्नाथ रथयात्रा: भगवान जगन्नाथ के सेवक और सोने की झाड़ू से रथ मार्ग बुहारने वाले राजा का इतिहास

पुरी में जगन्नाथ रथयात्रा 2025 शुरू हो गई है। गजपति महाराज दिब्यसिंह देव ने ‘छेरा पहरा’ की परंपरा निभाई। जानें पुरी राजवंश का ऐतिहासिक महत्व।

by Mahak Singh
Jun 27, 2025, 03:04 pm IST
in विश्व
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ओडिशा की प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा आज से शुरू हो गई है। यह परंपरा करीब 9 दिन तक चलती है और इसे भारत की श्रद्धा, आस्था और भक्ति का महान उत्सव माना जाता है। रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा रथों पर सवार होकर भक्तों के बीच आते हैं। इस समय न कोई राजा होता है और न कोई रंक – सभी एक समान होते हैं। इस यात्रा की सबसे खास परंपरा है- ‘छेरा पहरा’, जिसमें पुरी के राजा साधारण कपड़ों में आकर सोने की मूठ वाली झाड़ू से भगवान के रथ और रास्ते को साफ करते हैं। इस झाड़ू को लक्ष्मी माता का प्रतीक माना जाता है और यह मान्यता है कि यह सिर्फ गंदगी नहीं बल्कि नकारात्मक ऊर्जा को भी दूर करती है। इस पवित्र प्रक्रिया के साथ वेदों के मंत्रों का उच्चारण होता है, जिससे वातावरण और भी पवित्र हो जाता है।

पुरी के वर्तमान राजा का नाम गजपति महाराज दिब्यसिंह देव यादव है। उन्हें भगवान जगन्नाथ का सबसे पहला सेवक माना जाता है। वह पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष भी हैं। हर साल रथयात्रा से पहले वह ‘छेरा पहरा’ नामक परंपरा निभाते हैं। उनका संबंध भोई राजवंश से है और उन्हें गजपति महाराज चतुर्थ भी कहा जाता है।

गजपति एक सम्मान की उपाधि थी जो पुरी (ओडिशा) के राजाओं को दी जाती थी। यह उपाधि खासकर पूर्वी गंग वंश के राजाओं से जुड़ी थी, जिन्होंने 12वीं सदी में ओडिशा पर राज किया। राजा अनंतवर्मन चोडगंग (1078–1147) ने ओडिशा के कई छोटे राज्यों को मिलाकर एक बड़ा राज्य बनाया और श्री जगन्नाथ मंदिर बनवाया। उसके बाद राजा अनंगभीम देव तृतीय (1246 ई.) ने खुद को पहली बार गजपति कहा और भगवान जगन्नाथ को राज्य का असली मालिक माना। राजा खुद को उनका सेवक कहते थे। भानुदेव चतुर्थ पूर्वी गंग वंश के आखिरी राजा थे। उनके बाद राज्य में बहुत उथल-पुथल हुई फिर 1434 ई. में कपिलेंद्र देव ने सत्ता संभाली, लेकिन उनका शासन लंबा नहीं चला।1541 ई. में गोविंद विद्याधर ने भोई वंश की शुरुआत की। वो गजपति प्रतापरुद्र देव के मंत्री थे। उनका शासन भी सिर्फ 6 साल रहा। फिर सत्ता के लिए लड़ाई हुई और कुछ समय के लिए मुकुंद देव राजा बने, लेकिन 1568 में बंगाल के अफगान शासक सुलेमान कर्रानी से हार गए। इसके बाद कुछ समय तक मुगलों ने ओडिशा पर राज किया। तभी गजपति रामचंद्र देव प्रथम (1568–1607) आए। उन्होंने खुर्दा में नया शासन शुरू किया जिसे नव भोई वंश कहा जाता है। उन्होंने खुद को भगवान जगन्नाथ का सेवक बताया और मंदिर की सेवा को सबसे जरूरी काम माना। रामचंद्र देव को कई बड़े-बड़े सम्मानित नाम मिले जैसे-
अभिनव इंद्रद्युम्न, उन्होंने संस्कृत में “श्रीकृष्णभक्तवच्छल्या चारितम” नामक एक नाटक भी लिखा। उन्होंने दुश्मन कालापहाड़ को पुरी में घुसने नहीं दिया।

खुर्दा पर भोई परिवार का शासन 1804 तक चला। उसके बाद 1809 में ब्रिटिश शासन के समय पुरी रियासत बनाई गई। ब्रिटिश सरकार ने गजपति महाराज को धार्मिक और सांस्कृतिक सम्मान दिया, लेकिन उनका राजनीतिक अधिकार समाप्त कर दिया। आज भी गजपति महाराज पुरी के धार्मिक मामलों में बहुत महत्वपूर्ण हैं। वे श्री जगन्नाथ मंदिर के मुख्य सेवक हैं और ओडिशा की संस्कृति, परंपरा और धर्म का प्रतीक माने जाते हैं। हर साल रथ यात्रा में उनकी भागीदारी ओडिशा की धार्मिक एकता और सांस्कृतिक विरासत को मजबूत करती है।

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